ये कैसे भगवान, मौत का खौफ दिखा हो रहे धनवान
जिंदगी बचाने वाले भगवान ही अब मौत का खौफ दिखा अपनी झोली भरने में जुटे है। जी हां, ये सच है। इन दिनों प्रदेश में कुछ ऐसा ही हो रहा है। जानिए क्या है हकीकत।
जेएनएन, पानीपत: प्रदेश भर में इन दिनों मौत का खौफ दिखा झोली भरने का खेल चल रहा है। धरती के कुछ भगवान हल्की सी बीमारी का डर मरीजों में भांप कर अच्छी खासी रकम वसूल रहे हैं। ये हम नहीं बल्कि स्वास्थ्य विभाग की सरकारी रिपोर्ट में इस तरह का पर्दाफाश हुआ है। जानने के लिए पढि़ए दैनिक जागरण की ये खबर।
निजी चिकित्सक डेंगू के नाम पर मरीजों को गुमराह कर रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट में यह सामने आया है। जिन मरीजों के डेंगू के टेस्ट निजी अस्पतालों से पॉजीटिव भेजे गए, वह सरकारी लैब में फेल हो रहे हैं। पानीपत, अंबाला, करनाल सहित यमुनानगर आदि जिलों में कुछ ऐसा ही हाल है।
यमुनानगर में 211 में से केवल 34 को डेंगू
यमुनानगर में सितंबर व अक्टूबर में लिए गए निजी अस्पतालों व लैब के 211 सैंपल में से 34 में डेंगू मिला है। हालांकि अभी इनकी रिपोर्ट भी स्वास्थ्य विभाग के पास नहीं पहुंची है। ऐसे में निजी अस्पतालों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठना लाजमी है।
इन दिनों पनपता है डेंगू का मच्छर
गर्मियों व बरसात के दिनों में डेंगू का मच्छर पनपता है। जो नवंबर माह तक रहता है। इन दिनों में सबसे अधिक डेंगू व मलेरिया के मरीज अस्पतालों में पहुंचते हैं। हल्का सा बुखार होते ही मरीज का डेंगू व मलेरिया का टेस्ट कराया जाता है। लोग भी डेंगू व मलेरिया से बचाव के लिए चिकित्सकों की सलाह मान लेते हैं।
टेस्ट के नाम पर भी चल रही वसूली
सरकारी अस्पताल के अलावा अधिकतर लोग प्राइवेट चिकित्सकों के पास बुखार के इलाज के लिए पहुंचते हैं। मरीजों का डेंगू के नाम पर कार्ड बेस टेस्ट किया जाता है। इसके लिए लैब व निजी अस्पताल मरीजों से फीस वसूलते हैं। जबकि यह सरकार की ओर से मान्य ही नहीं है।
डेंगू के लिए होता है एलीजा टेस्ट
डेंगू की जांच के लिए मरीजों का एलीजा टेस्ट होता है, लेकिन प्राइवेट चिकित्सक कार्ड बेस टेस्ट करते हैं। जिसमें डेंगू का सही पता नहीं लग पाता। सरकार के 2020 तक डेंगू रहित करने का लक्ष्य रखा गया है। इसलिए ही प्राइवेट अस्पतालों व लैब के जरिए होने वाले डेंगू के टेस्टों की अपनी लैब में जांच करवाता है। इसमें अलग-अलग टेस्ट होते हैं। यदि सात दिन से बुखार है, तो एनएसआइ किट से जांच होती है। सात दिन से अधिक होने पर आइजीएम किट से जांच होती है। डेंगू के टेस्ट की रिपोर्ट आने में भी तीन घंटे लगते हैं। जबकि निजी अस्पतालों व लैब में कार्ड बेस जांच कर तुरंत रिपोर्ट बता दी जाती है।
25 हजार तक प्लेटलेट्स पर खतरा नहीं
बुखार व डेंगू में मरीज की प्लेटलेट्स कम हो जाती है। स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक 25 हजार तक प्लेटलेट्स रहने तक कोई खतरा नहीं है। यदि इससे नीचे प्लेटलेट्स आती है, तो मरीज को एडमिट करने की जरुरत है। जबकि निजी चिकित्सक एक लाख प्लेटलेट्स होने पर मरीज को एडमिट कर लेते हैं और उनसे डेंगू के नाम से मोटी फीस वसूलते हैं।
डेंगू व मलेरिया के केस पिछले साल के मुकाबले कम
वहीं अंबाला के सिविल सर्जन डॉ. संतलाल वर्मा ने बताया कि पिछले साल की तुलना में मामले कम आए हैं। जहां मामले सामने आ रहे हैं वहां जागरूकता के साथ साथ जरूरी कदम उठाए जा रहे हैं। डेंगू वार्डों में अगर कहीं कोई दिक्कत है तो बारीकी से सुधार के लिए कहा गया है। पीएमओ को बताया गया है कि जो कर्मचारी काम नहीं कर रहा है उसके लिए नो वर्क नो पे का फार्मूला अपनाया जाए।
पानीपत में भी दिख रहा खौफ
पानीपत के भी निजी अस्पतालों में करीब दो सौ से ज्यादा मरीजों को संदिग्ध डेंगू का बुखार बता इलाज किया जा रहा है। जबकि स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों पर गौर फरमाएं तो एक व्यक्ति की डेंगू से मौत और करीब तीन संदिग्ध हैं।