क्या आप शोले के इन किरदारों को जानते हैं, क्या जिंदगी इनकी तरह तो नहीं होती जा रही
कोई पीडि़त है तो कोई नायक। कोई किसी वक्त खलनायक है तो किसी वक्त लाचार। आज जो नायक है क्या वो कल खलनायक नहीं बनेगा? इस सवाल का जवाब तलाशना होगा। तनाव दूर कर सकता है ये जवाब।
पानीपत, जेएनएन। आपने शोले फिल्म जरूर देखी होगी। कोई नायक है, कोई पीडि़त है और कोई खलनायक। पर क्या कभी आपने चौथे किरदार के बारे में सोचा है। ये किरदार इस फिल्म में तो नहीं दिखाया पर हम अपनी जिंदगी में जरूर उसे उतार सकते हैं। अगर ऐसा कर पाए तो सारे तनाव दूर हो सकते हैं। पानीपत के मनोचिकित्सक डॉ.सुदेश खुराना ने इस किरदार को दिलचस्प तरीके से न केवल समझाया बल्कि जिंदगी में इसे कैसे उतारें, यह भी बताया। खुराना दैनिक जागरण कार्यालय में माइंड मैनेजमेंट वर्कशॉप में बोल रहे थे।
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा, कोई अगर ये कहे कि आपको जिंदगी में नायक नहीं बनना है तो आपकी सबसे पहली प्रतिक्रिया क्या होगी ? संभव है कि आप सवाल पूछने वाले पर हैरानी जताएं। ये भी पूछ सकते हैं कि दुनिया में कौन ऐसा होगा, जो हीरो नहीं बनना चाहेगा। पर मेरा मानना है कि आपको हीरो नहीं, मददगार मोड में रहने वाला इंसान बनना चाहिए। किसी भी फिल्म के बारे में सोचें। चलिए, शोले को ही ले लेते हैं। इस फिल्म में तीन किरदार हैं। पहले गांव वाले, जो बेहद दुखी हैं। यानी जो हमेशा पीड़ित रहते हैं।
किरदार ये बोलते हैं
शोले के पीडि़त किरदार इतनी नकारात्मक सोच के शिकार हो चुके हैं कि कोई अगर उनकी मदद के लिए आगे आता है तो एक-दूसरे को कह देते हैं कि क्यों इन्हें फंसाया जा रहा है। दूसरा किरदार है गब्बर सिंह। जाहिर है कि वो विलेन की भूमिका है। जैसे हमारी जिंदगी में कोई हमें परेशान करता है तो वो हमारे लिए विलेन ही होता है। तीसरा किरदार है, अभिनेता संजीव कुमार। यह गांव वालों को बचाने के लिए हीरो बनने की कोशिश करता है। अमिताभ और धर्मेद्र भी इसी तीसरी श्रेणी में आते हैं। क्या आप यकीन से ये कह सकते हैं कि कोई भी हीरो, किसी विलेन को हराने के बाद कमजोर वर्ग का शोषण नहीं करेगा। क्या वो नायक बनते-बनते खलनायक नहीं बन जाएगा। हो सकता है कि वो बाद में कमजोर लोगों को पीड़ित करने लगे। उन्हें अपनी तरह से जिंदगी जीने को मजबूर कर दे। तब फिर क्या किया जाना चाहिए।
मददगार बनना इसलिए है जरूरी
दरअसल, हमें चौथे विकल्प की तरफ बढ़ना चाहिए। जिंदगी में हमें दो पाठ पढ़ाए जाते हैं। पहला नैतिकता का और दूसरा मानवता का। हम नैतिकता की तरफ मुड़कर सही और गलत का फैसला करने लग जाते हैं।मानवीय व्यवहार करना भूल जाते हैं। यहीं पर खड़ा है वो चौथा किरदार। यानी, मददगार इंसान। अगर हम हेल्पर मोड में आते हैं तो जिंदगी से सारे तनाव दूर हो जाएंगे। हम हीरो बनने के चक्कर में किसी को हुक्म न सुनाने लग जाएं। अपने बच्चों, ऑफिस के साथियों और दोस्तों के साथ हेल्पर मोड में रहें। यहां तक की बॉस के साथ भी ऐसे ही रिश्ते बनाएं। इस तरह से काम करना भी आसान होगा।
करना ये होगा, दिमाग को सक्रिय बनाएं, गलती स्वीकारें
पहले ये मानना होगा कि हमारा दिमाग सक्रिय है। प्रगतिशील है। वो निष्क्रिय नहीं है। वह पीड़ित नहीं है। जैसे, कोई गलती करते हैं तो उसी समय उसे स्वीकार कर लें। अगर तैरना नहीं आता तो मान लें कि तैरना नहीं आता। इसके बाद तैराकी करने के बारे में सोचें। जब तक आप खुद की गलती मानेंगे ही नहीं, तरक्की नहीं कर सकेंगे।
दिमाग की जकड़न क्या होती है, इसे उदाहरण से समझें
एक व्यक्ति पेड़ की छांव के नीचे बैठा था। उसे हर कोई समझाता कि कोई न कोई काम किया कर। पर उस पर कोई फर्क नहीं पड़ता था। एक दिन, सरपंच ने उसे कहा कि काम करना चाहिए। तब उसने पूछा क्यों। सरपंच ने कहा, काम करेगा तो पैसा आएगा। उसने कहा, फिर क्या होगा। सरपंच बोले- पैसा आएगा तो शादी होगी। उसने पूछा, फिर। जवाब मिला- बच्चे होंगे। फिर। जवाब था- वो पैसे कमाएंगे। तुम आराम से जिंदगी जिओगे। उसने कहा- अब भी तो आराम कर रहा हूं। इतनी सारी मेहनत क्यों करूं। तो ये होती है दिमागी जकड़न। ऐसे लोग सुख तो चाहते हैं पर मेहनत नहीं करना चाहते। तरक्की के लिए कर्म करना होगा।