हरियाणा से अब गन्ना क्रांति, इस विधि से 30 साल तक काटिये फसल
एक घंटे से भी कम समय में पानी आ जाता है गन्ने की फसल में। चार क्विंटल बीज लगता है आंख लगाने की विधि से खेती करने में। 600 क्विंटल गन्ना प्रतिवर्ष निकल रहा है प्रति एकड़ में।
सतीश चौहान, कुरुक्षेत्र : हरियाणा में लंबी चलने वाली वस्तुओं के लिए कहावत है कि दादा लगाएगा और पोता बरतेगा। जीरो बजट प्राकृतिक खेती से ऐसा ही दावा किया जा रहा है। गुरुकुल कुरुक्षेत्र में गन्ने को लगाए चार वर्ष से अधिक का समय हो गया है। अब तक न तो उत्पादन में कमी आई है और न ही गन्ने में कोई बीमारी आई है। जब गन्ने में किसी प्रकार का रासायनिक खाद नहीं डाला जाएगा, वह न केवल ज्यादा निकलेगा बल्कि उसकी जड़ें भी मजबूत होंगी। गुरुकुल के कृषि फार्म में लगे गन्ने की पैदावार प्रति वर्ष प्रति एकड़ 500 क्विंटल से 600 क्विंटल है। कहा जा रहा है कि इस विधि से लगाया गया गन्ना 30 साल तक पैदावार देगा। हालांकि कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि इस दावे की जांच की जाएगी। अगर इस विधि से सही में लाभ मिला तो वे एडवाइजरी जारी करेंगे।
मेढ़ पर लगाएं गन्ना
गुरुकुल कुरुक्षेत्र के संरक्षक और हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने देश भर से आए कृषि वैज्ञानिकों को फार्म पर लगाए गन्ने की फसल को दिखाया। उन्होंने बताया कि उन्होंने पहले रसायनिक और बाद में जैविक खेती भी की। पिछले कई सालों से वे प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। गन्ने को मेढ़ पर लगाया और उसमें इतनी जगह भी छोड़ी है कि हवा और धूप जा सके। गन्ने को पर्याप्त मात्रा में धूप व हवा मिल पाती है।
30 क्विंटल नहीं, बल्कि चार क्विंटल लगाना है बीज
गन्ने की बुआई के समय केवल गन्ने की आंख लगाई गई हैं। इससे बीच वाला गन्ना भी बच गया है। इसके कारण प्रति एकड़ 30 क्विंटल लगने वाले बीज घटकर चार क्विंटल रह गए हैं। इससे खर्च में भारी कमी आई है।
80 प्रतिशत पानी की बचत
गुरुकुल फार्म में लगाई गन्ने की पूरी फसल मेढ़ों पर है। इसके कारण इनकी खालियों में ही पानी दिया जाता है। आचार्य ने बताया कि पानी की मात्रा कम ही रखी जाती है। पानी जड़ों का नहीं लगना चाहिए बल्कि उन तक केवल नमी पहुंचनी चाहिए। अन्य किसानों द्वारा गन्ने में प्रति एकड़ पानी देने में चार घंटे से अधिक का समय लगता है, जबकि हमारे फार्म में एक घंटे से कम समय में प्रति एकड़ गन्ने की फसल में पानी आ जाता है।
जीवामृत से बढ़ती है पैदावार
आचार्य ने बताया कि गन्ने में जीवामृत किसी औषधि से कम नहीं है। रासायनिक खाद से गन्ने की जड़ें कमजोर हो जाती हैं और हमारे मित्र कीट मर जाते हैं। उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों को दिखाया कि खेत में किस प्रकार आज भी केंचुए जिंदा हैं और अपना कार्य कर रहे हैं।
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