Move to Jagran APP

Guru Nanak Gurpurab 2022: हरियाणा से गहरा नाता है गुरु नानक देव जी का, जानिए इन पवित्र स्‍थानों के बारे में

सिख के प्रथम गुरु गुरु नानक देव महाराज का आज प्रकाश पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। गुरु नानक देव जी महाराज का हरियाणासे गहरा नाता था। गुरु नानक देव हरियाणा के करनाल पानीपत सहित कई शहरों में रुके थे।

By Anurag ShuklaEdited By: Published: Tue, 08 Nov 2022 06:15 PM (IST)Updated: Tue, 08 Nov 2022 06:15 PM (IST)
Guru Nanak Gurpurab 2022: हरियाणा से गहरा नाता है गुरु नानक देव जी का, जानिए इन पवित्र स्‍थानों के बारे में
आज गुरु नानक देव जी का प्रकाशोत्‍सव है।

पानीपत, [अनुराग शुक्‍ल]। आज गुरु नानक देव का प्रकाशोत्‍सव धूमधाम से मनाया जा रहा है। यमुनानगर के कपालमोचन से गुरु गोबिंंद सिंह ने गुरु नानक देव का प्रकाशोत्‍सव मनाने के आदेश दिए थे। ऐसे में हरियाणा में जहां-जहां गुरु नानक देव आए, वहां गुरुद्वारा को सजाया गया। आइए जानते हैं ये पवित्र स्‍थान कहां-कहां हैं।

prime article banner

कपालमोचन में आए थे गुुरु नानक देव जी महाराज

गुरु नानक देव जी महाराज कपालमोचन आए थे। उनके प्रकाशोत्सव पर मेले का आयोजन होता है। कपालामोचन मेले में कई राज्यों के लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। श्रद्धालु पहली व दसवीं पातशाही गुरुद्वारा साहिब में शीश नवाते हैं। गुरुद्वारा साहिब के मैंनेजर नरेंद्र सिंह का कहना है कि गुरु नानक देव जी हरिद्वार से सहारनपुर होते हुए कपालमोचन तीर्थ स्थान पर पहुंचे थे। यहां पर पूजा अर्चना की।

पानीपत में गुरु नानक देव पहली पातशाही गुरुद्वारा में आए थे

पानीपत में जीटी रोड स्थित गुरुद्वारा पहली पातशाही में गुरुनानक देव जी दिल्ली से पहली उदासी (सन 1507-1515) के समय यहां आए थे। यहां गुरु नानक देव ने शेख शरफ (बू अली कलंदर) और उनके शिष्य टिहरी के साथ चर्चा की। गुरु नानक देव ने बू-अली कलंदर शाह के सभी सवालों के जवाब दिए। उन्हें जीवन के सच्चे मार्ग का उपदेश दिया। बू-अली कलंदर शाह ने प्रभावित होकर गुरु नानक के हाथों को चूमा। इसके बाद गुरुनानक करनाल, कुरुक्षेत्र, अंबाला के रास्ते तलवंडी पहुंचे एवं करतार पुर नगर आबाद किया। गुरुद्वारे में गुरुनानक देव के आगमन का शिलालेख भी मौजूद हैं।

सूर्यग्रहण पर धर्मनगरी कुरुक्षेत्र आए थे

पूरी दुनिया में धर्मनगरी कुरुक्षेत्र ही एक ऐसा पवित्र स्थल है जो सिख पंथ के लिए अति महत्वपूर्ण माना जाता है। इस धरा पर सिखों के दस में से आठ गुरुओं ने अपने चरण रखकर भूमि को इतिहास के सुनहरे पन्नों में शुमार किया है। इसी भूमि पर सूर्यग्रहण के अवसर पर पहली पातशाही गुरु नानक देव संवत 1515 बैसाख की अमावस्या पर पहुंचे थे। आज किरमिच रोड पर स्थित पहली पातशाही श्री गुरु नानक देव जी महाराज के गुरुद्वारा साहिब के दर्शन करने के लिए देश-विदेश से लोग पहुंचते हैं।

ये है खास महत्‍व

गुरुद्वारा साहिब की देखरेख और संगत की सेवा करने का काम शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी अमृतसर की ओर से की जा रही है। गुरु नानक देव महाराज ने सूर्यग्रहण के समय अग्नि जलाने का उल्लंघन कर गुरु का लंगर बरताया था। गुरुद्वारा साहिब के मैनेजर अमरेंद्र सिंह ने इतिहास का उल्लेख करते हुए बताया कि श्री गुरु नानक देव महाराज प्रथम उदासी सन 1515 ई. को सूर्यग्रहण के समय कुरुक्षेत्र पहुंचे। गुरु जी ने ब्रह्मसरोवर के किनारे डेरा लगाया और हिंदू जगत के प्रसिद्ध नियम तोड़ने के लिए सूर्यग्रहण के समय अग्नि न जलाने का उल्लंघना करके गुरु का लंगर शुरू किया। इसके बाद खीर का प्रसाद बनाकर बरताया। उस दौरान एक पंडित ने वेद व्यास के भविष्यत वाक्य कलयुग बेदी बंसेज नानक के अनुसार गुरु को कलयुग का अवतार बताया था। इसी स्थान पर अब गुरुद्वारा साहिब पातशाही पहली सुशोभित है। उन्होंने बताया कि पहली पातशाही गुरु नानक देव के प्रकाशोत्सव पर कुरुक्षेत्र से हजारों की संख्या में संगत हाजिरी लगाती है।

करनाल भी आए थे

गुरु गुरुनानक देव उदासी नामक अपनी पहली धार्मिक यात्रा पर वर्ष 1515 में आए थे। कहा जाता है कि यहां स्थित बगीचे में वह एक टीले पर बैठे और फिर भक्तों की बड़ी भीड़ के साथ पहले भजन या शबद गाए। यही कारण है कि इस गुरुद्वारे के प्रति संगत में अनन्य आस्था है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.