कोरोना वायरस आशंकित को भर्ती करने से इन्कार पर केस दर्ज
कोरोना वायरस (कोविड-19) के आशंकित मरीज को भर्ती नहीं करना प्राइवेट अस्पताल को भारी पड़ेगा।
जागरण संवाददाता, पानीपत:
कोविड-19 के आशंकित मरीज को भर्ती नहीं करने पर पार्क अस्पताल के खिलाफ केस दर्ज हो गया। सेक्टर-29 स्थित थाने में यह कार्रवाई सिविल सर्जन पानीपत की शिकायत पर हुई।
सिविल सर्जन डॉ.संतलाल वर्मा ने बताया कि एनएफएल निवासी को वहीं के डॉक्टर ने आइसोलेशन वार्ड में भर्ती करने के लिए पार्क अस्पताल प्रबंधन से बात की। पुलिस ने अस्पताल प्रबंधन के खिलाफ आइपीसी की धारा धारा 188, 269, 270 के तहत कार्रवाई की है।
दूसरी ओर पार्क अस्पताल के मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ. अजित श्रीवास्तव ने बताया कि एनएफएल के डॉक्टर की कॉल आई थी कि आशंकित केस है, भर्ती कर लें। पार्क अस्पताल का एनएफएल के साथ टाइअप भी है। कॉल करने वाले डॉक्टर को बताया कि पहले से दो मरीज एडमिट हैं। आशंकित केस है तो उसे पहले सिविल अस्पताल टेस्ट के लिए भेजो। वहां से रेफर होगा, तभी एडमिट करेंगे। सिविल सर्जन ने मुकदमा क्यों दर्ज कराया, इसकी जानकारी नहीं है। धारा 188 : कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी के जीवन, स्वास्थ्य और सुरक्षा से खिलवाड़ करता है तो उसके खिलाफ इस धारा में मुकदमा दर्ज होता है। अस्पताल से भागे मरीज के खिलाफ भी इसी धारा में मुकदमा दर्ज होता है। छह माह की सजा एक हजार रुपये जुर्माना का प्रावधान है। धारा 269 : कोई व्यक्ति किसी संक्रमण से ग्रस्त है और वह किसी दूसरे को भी संक्रमित कर सकता है या इसका कारण बनता है तो उसके खिलाफ इस धारा के तहत दंडित किया जा सकता है। छह माह की सजा और जुर्माना का प्रावधान है। धारा 270 : कोई व्यक्ति जानता हो कि संकटपूर्ण स्थिति में संक्रमण फैलना संभव है, वह उसे रोकने का प्रयास नहीं करे तो इस धारा में मुकदमा दर्ज होता है। दो साल की सजा और जुर्माना का प्रावधान है। महामारी कानून : केंद्र सरकार ने कोरोना वायरस को हराने के लिए 123 साल पुराने महामारी रोग अधिनियम, 1897 के सेक्शन-2 का भी सहारा लिया है। इस सेक्शन के मुताबिक, सरकार रोग से बचाव के लिए जरूरी नियमावली बना सकती है। यात्रा पर रोक लगा सकती है। लोगों को जांच, उपचार और प्रवास के लिए बाध्य कर सकती है। उल्लंघन पर जुर्माने से दंडित कर सकती है।