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बचपन में अनाथ छोड़ गया पिता, अब बालकुंज में दे रही हौंसलों को उड़ान

जिस बेटी माया को अनाथ आश्रम में छोड़कर चला गया अब वह दूसरे लोगों के लिए नजीर बन गई है। माया इस समय यमुनानगर के डा. जयप्रकाश शर्मा मैमोरियल स्कूल एंड नर्सिंग कालेज से जीएनएम का कोर्स कर रही।

By Anurag ShuklaEdited By: Published: Fri, 20 Nov 2020 12:27 PM (IST)Updated: Fri, 20 Nov 2020 12:27 PM (IST)
बचपन में अनाथ छोड़ गया पिता, अब बालकुंज में दे रही हौंसलों को उड़ान
यमुनानगर बालकुंज में रह रही होनहार बेटी माया।

पानीपत/यमुनानगर, जेएनएन। आठ साल की आयु में जिस बेटी को पिता अनाथ छोड़कर चला गया। अब उसने अपने दम पर मुकाम हासिल करने की ठानी है। यह कहानी है बालकुंज में रह रही माया की। माया इस समय यमुनानगर के डा. जयप्रकाश शर्मा मैमोरियल स्कूल एंड नर्सिंग कालेज से जीएनएम का कोर्स कर रही है। इस वर्ष उसका फाइनल है। यहां तक पहुंचने के लिए उसके रास्ते में कई बाधाएं आई, लेकिन मजबूत इच्छा शक्ति से वह सभी बाधाओं को पार करती चली गई। अब उसे पूरा विश्वास है कि कोर्स पूरा करने के बाद नौकरी मिल जाएगी। जिससे वह अपनी बहन को भी बालकुंज से निकालकर अपने साथ रख सकेगी।

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माया जिस समय आठ साल की थी। उसके पिता रोहतक के गांव बंबेवा में कंवल सिंह के यहां मजदूरी करते थे। मां की टीबी की वजह से मौत हो गई। पिता पर माया व उसकी छोटी बहन सीमा का भार आ गया। वह भी इस भार को अधिक दिन तक नहीं उठा सका और एक दिन दोनों बेटियों को लावारिस छोड़कर चला गया। इसके बाद वापस नहीं लौटा। कंवल सिंह ने दोनों बच्चियों को कुछ दिन संभाला और बाद में अपना घर रोहतक में छोड़ दिया। यहां भी दुखों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा और रोहतक अपना घर आश्रम पर छापा पड़ा। यहां से लड़कियों को मुक्त कराया गया। इनमें माया भी थी। माया व उसकी बहन सीमा को वर्ष 2012 में बालकुंज छछरौली में भिजवाया गया। यहां पर पहले जब दोनों बहनें पहुंची, तो गुमशुम रहने लगी। माया की सालों तक काउंसलिंग चली। वह बार-बार घर जाने की जिद करती थी, लेकिन नाबालिग होने की वजह से उनकी कस्टडी किसी को दी नहीं जा सकती थी।

पैरामेडिकल स्टाफ को देखकर बदला मन  

बालकुंज स्टाफ ने माया की काउंसलिंग शुरू की और उसका कक्षा छह में दाखिल करा दिया। ताकि उसका मन पढ़ाई में लग जाए। माया का कहना है कि उन्हें माता पिता की काफी याद आती थी। वह भी और बच्चों की तरह अपने घर रहना चाहती थी। जब उसकी पढ़ाई शुरू हुई, तो धीरे-धीरे बातें समझ में आने लगी। बालकुंज में पैरामेडिकल स्टाफ को देखती, तो उनके जैसा बनने का मन करने लगा। किसी तरह से 12वीं कर ली। इसके बाद  नर्स बनने के लिए पढ़ाई करना लक्ष्य था। इसमें भी कई दिक्कतें थी। फीस का इंतजाम वह कहां से करें। जब भी बालकुंज में कोई अधिकारी निरीक्षण करने आता, तो उसके सामने बस यही मांग रखती कि उसे नर्स का कोर्स करना है। रोहतक में कोर्स करने की इच्छा थी, लेकिन वहां नंबर नहीं आ सका और फीस भी अधिक थी। बाद में बालकुंज के ही तत्कालीन अधीक्षक सुखमिंद्र सिंह ने प्रयास किए और किसी तरह से फंड जुटाकर यमुनानगर के नर्सिंग कालेज में दाखिला कराया। बस मन में एक ही धुन थी कि यह कोर्स कर नर्स बनना है। इसलिए खूब मेहनत से पढ़ाई की। अब आगे जीवन में कोई दुख न आए। नर्स बनकर सेवा करना चाहती हूं। अभी छोटी बहन दसवीं में है। उसे भी आगे पढ़ाना है।

कभी नहीं सोचा था इतना पढ़ लेंगे

माया का कहना है कि अब हालातों को देखते हैं, तो समझ में आता है कि पिता की मजदूरी में शायद कभी इतना नहीं पढ़ पाते। लेकिन जो प्यार मां बाप का मिलना चाहिए था। उससे महरूम रहे। अब यही संतोष है कि पढ़ाई पूरी हो गई है। नौकरी मिल जाए और आगे का जीवन इससे भी अच्छा गुजरे।


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