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घूंघट में रहता था जो प्रदेश, अब वहां के इस तरह बदले हालात

पानीपत दैनिक जागरण कार्यालय में बदल रहा हरियाणा 922 पर आयोजित एक सामूहिक परिचर्चा में इंजीनियर, टीचर, डॉक्टर और एडवोकेट सहित फैशन जगत से जुड़ी महिलाओं ने विचार साझा किए।

By Ravi DhawanEdited By: Published: Sat, 16 Feb 2019 05:57 PM (IST)Updated: Sat, 16 Feb 2019 06:19 PM (IST)
घूंघट में रहता था जो प्रदेश, अब वहां के इस तरह बदले हालात
घूंघट में रहता था जो प्रदेश, अब वहां के इस तरह बदले हालात

पानीपत, जेएनएन। लिंगानुपात में सुधार के आंकड़े बता रहे हैं कि हरियाणा बदल रहा है। बेटियों को शिक्षित और सशक्त बनाने की दिशा में लागू की गई सरकार की योजना सफल हो रही है। वर्ष 2001 में 819, 2011 में 830 और अब 2019 की जनगणना के आंकड़ों में प्रति हजार लड़कों पर बेटियों की संख्या 922 तक पहुंच गई है। इस सुधार का श्रेय बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान को भी जाता है। समाज में बेटियों के प्रति मानसिकता में बदलाव आया है। 

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सेक्टर-29 पार्ट-2 स्थित दैनिक जागरण कार्यालय में बदल रहा हरियाणा 922 पर आयोजित एक सामूहिक परिचर्चा में शहर की इंजीनियर, टीचर, डॉक्टर और एडवोकेट सहित फैशन जगत से जुड़ी महिलाओं ने विचार साझा किए। प्रबुद्ध महिलाओं ने कहा कि लड़कों को तीन-चार साल की उम्र से ही लड़कियों के सम्मान की सीख देनी होगी। इसके साथ ही बेटियों को सशक्त बनाना होगा। बेटियां अपने पैरों पर खड़ी होंगी तो माता-पिता उन्हें बोझ नहीं मानेंगे।

खत्म हो भेदभाव
महिलाओं को समानता का अधिकार मिला हुआ है। छेड़छाड़, दुष्कर्म, दहेज हत्या, घरेलू ङ्क्षहसा, बाल तस्करी जैसे अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए कानून में कठोर सजा का भी प्रावधान है। समाज में बचे भेदभाव को दूर करने के लिए अभी काफी कुछ किया जाना बाकी है। लड़कियों को अच्छी शिक्षा देकर, शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनाना होगा। 
एडवोकेट पद्मा रानी, चेयरपर्सन-सीडब्ल्यूसी

लड़कियों को आर्थिक आजादी मिले  
लोकतंत्र में महिलाओं को समान अधिकार तो मिला है, लेकिन वर्चस्व पुरुषों का है। महिला सरपंच-पार्षद-मेयर चुनी जाती हैं, कुर्सी का कामकाज उनके पति-भाई और पिता संभालते हैं। बच्चे भी ऐसा माहौल देखते हैं तो उन्हें लगता है कि पुरुष ही सब कुछ है। महिलाओं को आर्थिक आजादी मिले तो तस्वीर बदल सकती है। 
मंजू अग्रवाल, सिविल इंजीनियर 

पर्दा प्रथा से ऊपर उठना होगा 
लिंगानुपात का मामला हो या बेटियों के उत्पीडऩ का.. ज्यादा दिक्कत गांवों में है। महिलाएं पर्दे में रहने के लिए मजबूर हैं। गांव से बाहर निकलने का मौका भी कम मिलता है, इसलिए अपनी पीड़ा किसी से कह भी नहीं पातीं। महिलाओं को शैक्षिक, राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से मजबूत बनाना होगा। 
डॉ. संगीता गुप्ता, एचओडी, इतिहास विभाग, एसडीपीजी कॉलेज 

कानून सख्त, समाज बदले
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2015 में बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान की शुरुआत की थी। उसके सुखद परिणाम सभी के सामने हैं। पीसीपीएनडीटी एक्ट को भी सख्ती से लागू किया गया है। अब बस समाज को अपनी धारणा बदलनी होगी। बच्चों को सिखाना होगा कि लड़का-लड़की में कोई छोटा-बड़ा नहीं है। 
डॉ. रत्ना राठी, स्त्री रोग विशेषज्ञ 

समाज की मानसिकता बदले 
यह बात ठीक है कि समाज में लड़कियों के प्रति भेदभाव कम हुआ है। पहले लड़कियों को मुश्किल से स्कूल भेजा जाता था। अब बदलाव आया है। लड़कियां हॉस्टल में रहकर भी पढ़ाई कर रही हैं। हालांकि, अभी कुछ कसर बाकी है। समाज लड़कियों के प्रति अपनी मानसिकता बदले, उन्हें लड़कों के समान आगे बढऩे के अवसर मिलने चाहिए। 
रजनी बेनीवाल, मिसेज पानीपत-2017

लड़कों को सिखाना जरूरी
लड़कियों के साथ भेदभाव बड़ा और पुराना विषय है। इसमें सुधार के लिए सिरे से तैयारी करनी होगी। सर्वप्रथम तो प्राइमरी स्तर के स्कूल पाठ्यक्रम में बदलाव होना चाहिए। लड़कियों का सम्मान करना लड़कों को बचपन से सिखाना होगा। सास-बहू के रिश्ते भी मां-बेटी की तरह मजबूत होने चाहिए। 
सुरेखा कुमार, प्रधानाचार्या- ब्लू वेल स्कूल

घर का माहौल सुधारें
माता-पिता को चाहिए कि कभी ऐसा मौका न आने दें जिससे बेटी खुद को बेटों से कमजोर महसूस करे। उसके सपनों का सम्मान करें। उसे भी खेलने-कूदने की आजादी मिले। आत्मसुरक्षा के गुर भी सिखाएं ताकि जरूरत पडऩे पर भाइयों का मुंह न ताकना पड़े। वह अकेले दम पर कुछ करना चाहती है तो उसे सपोर्ट करें। 
दीपिका अरोड़ा, सीए 

माहौल का बदलना जरूरी 
आज लड़कियां हर क्षेत्र में लड़कों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं। इसके बावजूद उन्हें रात्रि पहर में ड्यूटी करने, सुनसान रास्तों से गुजरने में डर लगता है। गलती समाज की है हमने बेटियों को जन्म तो दे दिया, सुरक्षा का माहौल नहीं दे सके। मानसिकता सुधरे तो बेटियां समाज की उन्नति में बड़ा योगदान दे सकती हैं। 
अंकिता टूटेजा, एडवोकेट


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