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गुटों में बंटी कांग्रेस का गुटों में ही क्यों स्वागत, क्‍यों जीटी रोड पर कांग्रेस में आया करंट

कांग्रेस के प्रदेश अध्‍यक्ष तो बने हैं उदयभान लेकिन सक्रिय हैं पूर्व मुख्‍यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा। जीटी बेल्‍ट पर दस घंटे से ज्‍यादा लंबे समय तक चला भूपेंद्र सिंह हुड्डा का काफि‍ला जगह-जगह हुआ भव्‍य स्‍वागत। पढ़िए अब आगे क्‍या होने वाला है।

By Rajesh KumarEdited By: Published: Thu, 05 May 2022 01:30 PM (IST)Updated: Thu, 05 May 2022 01:30 PM (IST)
गुटों में बंटी कांग्रेस का गुटों में ही क्यों स्वागत, क्‍यों जीटी रोड पर कांग्रेस में आया करंट
हरियाणा कांग्रेस में गुटबाजी का खेल जारी।

पानीपत, जागरण संवाददाता। दोपहर के बारह बजे थे। जीटी रोड पर टोल के नजदीक पसीन से तर-बतर थे वरिन्द्र शाह। संजय अग्रवाल। ऐसे ही दूसरे नाम जो कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने के दावेदार हैं। इनकी निगाह दिल्ली की तरफ थी। वहीं से भूपेंद्र सिंह हुड्डा का काफिला पानीपत की ओर आ रहा था। चंडीगढ़ की ओर रवाना होना था। काफिले पर फूल बरसाए जाने थे। किसी समय पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा के सामने नंबर बढ़ाने की होड़ में रहने वाले नेता, अब भूपेंद्र सिंह हुड्डा की गुड बुक्स में आना चाहते हैं। पहले भी गुटों में बंटी थी, अब भी कांग्रेस गुटों में बंटी है। जानिये, क्यों गुटों में हुआ स्वागत और आगे क्या होगा।

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दो सौ मीटर में ही तीन टेंट क्यों

पानीपत के टोल प्लाजा पर कांग्रेसियों के तीन टेंट लगे थे। टोल शुरू होने से पहले संजय अग्रवाल का टेंट था। कुमारी सैलजा के समर्थक रहे। उन्हीं की वजह से शहर से टिकट मिला। चुनाव नहीं जीत सके। टोल के बाद ग्रामीण नेता अमर सिंह रावल का टेंट लगा था। उनसे पचास मीटर दूर ही वरिन्द्र शाह के समर्थक नाच रहे थे। वरिन्द्र शाह भी एक बार चुनाव लड़ चुके हैं। जीत नहीं सके। उनके भाई बलबीर पाल शाह विधायक रहे हैं। संजय अग्रवाल और शाह के बीच तकरार किसी से छिपी नहीं। इन दोनों का एक छत के नीचे आना ही संभव नहीं था। रावल ग्रामीण के नेता है। वह अपने नंबर बढ़ाने के लिए अलग टेंट में इसलिए थे, क्योंकि उन्हें शाह और संजय अग्रवाल से अलग लाइन खींचनी है। वैसे, टोल पर टेंट एक ही होता तो संदेश सकारात्मक जाता।

जीटी बेल्ट महत्वपूर्ण क्यों

जीटी बेल्ट पर 36 सीटें हैं। 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 16, जजपा ने पांच सीटें जीतीं। यानी, 21 सीटों पर कब्जा। सोनीपत, पानीपत, जींद, कैथल, कुरुक्षेत्र, करनाल, यमुनानगर और अंबाला बेल्ट पर कांग्रेस पिछली बार कमजोर रह गई। अगर टिकटों बंटवारा सही होता तो सत्ता पर पंजे का कब्जे होता। भूपेंद्र सिंह हुड्डा इस बेल्ट की अहमियत समझते हैं। तभी काफिले के साथ चंडीगढ़ रवाना हुए। जगह-जगह हुए भव्य स्वागत ने कांग्रेस में करंट लाने का काम किया है।

अब आगे क्या

पानीपत शहर में बुल्ले शाह समर्थक ज्यादा सक्रिय होंगे। क्योंकि सैलजा के साथ उनकी पटरी नहीं बैठ रही थी। संजय अग्रवाल को ज्यादा मेहनत करनी होगी। उन्होंने हुड्डा के साथ फोटो तो कराया लेकिन शाह को दरकिनार करना आसान नहीं होगा। समालखा में धर्म सिंह छौक्कर और इसराना में बलबीर बाल्मीकि को फिलहाल चिंता नहीं है, क्योंकि वे पहले से ही हुड्डा ग्रुप में हैं। पानीपत ग्रामीण सीट पर घमासान हो सकता है, क्योंकि टिकट के दावेदार अधिक हैं।


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