कृषि यंत्रों के सहारे पराली का सदुपयोग, दो क्विटल प्रति एकड़ बढ़ी पैदावार
लोगो लगाएं... पराली वाला फोटो संख्या -8 व 9 -धान में डीएपी का प्रयोग करना बंद हुआ ज
लोगो लगाएं... पराली वाला फोटो संख्या -8 व 9 -धान में डीएपी का प्रयोग करना बंद हुआ
जुताई करने की बजाय गेहूं की सीधी बिजाई से खर्च भी हुआ कम रामकुमार कौशिक, समालखा :
पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाना जरूरी है। पराली को न जला कर खेत की उपजाऊ शक्ति को भी बढ़ा सकते हैं। बड़ौली गांव के बीएससी पास किसान सुरेश कुछ ऐसा ही कर रहे हैं। पराली के सदुपयोग में कृषि यंत्रों को हथियार बनाया है। नतीजा यह है कि आज न केवल उनके खेत में पैदावार बढ़ी है, बल्कि अनेक खर्च तक कम हो गए। अब आसपास के गांव के किसान भी उनसे सीख ले रहे हैं। कृषि यंत्रों के बारे में जानना जरूरी
सुरेश बड़ौली के पिता आर्मी में थे। सेवानिवृत्त होने के बाद खेती करने लगे। बीएससी करने के बावजूद सुरेश ने किसी कंपनी में नौकरी की बजाय खेती को ही चुना। आज करीब 70 एकड़ की खेती करते हैं। सुरेश बताते है कि उनके दादा व पिता ने भी पराली का हमेशा ही सदुपयोग किया। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अधिकारियों की सलाह का फायदा उठा कर वो भी बुजुर्गों की राह पर चल कृषि यंत्रों के सहारे पराली का सदुपयोग कर रहे हैं।
सुरेश का कहना है कि किसान को खरीदे गए कृषि यंत्र के बारे में पूरी जानकारी होना बहुत ही जरूरी है। तभी वो उसका अच्छी तरह से खेती में प्रयोग कर सकता है। ऐसी बहुत सी मशीनरी व टेक्नोलॉजी तैयारी की गई हैं, जिसकी मदद से पराली से लाभ कमा सकते हैं। कैसे करते हैं सदुपयोग
सुरेश ने बताया कि वह पीआर व 1509 किस्म की कंबाइन से कटाई कराते हैं। फिर मल्चर का प्रयोग कर अवशेषों को काट कर पूरे खेत में फैला देते हैं। ऐसा करने से धान की कटाई होने के बाद गेहूं की तुरंत बुआई को सरल बनाया जाता है। फिर हैप्पी सीडर के जरिये अवशेषों के बीच ही गेहूं की सीधी बिजाई कर देते हैं। सीधी बिजाई से खेत में होने वाली पानी की नमी ज्यादा समय तक बनी रहती है। खरपतवार भी कम पैदा होती है। वहीं 1121 धान की पराली को 3500 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से बेच रहे हैं। खर्च कम होने के साथ बढ़ी पैदावार
सुरेश ने दैनिक जागरण को बताया कि पराली का सदुपयोग करने से न केवल उनके खर्च कम हुए है, बल्कि पैदावार में भी इजाफा हुआ है। बिना जुताई हैप्पी सीडर से गेहूं की सीधी बिजाई करने पर उन्हें 1500 रुपये तक की बचत होती है। अवशेष जमीन में मिलने से खेत की उर्वरक शक्ति बढ़ने पर प्रति एकड़ करीब दो क्विटल की पैदावार में इजाफा हुआ है। धान में पहले डीएपी का प्रयोग करते थे। वो भी बंद कर दिया। इन सभी फायदों से अलग पर्यावरण प्रदूषित होने से बचता है।