पुलिस की नौकरी छोड़ आर्गेनिक सब्जी उगाने लगे, लस्सी-गोबर से बनाते हैं खाद, पड़ोसियों की भी बल्ले-बल्ले
पांच सौ गज में उगाते हैं सब्जी पड़ोसियों को भी बांटते। हर माह की सब्जी खर्च से मिली निजात तीन हजार की बचत होने लगी। आनलाइन बीज मंगाते हैं। वक्त से तीन साल पहले वीआरएस लेकर सब्जी उत्पादन में लगे एएसआइ।
पानीपत, जेएनएन। आपको एक ऐसे शख्स से मिलवाते हैं, जो वक्त से पहले पुलिस की नौकरी छोड़कर सब्जी उगाने लग गए। ये सब्जी बेचने के लिए नहीं, बल्कि अपने परिवार और आसपड़ोस की सेहत सुधारने के लिए उगाने लगे। उनके इस प्रयास से आसपास के लोगों का भी सब्जी खर्च बचने लगा है। आर्गेनिक सब्जी अलग से मिलने लगी। ये हैं रिटायर्ड एएसआइ सुभाष वर्मा। 58 साल की उम्र में रिटायर होना था। लेकिन तीन साल पहले ही वीआरएस लेकर घर आ गए। लक्ष्य था, अच्छी सब्जी उगाना ताकि उनकी वह परिवार की सेहत अच्छी रहे।
पूर्व एएसआइ सुभाष वर्मा कहते हैं कि वह ब्रांडेड कंपनियों के बीज आनलाइन बाहर से मंगाते हैं। कंपनी के निर्देश के अनुसार उसका पौध लगाते। सिंचाई और देखरेख करते हैं। आर्गेनिक खाद का प्रयोग करते। रासायनिक खाद नहीं डालते हैं। बीमारी लगने पर लस्सी, नीम के पत्ते, गोबर आदि की देसी दवा का प्रयोग करते हैं। उनकी सब्जी का आकार भले ही छोटा हो, लेकिन उनमें पौष्टिकता बहुत अधिक होती है। स्वाद भी अन्य सब्जी से बेहतर होता है।
बाजार की सब्जी को तौबा, बचत को बढ़ावा
खुद की सब्जी होने से उन्होंने बाजार से हरी सब्जी खरीदना बंद कर दिया। प्रतिदिन सब्जी पर होने वाले 70 से 80 रुपये खर्च में कमी आई है। स्वजनों की सेहत ठीक रहने के साथ बीमारियों से छुटकारा मिला।
पड़ोसी भी ले जाते हैं सब्जी
वर्मा की किसानी से आसपास के लोगों की बल्ले बल्ले हो गई है। जरूरत पड़ने पर वे बेधड़क उनके पास पहुंच जाते हैं। बाग में लगी सब्जी तोड़कर अपनी जरूरत पूरी कर लेते हैं। घीया, भिंडी और तोड़ी के सीजन में पैदावार अधिक होने पर वर्मा स्वयं दूसरे के घर सब्जी पहुंचाते हैं। लोगों को ले जाने के लिए कहते हैं।
इनका करते उत्पादन
हरी मीर्च, भिंडी, आलु, लहसुन, प्याज, गाजर, मूली, मैथी, धनिया, टमाटर, घीया. तोरी, बैगन, चप्पल कद्दू, फूल और बंधा गोभी, सिंगार, सीम आदि की पैदावार करते हैं। सुबह शाम दो से तीन घंटे बाग में समय देते।
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