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जान पर खेल फौजी दलजीत ने बचाई तीन जिंदगियां

अंबाला में जिसने भी मंजर देखा, उसकी रूह कांप उठी। हंसती-खेलती तीन जिंदगियों को पड़ोसी आग के आगोश में जाते देखते रहे। फरिश्ता बनकर आए दलजीत फौजी ने तीन जानों को आग में कूदकर बचाया।

By Ravi DhawanEdited By: Published: Wed, 12 Dec 2018 02:32 PM (IST)Updated: Wed, 12 Dec 2018 03:20 PM (IST)
जान पर खेल फौजी दलजीत ने बचाई तीन जिंदगियां
जान पर खेल फौजी दलजीत ने बचाई तीन जिंदगियां

उमेश भार्गव  अंबाला शहर : जिसने भी यह मंजर देखा, उसकी रूह कांप उठी। हंसती-खेलती तीन जिंदगियों को उनके पड़ोसी आग के आगोश में जाते देखते रहे, लेकिन बचाने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। फरिश्ता बनकर दलजीत फौजी ऊंची ग्रिल फांदकर जैसे-तैसे पहुंचा। यहां भी स्वास्थ्य विभाग का सिस्टम धोखा दे गया और एंबुलेंस कंट्रोल रूम में तीन बार फोन करने पर भी किसी ने नहीं उठाया। दलजीत फौजी के साहस की जितनी प्रशंसा की जाए कम है।

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सिक्कम में सिखलाई इन्फेंट्री में तैनात है दलजीत सिंह 

दलजीत सिंह सिक्कम में सिखलाई इन्फेंट्री में तैनात हैं। वह सोमवार को पत्नी की डिलीवरी के लिए ईश्वर अस्पताल पहुंचे। रात 12 बजे पास के मकान की छत पर दो मासूम बच्चों और एक व्यक्ति को जिंदा जलते देखा। बिना कोई देर किए अस्पताल की तीसरी मंजिल से उतर बच्चों और व्यक्ति को बचाने दौड़ पड़ा। करीब 12 बजकर 06 मिनट पर दलजीत अस्पताल की ग्रिल को फांद अस्पताल की छत से उस मकान की छत पर पहुंचा। वहां का मंजर देख वह दंग रह गया। देखा कि दो बच्चे और एक व्यक्ति पूरी तरह आग के आगोश में जा चुके थे। पास में ही एक महिला खड़ी थी। दलजीत को देखते ही चिल्लाने लगी। दलजीत ने जल रहे दीपक पर पानी डाला।

एंबुलेंस के लिए तीन बार फोन किए, नहीं हुए रिसीव

दलजीत ने 12:07 बजे एंबुलेंस कंट्रोल रूम में फोन किया लेकिन फोन नहीं उठा। एक मिनट बाद दोबारा फोन किया, फिर रिसीव नहीं हुआ। ईश्वर अस्पताल के मुख्य डॉ. नरेश जिंदल ने भी 12:09 बजे एंबुलेंस के लिए फोन किया लेकिन रिसीव नहीं हुआ। दलजीत ने पुलिस कंट्रोल रूम में सूचना दी। बाद में पुलिस ने ही एंबुलेंस बुलाई। दलजीत ने दो पुलिस कर्मियों की मदद से घायल दीपक और उसके छह वर्षीय बेटे को एंबुलेंस से नागरिक अस्पताल भेजा। चार वर्षीय लड़की भाविका को ईश्वर अस्पताल में भिजवाया।

नशे का सामान भी बरामद

छत पर उपलों के पास पुलिस को नशे के इंजेक्शन भी बरामद हुए हैं। माना जा रहा है कि इन्हीं इंजेक्शन का इस्तेमाल या तो खुद दीपक ने किया या फिर किसी ओर ने इस्तेमाल किया। संभव है कि बच्चों को भी नशा दिया गया हो।

अस्पताल स्टाफ ने भी दिखाई इंसानियत

ईश्वर अस्पताल के स्वीपर लवली, व डॉ. तपन ने मौके पर पहुंचकर परिवार की यथासंभव मदद की। हालांकि घटना के समय पड़ोसियों ने दूरी बनाए रखी। घर के मुख्य प्रवेश द्वार पर ताला लगा था। छह फीट ऊंचे मुख्य गेट के पिलरों को फांदने की हिम्मत किसी पड़ोसी ने नहीं दिखाई। बाद में पड़ोसी नवीन न केवल मौके पर पहुंचे, बल्कि घायलों को पहले जिला नागरिक अस्पताल और बाद में पीजीआइ चंडीगढ़ भी ले गए।

डेढ़ घंटे बाद अस्पताल पहुंची मां 

बताया जा रहा है कि दीपक ने अपनी साली की बेटी गोद ली थी। प्रबल उनका अपना बेटा था। करीब डेढ़ बजे दीपक की पत्नी आशु पास में ही ईश्वर अस्पताल पहुंची। डॉक्टरों की माने तो उस समय भी आशु सही हालत में थी।

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चिपक गए मासूम के होंठ, चिल्ला भी न पाया 

प्रत्यक्षदिर्शियों के मुताबिक छह साल का प्रबल चिल्लाना चाह रहा था, लेकिन जलने के कारण उसके होंठ चिपक चुके थे। भाविका भी तड़प रही थी। उधर, दलजीत सिंह मंगलवार को पिता बने। उनकी पत्नी ने बेटी को जन्म दिया।

 उठ रहे ये सवाल

1 जब दीपक कीपत्नी मौके पर खड़ी थी तो वह चिल्लाई क्यों नहीं, दलजीत के पहुंचने पर ही शोर क्यों मचाया?

2 बच्चों की कॉपी भी जली मिली, इन्हें क्यों जलाया गया?

3 चश्मदीदों के मुताबिक दीपक नशे की हालत में था। वह नशे में दोनों बच्चों को छत पर लेकर कैसे पहुंचा?

4 घर में दीपक की मां के अलावा बड़ा भाई, भाभी समेत छह सदस्य मौजूद थे। केवल पत्नी ही क्यों छत पर पहुंची? अन्य को इसकी भनक क्यों नहीं लगी?

5 घर की छत पर पड़े जले हुए उपले जिनमें डाले थे दीपक ने अपने बच्चे।


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