ARTICLE 370 : हरियाणा में रह रहे कश्मीरी विस्थापितों के परिवारों में खुशी, मना रहे आजादी का जश्न Panipat News
प्रदेश में रह रहे कश्मीरी विस्थापितों के 250 परिवारों की घर वापसी का रास्ता साफ हो गया है। 1990 में विस्थापित होकर हरियाणा आए थे। अब इनकी आंखों में है घर वापसी की खुशी है।
पानीपत/अंबाला, [उमेश भार्गव]। जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने के बाद वर्ष 1990 से विस्थापन का दुख दिलों में दबाए हरियाणा में रह रहे करीब 250 परिवारों की घर वापसी की उम्मीदों को पंख लग गए हैं। इन परिवारों ने 29 सालों में विस्थापित होने का दंश तो झेला ही, साथ में अपने घरों को देखने भी दोबारा नहीं जा पाए। अंबाला की कशिर सभा सालों से कश्मीरी विस्थापितों के लिए काम करती रही है। सभा के सदस्यों का कहना है कि अब घर वापसी का समय आ गया है।
29 साल पहले कश्मीर में मस्जिदों के माध्यम से घोषणा कर दी गई थी कि सभी हिंदू कश्मीर छोड़ दे या मुसलमान बन जाएं। पूरे कश्मीर में कर्फ्यू लगा था। कोई भी पंडित माथे पर टीका नहीं लगा सकता था। जमात-ए इस्लामी के शहीद अली शाह इलानी जो दो बार विधायक भी रह चुके थे हमेशा मदरसों में कहते थे कि तुम अपने घर में टीवी नहीं बल्कि बंदूक रखो। 29 साल पहले कश्मीर से बेघर होकर अंबाला पहुंचे परिवार ने कुछ इस तरह दर्द बयां की।
हिंदू होने की मिली थी सजा
बैंक ऑफ बड़ौदा से एजीएम पद से सेवानिवृत्त सुरेंद्र पंडिता ने बताया कि बेशक देश 15 अगस्त 1947 से आजाद हुआ लेकिन सही मायने में उन्हें आजादी अब मिली है। सुरेंद्र ने बताया कि हमें कश्मीर से भारतीय होने की वजह से नहीं बल्कि हिंदू होने की वजह से निकाला गया था। अंतिम बार हम 2012 में अपने गांव गए थे। जिस आंगन में हमारा बचपन बीता आज वहां मिट्टी के ढेर लगे हुए हैं। जो मंदिर हुआ करता था उसे भी तोड़ दिया गया है केवल पिल्लर बचे हैं। जो हमारी जमीन थी उसपर करीब दो एकड़ पर शफी अहमद नाम के व्यक्ति का कब्जा है। उन्होंने बताया कि जब मेरे परिवार ने कश्मीर छोड़ा तो मैं खन्ना में कार्यरत था। मैं दोहराहा पंजाब में बिलासपुर में किराये के कमरे में परिवार के साथ रहता था। जब मैं अपने-माता-पिता व भाई-बहन को जम्मू से लेकर आया तो मेरे मकान मालिक ने हमें दो कमरे और दे दिए। उस समय मेरा वेतन 2500 था। इतने कम पैसे में मेरे सामने पूरे परिवार का गुजर बसर करना मुश्किल था।
रातोंरात भागने पर विवश किया
रमेश पंडिता ने बताया कि हमारे पास कश्मीर के सोपोर के गांव जालोरा में चार एकड़ और दो एकड़ हंदवाड़ा में जमीन थी। जलोरा में ही हमारा 16 कमरों वाला 3 मंजिला मकान था। वहां पर सेब के बाग थे। दादा पंडित महेश्वरनाथ और पिता पंडित त्रिलोकी नाथ, माता शीला देवी बड़े भाई सुरेंद्र कुमार, उनसे छोटा मैं और राजिंद्र पंडिता, सुरेश पंडिता व बहन गिरिजा के अलावा सबसे छोटा भाई संदीप पंडिता एक साथ रहते थे। सुरेंद्र बैंक ऑफ इंडिया में खन्ना पंजाब में कार्यरत होने के कारण वहां से पहले ही निकल चुके थे। 30 मार्च 1990 को हमे मजबूरी में गांव छोडऩा पड़ा क्योंकि मस्जिदों से घोषणा होने लगी थी कि या तो घर छोड़ दो या धर्म बदलो, नहीं तो तुम्हें मार दिया जाएगा। उसी दौरान बीटा कराटे नाम के व्यक्ति ने सरेआम कहा कि मैंने 22 हिंदूओं को मार दिया है। इसी दौरान मेरी पत्नी उस समय गर्भवती थी। उस समय कर्फ्यू होने के कारण हमारा घर से निकलना तक मुश्किल था। 150 लोगों को वहां के मुस्लिमों ने रातोंरात भागने को विवश कर दिया था।
परिवार के 23 लोगों ने मनाया एक साथ जश्न
त्रिलोकी नाथ, सुरेंद्र पंडिता व उनकी पत्नी रीता इनकी बेटी आस्था और बेटा आसीन, छोटा भाई रमेश पंडिता व उनकी पत्नी रेनू बेटी रितिका और बेटा रित्विक, उससे छोटा भाई राजेंद्र उसकी पत्नी संतोष बेटी मानवी और बेटा अर्चित, उससे छोटा भाई सुरेश व उनके बच्चे दृष्टि और वंशिका, उनसे छोटा भाई संदीप व उनकी पत्नी हेमलता बेटी अक्षिता व पुत्र अक्षर। इन भाइयों की बहन गिरिजा उसके पति विरेंद्र मोहन बेटा कविश पंडिता इस समय अंबाला में ही रहे रहे हैं। इन सभी ने आज जश्न मनाया।
जिस तरह से वर्ष 1990 में कश्मीर से हिंदूओं को विस्थापित किया गया, वह जख्म अभी तक भरा नहीं है। अब धारा 370 खत्म होने पर ऐसा महसूस हो रहा है कि हमें दूसरी बार आजादी मिली है। पिछले 29 सालों में सिर्फ एक बार अपने घर अनंतनाग जा पाया हूं। अब एक बार फिर से अपने घर जाने का सपना साकार हो गया है।
- प्रो. एके वातल, प्रधान कशिर सभा अंबाला
जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटना हमारे लिए दिवाली से कम नहीं है। सालों से जिस इंतजार में थे, वह दिन आखिर आ गया है। प्रदेश भर में ढाई सौ परिवार ऐसे हैं जो लगभग तीन दशकों से इंतजार कर रहे थे कि वे कब अपने घरों को लौट सकेंगे। अब जम्मू कश्मीर जाकर अपने घरों को संभाल सकेंगे।
- राजेंद्र कॉव, महासचिव कशिर सभा अंबाला।
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