प्रकृति की गोद में मनाएं नववर्ष, जानिए पहाड़ों से लेकर धार्मिक स्थलों के बारे में Panipat News
नए साल पर कहीं बाहर घूमने-फिरने का मन करे तो दूर की सैर जरूरी नहीं। इस बार आसपास के क्षेत्रों में नववर्ष कहां मनाएं यह हम बता रहे हैं। पढि़ए ये खबर..।
पानीपत, जेएनएन। इस बार नववर्ष पहाड़ों की गोद में धार्मिक स्थल पर मनाया जा सकता है। अगर आप नव वर्ष मनाने की प्लानिंग कर रहे तो इन वादियों में हरियाली का आनंद भी लिया जा सकता है। ये नजारा मुफ्त में लिया जा सकता है। इसके लिए ज्यादा दूर भी जाने की जरूत नहीं है।
यदि आप दूर नहीं जाना चाह रहे तो शहर में भी नया वर्ष का जश्न मना सकते हैं। उसके लिए शहर के होटल भी सजे हुए है। जेब ढीली करनी पड़ सकती है। लेकिन यदि कम खर्च में नए साल का मजा लेना चाहते हैं, तो कई विकल्प मौजूद हैं।
प्रकृति रोमांच का नजारा
प्रकृति का रोमांच भी। कलेसर नेशनल पार्क के दरवाजे खुले हैं। इसका कुल क्षेत्रफल 11570 एकड़ और वन्य प्राणी विहार 13422 एकड़ में फैला हुआ है। उत्तराखंड के राजा जी नेशनल पार्क और हिमाचल प्रदेश के सिंपलवाड़ा नेशनल पार्क की सीमाएं भी इससे सटी हैं। नजदीक से ही यमुना नदी बह रही है। साथ ही हथनीकुंड बैराज, ताजेवाला भी दर्शनीय स्थल है।
प्रवेश द्वार के नजदीक बनी है टिकट विंडो
कलेसर नेशनल पार्क में न केवल आसपास बल्कि विदेशों से भी सैलानी घूमने के लिए आते हैं। सार्वजनिक यात्र के लिए खुला है। पार्क की प्रवेश द्वार के निकट एक टिकट विंडो और रिसेप्शन सेंटर स्थापित किया गया है। विकेंड के साथ-साथ विशेष अवसरों पर यहां आने वालों की संख्या बढ़ जाती है। पाकिर्ंग, विश्रम कक्ष, पेयजल जैसी सार्वजनिक सुविधाएं भी उपलब्ध हैं। विभाग की ओर से दो सफारी गाड़ियों की व्यवस्था की हुई है। यह गाड़ी 16 किलोमीटर की यात्र करवाती है।
दुलर्भ प्राणी
कलेसर पार्क में घूमने से न केवल रोमांचक नजारा देखने को मिलता है, बल्कि जंगल में दुलर्भ प्राणी भी हैं। यहं तेंदुए, सांबर, चित्तल, नीलगाय, डीयर, बिल्ली, जंगली धब्बेदार बिल्ली, हाथी, गोरल, सिनेट, लांगुर, बंदर जैसे जानवरों की प्रजातियां शामिल हैं। सुअर व मोंगोज भी यहां पाए जाते हैं। राजाजी राष्ट्रीय उद्यान से भी कई बार बाघ और हाथी इस क्षेत्र में आ जाते हैं। हाथी भी कलेसर पार्क में वास करते हैं।
ये देना होगा यहां शुल्क
पार्क की यात्र के लिए विभाग की ओर से कुछ शुल्क भी निर्धारित किया हुआ है। इसके लिए बड़ों के लिए 30 रुपये का टिकट, बच्चे के लिए 10 रुपये, गाड़ी की पाकिर्ंग के 20 रुपये, कैमरा प्रयोग करने के लिए 50 रुपये व वीडियो कैमरा प्रयोग करने के लिए 500 रुपये शुल्क निधार्रित है। गाड़ी का किराया 500 रुपये है।
धार्मिक स्थान पर ये भी विकल्प
कलेसर में दूसरी ओर आदिबद्री धाम भी मौजूद है। यहां सरस्वती उद्गम स्थल के साथ माता मंत्र देवी व कैदार नाथ मंदिर मंदिर है। सामान्य दिनों में भी यहां घूमने के लिए दूर-दराज से लोग आते हैं। इसके अलावा पंचमुखी हनुमान मंदिर बसातियांवाला और सूरजकुंड मंदिर अमादलपुर में काफी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। नववर्ष के मौके पर भी यहां काफी चहल-पहल महसूस की जाती है। दूर दराज से लोग यहां नववर्ष मनाने के लिए पहुंचते रहे हैं। इस बार भी पर्यटकों के आने की उम्मीद है।
