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गुरु गोबिंद सिंह की याद दिलाता है यह ब्रह्मसरोवर, आज भी याद है वो लंगर

जब भी जनवरी में सूर्यग्रहण होता है तो धर्मनगरी के लोग गुरु गोबिंद सिंह महाराज की याद जरूरत करते हैं। यहां पर गुरु गोबिंद सिंह महाराज ने ब्रह्मसरोवर घाट पर डेरा लगाया था।

By Ravi DhawanEdited By: Published: Sun, 13 Jan 2019 02:21 PM (IST)Updated: Mon, 14 Jan 2019 10:29 AM (IST)
गुरु गोबिंद सिंह की याद दिलाता है यह ब्रह्मसरोवर, आज भी याद है वो लंगर
गुरु गोबिंद सिंह की याद दिलाता है यह ब्रह्मसरोवर, आज भी याद है वो लंगर

पानीपत/कुरुक्षेत्र, जेएनएन। सिख पंथ के दसवें पातशाही श्री गुरु गोबिंद सिंह महाराज सूर्यग्रहण के समय जनवरी साल 1688-89 में धर्मनगरी में आए थे। ब्रह्मसरोवर के राजघाट के पूर्व की ओर उन्होंने डेरा लगाया था। गुरु के महल, माता जी तथा साहिबजादा अजीत सिंह ने उसके साथ थे। विस्तृत खबर के लिए पढ़ें दैनिक जागरण की ये खबर।

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गुरुद्वारा छठी पातशाही के प्रबंधक सरदार अमरेंद्र सिंह बताते हैं कि लोक रीति के विपरीत गुरु जी ने खीर व मालपूड़े का लंगर शुरू किया। एक योगी ने अपनी भूख बढ़ाई हुई थी। पंक्ति में बैठकर जब खाना शुरू किया वह योगी बेअंत खरी तथा पूड़े खाता गया। 

पहल कोर में हुआ तृप्त
गुरुद्वारा छठी पातशाही के प्रबंधक सरदार अमरेंद्र सिंह ने बताया कि उसका मकसदगुरु जी की बदनामी थी। परंतु सतगुरु जी ने सेवक को सतनाम कहकर पूड़ा ओर खीर देने के लिए कहा। यह योगी पहला कोर खाने के पश्चात ही तृत्प हो गया और गुरु जी के चरणों में झुक गया। 

अखंड पाठ के भोग के बाद निकाला जाता है नगर कीर्तन
सतगुरु जी ने एक गधी मंगवाई और ब्राह्मणों को दान दिया, लेकिन ब्राह्मणों ने इसको लेने से इंकार कर दिया। एक नौजवान पंडित ने अपनी मां की आज्ञा से यह दान स्वीकार कर लिया जो वास्तव में एक महान बहुमूल्य तथा दूध देने वाली गाय थी। सतगुरु मेहरबान होकर उस माई के घर पधारे तथा बहुत धन दान दिया। कहा जाता है अपने तांबे का पटा भी इस स्थान पर दिया। जहां पर आज गुरुद्वारा पट्टा साहिब है। आज ब्रह्मसरोवर के किनारे गुरु जी जिस स्थान पर आए थे वहां गुरुद्वारा दसवीं पातशाही स्थापित है। गुरु जी के प्रकाशोत्सव पर इसी गुरुद्वारा साहिब में अखंड पाठ के भोग उपरांत नगर कीर्तन निकाला जाता है। 

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अमरेंद्र सिंह।

गुरु जी थे महान योद्धा, कवि, भक्त व आध्यात्मिक गुरु 
गुरुद्वारा छठी पातशाही के प्रबंधक सरदार अमरेंद्र सिंह बताते हैं कि गुरु गोबिंद सिंह एक महान योद्धा, कवि, भक्त एवं आध्यात्मिक गुरु थे। सन 1699 में बैसाखी के दिन उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की। जो सिखों के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है। गुरू गोबिंद सिंह ने पवित्र ग्रंथ श्री गुरु ग्रंथ साहिब को पूरा किया तथा उन्हें गुरु रूप में सुशोभित किया। 


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