कैथल की पहचान है भाई उदय सिंह का किला, अंग्रेजों ने किया था विरासत में शामिल
जिला प्रशासन कोई भी भव्य कार्यक्रम यहीं पर करवाता है। तीन साल से गीता जयंती पर कार्यक्रम भी यहीं करवाए जाते हैं। लेकिन इसका सिर्फ बाहरी सुंदरीकरण करवाया गया। इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता
पानीपत/कैथल, जेएनएन : भाई उदय सिंह का किला प्राचीन इतिहास समेटे हुए है। लेकिन, शहर के बीचों-बीच स्थित इस प्राचीन धरोहर की वर्तमान में अनदेखी हो रही है। दस साल पहले इस किले को विकसित करने के लिए काम तो शुरू हुआ था। लेकिन, आधे से ज्यादा कार्य अब भी अधूरा पड़ा हुआ है। किले को पर्यटन के रूप में विकसित किया जा सकता है।
बता दें कि जिले के इतिहास में भाई उदय सिंह किले का अपना एक अलग महत्व है। इस पर केवल बाहरी सुंदरीकरण करने के अलावा अन्य प्रकार से इसे विकसित नहीं किया गया है। हालांकि वर्ष 2013 में इस किले का जीर्णोद्धार तो हुआ, लेकिन यह जीर्णोद्धार केवल बाहर से दिखने तक ही सिमट कर रह गया। किले के अंदर कोई कार्य नहीं करवाया गया, जिससे इस स्थान को पर्यटन के रूप में विकसित करवाया जा सके। शहर ही नहीं, बल्कि पूरे जिले के लोगों के लिए यह आकर्षण का केंद्र है। जिला प्रशासन की ओर से भी यदि कोई भव्य कार्यक्रम आयोजित करना होता है तो उसे यहां आयोजित करवाया जाता है। पिछले तीन वर्षाें से गीता जयंती पर आयोजित होने वाला कार्यक्रम भी इसी स्थान पर आयोजित हो रहा है।
1843 के बाद कैथल को अंग्रेजों ने रियासत में किया था शामिल
इतिहासकार कमलेश शर्मा ने बताया कि भाई उदय सिंह का किला 1570 ई. में अकबर के काल में बना था। इसे अकबर ने सेना के लिए बनवाया था। इसके बाद सन् 1747 में सिखों का राज स्थापित हुआ था। जिसमें सिख शासक देसू सिंह ने इस क्षेत्र पर जीत हासिल करके कैथल को अपनी राजधानी बनाया था। उनके सुपुत्र लाल सिंह ने इस विरासत को संभाले रखा। उनके सुपुत्र लाल सिंह के पोते भाई उदय सिंह ने इसका विस्तार करनाल और जींद तक कर लिया था। किले के साथ भाई उदय सिंह ने किला के पास अपना महल भी बनवाया, जो वर्तमान में पुराना एसडीएम कार्यालय है। भाई उदय सिंह के पास कोई संतान नहीं थी। वर्ष 1823 में उन्होंने राजकाज संभाला इसके बाद उनकी 1843 में मृत्यु हो गई। इसके बाद इस किले के कारण कैथल को अंग्रेजों ने अपनी रियासत में शामिल कर लिया था।