टोपरा कलां में है देश का बड़ा अशोका चक्र
यमुनानगर में रादौर क्षेत्र के टोपरा कलां गाव में देश का सबसे बड़ा अशोका चक्र स्थापित किया गया है। इससे गांव की प्रसिद्ध विश्व स्तर पर पहुंच चुकी है। इसके साथ ही इतिहास और विशेषताएं भी इसी चक्र पर अंकित की गई हैं। जो यहां आने वाले हर पर्यटक को यहां के महत्व से रूबरू कराने के लिए काफी है। टोपरा कला के इस अशोक चक्र को देखने के लिए किसी प्रकार कोई टिकट आदि नहीं देना पड़ता। इस लिहाज से टोपराकला भी पयर्टकों और घूमने के शौकीनों के लिए इस बार नए साल पर घूमने का अच्छा विकल्प साबित हो सकता है।
करनाल में कर्ण लेक की सुंदरता पर फिदा होते सैलानी
करनाल से महज पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित कर्ण लेक की सुंदरता पर सैलानी फिदा हो जाते हैं। वीकएंड पर परिवार के साथ इस पर्यटन स्थल पर आकर यादगार पलों का संजोया जा सकता है। लेक पर बोटिंग करते हुए वक्त बीतने का पता भी नहीं चलता है। आसपास के जिलों के लोग समय मिलने पर लेक पर पहुंच जाते हैं। पूरा दिन बिताने के बाद शाम के समय अपने घरों को भी लौट जाते हैं। इसके साथ ही केंद्र पर रात्रि विश्रम के लिए भी कमरों का बंदोबस्त भी है। करनाल की कर्ण लेक की स्थापना 1974 में तत्कालीन मुख्यमंत्री बंसीलाल ने की थी। तब से लेकर अब तक कर्ण लेक आसपास के जिलों के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र है। इसके ासाथ ही हाइवे से गुजरते दिल्ली, चंडीगढ़, पंजाब व हिमाचल प्रदेश के लोग भी कर्ण लेक पर बड़े चाव के साथ रुकते हैं। यहां समय व्यतीत करना उन्हें सुखद अहसास करवाता है। कर्ण लेक पर रेस्टोरेंट में कई तरह के लजीज व्यंजन मिल जाएंगे। रेस्टोरेंट के साथ ही बार भी बनी हुई है। पारंपरिक भोजन के साथ साथ यहां पर बफे का इंतजाम भी किया जाता है। रेस्टोरेंट में बने खाने का स्वाद एक बार चखने के बाद लोग बार बार यहां आना चाहते हैं। इसके साथ ही यहां पर फास्ट फूड का इंतजाम भी रहता है। जबकि खाने का कंबो पैक भी लोग खूब पसंद करते हैं। इसमें राजमा-चावला सहित कई डिश का कंबो पैक शामिल है।
22 बोट व एक मोटर बोट करवाती है लेक की सैर
कर्ण लेक की सैर के लिए 22 बोट व एक मोटर बोट का इंतजाम किया गया है। परिवार सहित लोग मोटर बोट में सवार होना ज्यादा पसंद करते हैं तो नवविवाहित जोड़े पैडल बोट की सवारी ज्यादा पसंद करते हैं। कर्ण लेक में पानी का इंतजाम पास से बहती नहर से किया जाता है। जब भी पानी की जरूरत होती है नहर से ही पानी लेक में डाला जाता है। सुरक्षा के लिहाज से बोट की सवारी करने वालों को लाइफ जैकेट पहनाने का इंतजाम भी किया जाता है।
आलीशान बैंक्वेट हॉल बढ़ जाएगी कर्ण लेक की शान
कर्ण लेक के पास ही विभाग की करीब 24 एकड़ जगह खाली पड़ी है। इस पर शादी के लिए बड़ा बैंक्वेट हाल बनाने का जारी है। यह काम लगभग 75 प्रतिशत तक पूरा हो चुका है। , यानि आने वाले दिनों में यहां शादियां व पार्टियां भी होंगी। इसमें करीब एक हजार लोगों का प्रबंधन किया जा सकता है। इसके साथ ही करीब तीन एकड़ में पार्किंग बनाई जा रही है। यहां पर लिफ्ट बनाने का काम भी किया जा रहा है। कर्ण लेक के टूरिस्ट आफिसर अनिल बजाज का कहना है कि बैंक्वेट हाल बनने के बाद अलग अलग विशेष दिवसों पर पर्यटन के लिहाज से यहां कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
