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पानीपत से बेटी बचाने की जंग छिड़ी, यहीं पर योजना में ढेर हो गए

बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ अभियान के तहत जिला पानीपत में लिंगानुपात सुधर नहीं सका।

By Edited By: Published: Tue, 20 Feb 2018 02:34 AM (IST)Updated: Wed, 21 Feb 2018 02:47 PM (IST)
पानीपत से बेटी बचाने की जंग छिड़ी, यहीं पर योजना में ढेर हो गए
पानीपत से बेटी बचाने की जंग छिड़ी, यहीं पर योजना में ढेर हो गए
राज सिंह, पानीपत बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ अभियान के तहत जिला पानीपत में लिंगानुपात निगरानी के लिए स्वास्थ्य विभाग को डैश बोर्ड बनाना था। इसका उद्देश्य आकड़ों की सटीक जानकारी और इसकी मॉनिटरिंग करना था। महिला एवं बाल विकास विभाग के सहयोग से आंकड़े जुटाने थे। घोषणा के सवा साल बाद भी डैश बोर्ड नहीं बन सका हैै। इधर, लिंगानुपात शहर में 823 व देहात में 777 के निम्न स्तर तक पहुंच गया है। दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 जनवरी 2015 को पानीपत की धरती से बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का संदेश पूरे देश को दिया था। उस समय पानीपत का लिंगानुपात 837 था। वर्ष 2017 के अंत तक यह 945 तक पहुंचा। जिला पानीपत प्रदेश में नंबर वन भी बना। जनवरी 2018 की रिपोर्ट आई तो लिंगानुपात धड़ाम होकर वर्ष 2015 से भी नीचे 823 तक पहुंच गया। देहात में तो 777 तक सिमटकर रह गया है। इसका बड़ा कारण लिंगानुपात के आंकड़ों पर सही ढंग से निगरानी रखने के लिए डैश बोर्ड नहीं बनना भी बताया जा रहा है। डैश बोर्ड के निर्माण में जिला सूचना विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग को तकनीकी सहयोग प्रदान करना था। डैश बोर्ड पर न केवल हर गांव का डाटा अपलोड होना था बल्कि आम व्यक्ति लिंग परीक्षण, एमटीपी किट बिक्री व झोलाछापों की सूचना भी दे सकता था। पीएनडीटी टीम के किस सदस्य ने कितनी सूचनाएं दी, कितनी छापेमारी व कार्रवाई हुई, यह डाटा भी डैश बोर्ड में लगातार अपडेट होना था। इस संबंध में सिविल सर्जन डॉ. संतलाल वर्मा ने बताया कि पीएनडीटी टीम ने पुराना डाटा सही ढंग से मैटेंन नहीं किया हुआ है। फाइलों को दुरुस्त कराया जा रहा है। जल्द ही डैशबोर्ड बना लिया जाएगा। जनवरी में 900 से कम लिंगानुपात वाली पीएचसी : सिवाह 804, काबड़ी 778, अहर 885, बापौली 881, उग्राखेड़ी 700, पट्टी कल्याणा 545, सींक 867, इसराना 444 शामिल है। डैशबोर्ड में यह होता खास : -संबंधित विभागों द्वारा हर गांव के आंकड़े देना। -विभागों के कामकाज में पारदर्शिता व विश्वसनीयता लाना। -घर बैठे आनलाइन गांव का लिंगानुपात देख सकते थे। -डाटा आनलाइन होने से आलाधिकारियों द्वारा निगरानी। -संवेदनशील गांवों पर खास फोकस रह सकता था। -आकड़ों की मैन्यूअल प्रविष्टि वाली गलतियों पर रोक लगती। -आंकड़ों की गणना और मूल्यांकन सरल।

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