सुधर जाइए, उत्पाद में धोखा देने से पहले जरा इस खबर को पढ़ लें
बीमा कंपनियों से लेकर ऑटोमोबाइल कंपनियों को उपभोक्ताओं को धोखा देना भारी पड़ गया। बार-बार टरकाने और सुनवाई न करने पर पीडि़तों ने उपभोक्ता फोरम का दरवाजा खटखटाया।
पानीपत/अंबाला, [उमेश भार्गव]। उत्पाद के नाम पर धोखा देने वालों के लिए यह खबर वाकई सबक है। इसे पढऩे के बाद धोखे के नाम पर लूट मचा रहीं कंपनियों के मन में सजा का डर जरूरत आएगा। अगर विश्वास नहीं हो रहा तो उपभोक्ता फोरम की इस कार्रवाई को ही देख लो।
बीमा कंपनियों से लेकर ऑटोमोबाइल कंपनियों ने मनमर्जी चलाई तो उपभोक्ताओं ने फोरम का दरवाजा खटखटा दिया। दो साल में रिकार्ड 1432 केस सुलझाकर उपभोक्ता फोरम ने अंबाला में करोड़ों रुपये का मुआवजा दिलाकर न केवल उपभोक्ता के अधिकारों का हनन होने से बचाया बल्कि कंपनियों की मनमर्जी पर शिकंजा भी कस दिया।
फोरम में जाते ही कंपनी कर रही समझौता
अब कंपनियों में उपभोक्ता फोरम का डर सताने लगा है। फोरम में मामला जाने के बाद कंपनियां उपभोक्ताओं से समझौते को तैयार हो रहीं हैं। पिछले दो महीने में करीब 10 से ज्यादा ऐसे केस हैं जिनमें कंपनियां उपभोक्ताओं से समझौते को तैयार हो गईं।
सेकेंड हैंड कार थमाई तो दिलाया 1.5 लाख मुआवजा
मॉडल टाउन अंबाला शहर निवासी एडवोकेट बीएस जसपाल की पत्नी चरणजीत कौर को नई की जगह सेकेंड हैंड कार डब्ल्यूआरवी एक्सएमटी डीजल मॉडल शिवा होंडा मोटर्स अंबाला शहर से खरीदी थी। लेकिन कंपनी ने चालाकी दिखाते हुए उन्हें सेकेंड हैंड कार थमा दी। पता उस समय चला जब गाड़ी एक माह बाद खराब हो गई और उसे सर्विस के लिए जे जाया गया तो सर्विसिंग का बिल किसी दूसरे नाम से निकला। कंपनी ने अपनी गलती नहीं मानी तो चरणजीत कौर ने उपभोक्ता फोरम में याचिका डाली। फोरम ने 1.5 लाख का जुर्माना 9 प्रतिशत ब्याज सहित और 5 हजार रुपये केस खर्च दिलाए।
चोरी हुए ट्रक का क्लेम देने से इंकार करने पर दिलाए 10 लाख
एनओसी की आड़ में न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी ने ट्रक चोरी होने पर बलदेव नगर निवासी सतीश चावला को बीमा लाभ देने से इंकार कर दिया। सतीश ने 26 नवंबर 2015 को न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी से 25 नवंबर 2016 तक अपने ट्रक की बीमा पॉलिसी ली। इससे पहले 10 नवंबर 2015 को सतीश ने किसी दूसरे व्यक्ति को यह ट्रक बेचना तय कर लिया। उसके लिए एनओसी भी निकलवा दी। लेकिन निर्धारित समय तक ट्रक लेने वाला ओमप्रकाश पूरी राशि नहीं दे सका। इसीलिए सतीश व ओप्रकाश के बीच हुआ एग्रीमेंट रद हो गया। इसके बाद 2 दिसंबर 2015 को ट्रक चोरी हो गया। इसी कारण बीमा कंपनी ने क्लेम देने से इंकार कर दिया। कहा कि उसने ट्रक की एनओसी निकलवा ली थी। ऐसे में वह क्लेम का हकदार नहीं बनता। दूसरा ट्रक चोरी होने के 24 दिन बाद उपभोक्ता