नए साल पर यहां मत्था टेककर मांगते हैं मन्नत
बाला छावनी और अंबाला शहर से करीब 10 किलोमीटर दूर गुरुद्वारा श्री लखनौर साहिब सिखों की आस्था का केंद्र है। यह गुरुद्वारा गांव लखनौर में स्थित है। श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की पत्नी और श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की मां माता गुजरी का जन्म यहां हुआ था। बाद में उनके माता-पिता करतारपुर साहिब चले गए, जहां उन्होंने गुरु तेग बहादुर साहिब जी से विवाह किया। जब गुरु तेग बहादुर और माता गुजरी बिहार दौरे पर थे, वहां बाल गोबिंद राय (गुरु गोबिंद सिंह) का जन्म हुआ। माता गुजरी वहां रहीं और गुरु तेग बहादुर असम और बांग्लादेश के दौरे पर चले गए। माता जी और बाल गोबिंद राय वहां 5 साल तक रहे और बाद में गुरु तेग बहादुर जी की सहमति से माता गुजरी, बाल गोबिंद राय पंजाब के लिए रवाना हुईं। रास्ते में लखनौर साहिब पहुंचे। माता और गुरु जी यहां 6 महीने तक रहे। उनके साथ तीन बिस्तर थे, (जिनमें से 2 बेड और 2 पावा अभी भी संरक्षित हैं), 2 प्रान्त और कई गुरु साहिब के हथियार वहाँ अभी भी संरक्षित हैं। गुरु गोबिंद सिंह ने खेलों के अतिरिक्त गतका बाजी, तीरंदाजी, नेजा, ढाल तथा तलवारबाजी का अभ्यास भी नियमित रूप से करते थे। यहां पर रहते उन्होंने कई चमत्कार दिखाएं और उनके द्वारा दिखाए गये चमत्कारों के स्थान पर आज गुरूद्वारा मरदों साहिब व गांव भानोखेडी में गुरूद्वारा गेंदसर साहिब के नाम से भव्य गुरूद्वारों का निर्माण किया गया है। लखनौर साहिब में ही गुरु गोबिंद सिंह के मामा ने दशहरे वाले दिन उनकी दस्तारबंदी की थी।
पंजोखरा साहिब गुरुद्वारा भी कम दर्शनीय नहीं
गुरुद्वारा पंजोखरा साहिब गुरुद्वारा आठवीं गुरु श्री हरकृष्ण साहिब की याद को समर्पित है। दिल्ली जाने के लिए गए थे। यह अंबाला-नारायणगढ़ रोड पर स्थित, पंजोखरा पहुंचे। उन्होंने किरतपुर से पंजोखरा तक अपनी यात्र के दौरान रोपर, बनूर, रायपुरा और अंबाला से यात्र की। उन्होंने पंजोखरा को देखा। यहां एक शिष्य ने कुछ दिन पंजोखरा में रुकने का आग्रह किया। यहां पर एक पंडित रहते थे, जिनको अपने ज्ञाप पर काफी घमंड था। बताया जाता है कि गुरुजी से कहा कि वे गुरु नानक की गद्दी पर बैठते हैं, लेकिन पुरानी धार्मिक किताबों के बारे में क्या जानते हैं। इसी स्थान पर उन्होंने एक गूंगे के मुख से गीता जी के श्लोकों आ उच्चारण कराया और यह संदेश दिया कि सभी समान हैं। इसके बाद पंडित जी गुरु के शिष्य बने और अपना सारा जीवन सिख धर्म के प्रचार प्रसार में लगा दिया। इसी स्थान पर गुरु जी ने रेत का टिल्ला बनाकर यहां पर निशान साहिब की स्थापना की, जो आज भी मौजूद है। इसके अलावा गुरुद्वारा पंजोखरा साहिब में सरोवर भी बनाया गया जो आज विस्तृत रूप ले चुका है। गुरु जी यहां पर तीन दिन रहे और सभी को धर्म की शिक्षा दी।