वाटर और सॉल्ट मैनेजमेंट पर नहीं ध्यान, देश की लाखों हेक्टेयर जमीन बंजर
वाटर और सॉल्ट मैनेजमेंट आने वाले वक्त की सबसे बड़ी चुनौती। अगर ध्यान दिया होता तो लाखों हेक्टेयर जमीन बंजर न होती। केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान की अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेस।
करनाल [मनोज ठाकुर]। केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में चल रहे 25 देशों के वैज्ञानिकों के विचार मंथन में बंजर होती जा रही जमीन को लेकर नई बात निकलकर सामने आई। वैज्ञानिकों ने बताया कि 1996-97 के सर्वे के मुताबिक देश में 67.4 लाख हेक्टेयर बंजर भूमि है। वाटर मैनेजमेंट और सॉल्ट मैनेजमेंट पर ध्यान नहीं देने के कारण हमारे सामने यह स्थिति बनी है।
1966-67 में इंडिया में ग्रीन रेवूल्यूशन के दौरान किसान ने फसलों में जब पहला पानी लगाया तो पहले के मुकाबले 1.5 गुणा फसल अधिक हुई। फसल में दूसरी बार पानी की मात्रा बढ़ाई तो दो गुणा ओर तीसरी बार तीन गुणा फसल अधिक हुई। इस स्थिति से किसानों ने समझ लिया कि जितना अधिक पानी लगाएंगे फसल अच्छी होगी। यह समझकर किसानों ने उस एरिया में फसलों में पानी अधिक लगाया जहां पर सेलाइन एरिया था। जहां पर वाटर टेबल 20 फीट पर था, वहां अब दो से पांच फीट तक आ गया। किसान इस ढर्रे पर चलते गए और वाटर लॉङ्क्षगग की प्रोबलम हमारे सामने खड़ी हो गई। ड्रेनेज की तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया। वाटर मैनेजमेंट नहीं किया गया। जमीन बंजर होने का प्रमुख कारण यह भी रहा।
दूसरा बड़ा कारण
रिसर्च के मुताबिक धान की फसल में जो ङ्क्षसचाई हम करते हैं उस पानी के साथ एक साल में एक टन सॉल्ट जमीन में जमा हो जाता है। ठीक इसी प्रकार गेहूं में आधा टन, कॉटन में 1.2 टन गन्ने में दो टन सॉल्ट एकत्रित हो जाता है। बरसात अच्छी हो जाती है तो यह जमीन में दो मीटर नीचे खिसक जाता है, नहीं तो जमीन की उर्वरा शक्ति को प्रभावित करता है। धीरे-धीरे जमीन बंजर होनी शुरू हो जाती है। इसलिए शुरूआत से ही वाटर व सॉल्ट मैनेजमेंट की तरफ ध्यान दिया जाना चाहिए था।
इसके लिए जिम्मेदार कौन?
लगातार बढ़ रही बंजर जमीन को लेकर सवाल यह भी खड़ा हुआ कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है? वैज्ञानिकों ने कहा कि समय रहते हमने सरकार को स्पष्ट कर दिया कि वाटर व सॉल्ट मैनेजमेंट की तरफ ध्यान दिया जाए। इसके लिए ङ्क्षसचाई विभाग और कृषि विभाग की जिम्मेदारी थी। अब यह जानकारी किसानों तक नहीं पहुंची कि अधिक मात्रा में ङ्क्षसचाई भी उनकी जमीन की सेहत बिगाड़ रही है। जब बात गले तक आ पहुंची तो हवाइयां उड़ गई हैं।
समझिये...क्लाइमेट चेंज क्या है और जमीन की सेहत से क्या संबंध?
आज से 20 साल पहले तक क्लाइमेट चेंज का असर कम दिखाई देता था, लेकिन अब स्पष्ट तौर पर दिखाई देने लगा है। कभी ज्यादा मात्रा में बरसात हो जाती है तो कभी बरसात होती ही नही है। कभी सर्दियों में भी मौसम का मिजाज गर्म हो जाता है तो कभी तापमान शून्य की ओर चला जाता है। यह क्लामेंट चेंज के संकेत हैं। अब जमीन से संबंध कुछ इस तरह से है। फसल के लिए पानी की जरूरत होती है। भूजल से जो फसलों में ङ्क्षसचाई करते हैं उसमें सॉल्ट की मात्रा होती है। अच्छी बरसात में तो सॉल्ट नीचे चला जाता है, लेकिन बरसात अगर नाममात्र हो तो जमीन के साथ सॉल्ट मिल जाता है और उर्वरा शक्ति कम हो जाती है।
अब आगे क्या?
बंजर जमीन आगे ना बढ़े इसके लिए वैज्ञानिकों ने कहा हमने वाटर और सॉल्ट मैनेजमेंट के लिए तकनीक विकसित की है। माइक्रो इरिगेशन, स्प्रीकंलर, ग्रेडिड बार्डर इरिगेशन तकनीक ऐसी हैं जो वाटर मैनेजमेंट और सॉयल मैनेजमेंट के लिए काफी हद तक ठीक हैं। लेकिन किसानों तक पहुंचाना सरकार का काम। ऐसी मजबूत पॉलिसी बनाने की जरूरत है जिससे किसान बंजर जमीन हो रही जमीन को बचा सके। भविष्य में हमारे सामने चुनौतियां पैदा ना हों।