के मामला दर्ज करवाया। लेकिन उपभोक्ता फोरम के सामने कंपनी की दलील नहीं टिकी। उपभोक्ता फोरम ने कहा कि शिकायतकर्ता ने ट्रक चोरी होने के बाद पुलिस कंट्रोल रूम में तुरंत सूचना दी, 9 दिसंबर को क्लेम के लिए आवेदन भी कर दिया। सुभाष ने बाद में सारी जानकारी आरटीआइ से ली । इसमें 24 दिन का समय लगा। इसमें में पुलिस ने ट्रक चोरी होने के मामले को अनट्रेस होने की बात कही। फोरम ने कहा कि जब तक ट्रक किसी दूसरे के नाम रजिस्टर्ड नहीं होता उसका मालिक वही रहेगा जिसके नाम वह है। एनओसी जारी होने का मतलब यह नहीं कि ट्रक दूसरे के नाम हो गया। दूसरा यदि इस ट्रक से हादसा हो जाता तो उसका जिम्मेदार भी तो ट्रक का मालिक यानी सुभाष ही होता। ऐसे में सुभाष ही वास्तविक हकदार बनता है। इस तरह फोरम ने 9 प्रतिशत ब्याज सहित 10 लाख देने के निर्देश बीमा कंपनी को दिए।
मुआवजे के लिए जब साबित करनी पड़ी मौत
पति की मौत के बावजूद पत्नी को बीमा कंपनी से मुआवजा लेने के लिए पति की मौत का साबित करना पड़ा। इसमें एक साल लग गया। इस मामले में उपभोक्ता फोरम ने फतेहाबाद में रहने वाली रोशनी पत्नी इसाल मोहम्मद को 9 प्रतिशत ब्याज सहित करीब 10 लाख रुपये देने के निर्देश एचडीएफसी लाइफ इंश्योरेंस कंपनी को दिए। साथ ही 5 हजार रुपये वकील के खर्च के भी याची को देने के निर्देश दिए हैं। हुआ यूं कि फतेहाबाद क गांव भोदिया खेड़ा में रहने वाले इसाल मोहम्मद ने 21 जुलाई 2015 को एचडीएफसी स्टेंडर्ड लाइफ इंश्योरेंस, की अंबाला छावनी निकलसन रोड ब्रांच से लाइफ संपूर्ण समृद्धि प्लान लिया। इसकी एवज में करीब 16 हजार रुपये की किश्त भी इसाल ने जमा करा दी। इसी तरह उसने 14 दिसंबर 2015 को इसी शाखा से दूसरी पॉलिसी लाइफ सुपर सेविंग प्लान ले ले लिया। इसके लिए उन्होंने साल की 30 हजार रुपये की किश्त भी जमा करा दी। इसमें इसाल मोहम्मद ने नोमिनी अपनी पत्नी रोशनी को बनाया। लाइफ सुपर सेविंग प्लान में 20 साल किश्त जमा कराने पर 4 लाख 91 हजार और संपूर्ण समृद्धि प्लान में मौत पर 5 लाख का क्लेम उसकी पत्नी रोशनी को मिलना था। पॉलिसी लेने से पहले इसाल का डाक्टरी परीक्षण भी करवाया गया। इसकी रिपोर्ट भी सर्टिफिकेट्स के साथ लगाई गई थी। इनमें उसे स्वास्थ्य बताया गया था। पॉलिसी लेने के करीब दो माह बाद 8 फरवरी 2016 को इसाल की मौत हो गई। उसकी पत्नी ने क्लेम मांगा लेकिन कंपनी ने देने से यह कहते हुए इंकार कर दिया कि इसाल मोहम्मद की मौत को पॉलिसी लेने से पहले ही भिवानी में हो गई थी। इसके लिए कंपनी ने इसाल नाम के व्यक्ति का डेथ सर्टिफिकेट भी दिखा दिया।
ये भी केस हैं सबक
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- खुद के सर्वेयर की रिपोर्ट नकार जब रोका क्लेम तो फोरम ने दिलाए 18 लाख
- मौत पर मांगा क्लेम तो अड़ाना चाहा उम्र का पेंच, विधवा को दिलाए 2 लाख