बेटे ने जिद ठानी तो पिता ने ब्याज पर रुपये लेकर बनाया फुटबॉल चैंपियन
मजदूर पिता ने आर्थिक स्थिति का हवाला देकर बेटे को खेल से दूर रहने की नसीहत दी। बावजूद बेटे ने फुटबॉलर बनने की जिद की। पिता को झुकना पड़ा। अब तक दीपक 08 पदक जीत चुके हैं।
पानीपत [विजय गाहल्याण]। प्यासो रहो न दश्त (जंगल) में बारिश के मुंतजिर (इंतजार करने वाला), मारो जमीं पे पांव कि पानी निकल पड़े। सफलता की राह में मुश्किलें अक्सर रोड़ा बनकर सामने आ खड़ी होती हैं, लेकिन अच्छे समय के इंतजार में वक्त बर्बाद करने वालों को मंजिल नहीं मिलती। परिस्थिति को बदलने के लिए अगर लगन और मेहनत को साध लिया जाए तो सफलता खुद-ब-खुद कदम चूमती है। जींद के नरवाना के 16 वर्षीय दीपक इसकी मिसाल हैं।
उन्होंने 11 साल की उम्र में ही फुटबॉलर बनने का सपना संजो लिया था। लेकिन, मजदूर पिता ने खराब आर्थिक स्थिति का हवाला देकर पढ़ाई और नौकरी की ओर ध्यान लगाने का फरमान सुना दिया। दीपक ने भी हार नहीं मानी। जिद की, यहां तक कि दो दिन के लिए खाना-पीना तक छोड़ दिया। अंत में पिता को हार माननी पड़ी और ब्याज पर पैसे लेकर बेटे के सपने को पूरा करने में मदद की। दीपक ने भी उन्हें निराश नहीं किया। आज उनकी झोली में राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय कुल आठ पदक हैं।
ऐसे शुरू हुआ जुनून
दीपक ने पांच साल पहले नरवाना के स्टेडियम में राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी अनूप और जस्सू को फुटबॉल खेलते देखा था। उनके मन में भी फुटबॉलर बनने की ज्वाला जाग उठी। जीवन का लक्ष्य तय हो चुका था, लेकिन पिता को मनाने के बाद अब मुफलिसी से जंग थी। नरवाना में संसाधनों की कमी भी आड़े आ रही थी। ऐसे में पिता प्रकाश सिंह ने दीपक को रोशनी दिखाई। ब्याज पर पैसे लेकर उन्होंने बेटे को गांव दिवाना के मजेस्टिक फुटबॉल एकेडमी में दाखिला कराया। दीपक ने यहां खेल की बारीकी सीखी और निकल पड़े पिता, मां और बड़े भाई की आकांक्षाओं और अपने सपने को पूरा करने। उन्होंने नेशनल सीबीएसई फुटबॉल और नेशनल फुटबॉल चैंपियनशिप में दो स्वर्ण और राज्यस्तरीय फुटबॉल चैंपियनशिप में छह स्वर्ण पदक जीत मंजिल की ओर कदम बढ़ा दिया है।
'लठ' के नाम से पुकारते हैं साथी
डीपीएस पानीपत सिटी के 11वीं कक्षा के छात्र दीपक की लंबाई छह फीट है। अपने दोस्तों में सबसे लंबा है। दोस्त भी उसे प्यार से 'लठ' के नाम से पुकारते हैं। वह उनकी बातों का भी बुरा नहीं मानता है। अब दोस्त ही उसकी सफलता पर कहते हैं कि 'लठ' ने लठ गाड़ दिया है। इस खेल की बदौलत गांव में उसे नई पहचान मिली है। परिवार का भी मान बढ़ा है। कोच जोगेंद्र भौक्कर, केके सांगवान और प्रदीप कादियान ने उसे खेल के गुर सिखाए। डीपीएस पानीपत के वाइस चेयरमैन अमित राणा ने उन्हें मुफ्त शिक्षा दी। दीपक कहते हैं कि अगर वह खिलाड़ी नहीं होते तो डीपीएस जैसे बड़े संस्थान में कभी शिक्षा भी हासिल नहीं कर पाता।
छह घंटे अभ्यास, खुराक पर सात हजार खर्च
दीपक ने बताया कि वह हर रोज सुबह-शाम छह घंटे अभ्यास करता है। खुद को ही अपना आदर्श खिलाड़ी मानता है और मुकाबला भी खुद से ही है। उसके दूध और घी पर हर महीने सात हजार रुपये खर्च हो जाते हैं।