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घोषणापत्र पर चुनाव आयोग जवाब मांगे तो मजबूत होगा लोकतंत्र

कैसे बढ़ें चुनाव घोषणापत्र की अहमियत विषय पर जागरण विमर्श के तहत दो विशेषज्ञों ने अपनी राय रखी। इस दौरान चुनाव आयोग को सख्‍त होने से सुधार होने बात सामने आई।

By Edited By: Published: Tue, 09 Apr 2019 09:58 AM (IST)Updated: Tue, 09 Apr 2019 09:58 AM (IST)
घोषणापत्र पर चुनाव आयोग जवाब मांगे तो मजबूत होगा लोकतंत्र
घोषणापत्र पर चुनाव आयोग जवाब मांगे तो मजबूत होगा लोकतंत्र

पानीपत, जेएनएन। लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दलों ने घोषणापत्र जारी करना शुरू कर दिया है। वे अपने-अपने मुद्दों और दावों को लेकर आए हैं और आएंगे भी। ऐसे में जनता को उनकी बातों में आने के बजाय घोषणापत्र को खुद पढ़कर उनके बारे में जानना होगा। वे प्रतिनिधियों से उनके पिछले घोषणापत्र के बारे में पूछें। ऐसा करने से उनकी अहमियत बढ़ेगी और एक दिन पार्टियां जनता के मुताबिक घोषणापत्र लाने को मजबूर होंगी।

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दैनिक जागरण कार्यालय में सोमवार को जागरण विमर्श कार्यक्रम में यह बात निकलकर सामने आई। मुख्य वक्ता नगर परिषद के पूर्व चेयरमैन मुकेश टुटेजा और डीएवी कॉलेज करनाल के प्राचार्य डॉ. आरपी सैनी रहे। दोनों विशेषज्ञों ने कैसे बढ़ें चुनाव घोषणापत्र की अहमियत विषय पर अपनी बात रखी और सवालों के जवाब देकर सबकी जिज्ञासा शांत की। विमर्श में निकलकर आया कि चुनाव आयोग को भी इसमें सख्त होना होगा। कोई दल सत्ता में आने के बाद उन पर काम नहीं करता है तो अगले चुनाव तक उसके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। साथ ही विपक्ष जनहित में अपने घोषणापत्र के लिए संसद और विधानसभा में अपनी मांग उठाए।

जाति व धर्म की राजनीति नहीं करें दल
मुकेश टुटेजा नगर परिषद के पूर्व चेयरमैन एवं राजनीति के पंडित मुकेश टुटेजा ने कहा कि चुनाव घोषणापत्र हर पार्टी जारी करती है। वे इसके साथ अपने पिछले घोषणापत्र की समीक्षा भी इसमें जरूर करें। यह कम से कम 90 प्रतिशत पूरा हो जाना चाहिए। कई दल चुनाव के वक्त जनता को घोषणापत्र से भटका देते हैं। वे चुनाव से पहले ही अपने हिसाब से माहौल बना देते हैं। फिर जनता का ध्यान केवल उनके उठाए मुद्दों या सवालों पर ही रहता है। लोगों को घोषणा पूरी करने वाली पार्टियों के प्रतिनिधि को ही वोट देना चाहिए। पार्टियों और नेताओं को विकास और समस्याओं पर बात करनी चाहिए। विदेशों में चुनाव के वक्त इन्हीं पर डिबेट होते हैं। भारत में इसके विपरीत  होता है।

धर्म जाति के नाम पर हो रही राजनीति
कुछ दल जाति व धर्म की राजनीति करते हैं। वे इन्हीं सबको अपने घोषणापत्र में शामिल करती है। जनता के सवाल पूछने पर नेताओं की सोच में फर्क आएगा। वे मनमर्जी के विषयों को घोषणापत्र में शामिल नहीं करेंगे। जनता के पास अपनी बात मनवाने के लिए इससे अच्छा मौका नहीं मिलता। विपक्ष की लोकतंत्र में अहम भूमिका होती है। एक मजबूत विपक्ष जनता की मांगों को लागू कराने में सफल रहता है।

जनता की सहभागिता के बिना अच्छा घोषणापत्र नहीं बन सकता
डॉ. आरपी सैनी डीएवी कॉलेज करनाल के प्राचार्य डॉ. आरपी सैनी ने कहा कि आज सोशल मीडिया ने सूचनाओं को आसान कर दिया है। हर व्यक्ति के हाथ में मोबाइल है। वे एजेंडों के बारे में आसानी से जानकारी ले सकते हैं। जनता को घोषणापत्र पढ़ने तक नहीं रहना चाहिए, बल्कि जनप्रतिनिधियों से उनके बारे में सवाल भी पूछने चाहिए। वे चुनाव के समय मजबूती के साथ अपनी बात रख सकते हैं। कई देशों में जनप्रतिनिधि के खिलाफ प्रस्ताव भी ला सकते हैं। जनता एकजुट होकर यहां भी अपनी मांगों को मनवा सकती है। उनको नेताओं से उनके एजेंटों के बारे में पूछना चाहिए, लेकिन यहां इसके उल्ट है। जनता हर मुद्दे पर विपक्ष पर निर्भर रहती है। जनता की सहभागिता के बिना अच्छा घोषणापत्र नहीं बन सकता। आज दलों ने रोजगार और शिक्षा को एजेंडों से हटा दिया है। अब अलग तरह के एजेंडे देखने को मिल रहे हैं। जबकि इनका कोई सरोकार नहीं होता। समाज के पढ़े लिखे वर्ग को इसके लिए आगे आना होगा।


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