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देश भर के साधु संतों की साधना स्थली बनेगा प्राचीन सूर्यकुंड मंदिर, यहां पर पूजन का विशेष महत्‍व

13 जुलाई से चातुर्मास शुरू हो रहा है। यमुनानगर के प्राचीन सूर्यकुंड मंदिर में देश भर के साधु संत जुटेंगे। यहां पर अखंड रामायण पाठ और पूजन होगा। यहां पर प्रयागराज अयोध्या हरिद्वार वृंदावन काशी आदि से संत आएंगे।

By Anurag ShuklaEdited By: Published: Tue, 05 Jul 2022 10:55 AM (IST)Updated: Tue, 05 Jul 2022 10:55 AM (IST)
देश भर के साधु संतों की साधना स्थली बनेगा प्राचीन सूर्यकुंड मंदिर, यहां पर पूजन का विशेष महत्‍व
यमुनानगर स्थित सूर्यकुंड मंदिर में जुटेंगे साधु संत।

यमुनानगर, जागरण संवाददाता। अमादलपुर स्थित प्राचीन सूर्यकुंड मंदिर एक बार दूर दराज से आए साधु संतों की नगरी बन जाएगा। 13 जुलाई से चार्तुमास शुरू हो रहा है। चार्तुमास में यहां पर प्रयागराज, अयोध्या, हरिद्वार, वृंदावन, काशी आदि जगहों से साधु संत पहुंचेंगे। दो व चार माह तक यह साधु संत यहां पर साधना करेंगे। 12 जुलाई को अखंड रामायण पाठ का संकीर्तन, गुरु पूजन, सन्यासी पूजन, समर्पण व भंडारा होगा। इसके बाद 13 जुलाई से नियम शुरू हो जाएंगे।

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मंदिर के महंत गुणप्रकाश चैतन्य महाराज ने बताया कि सनातन धर्म में चातुर्मास का विशेष महत्व है। इसमें सावन, भादौ, आश्विन और कार्तिक का महीना आता है। चातुर्मास के चलते साधु संत एक ही स्थान पर रहकर जप, तप और साधना करते हैं। प्राचीन सूर्यकुंड मंदिर पर की गई साधना का विशेष महत्व होता है। इसलिए यहां पर साधु संत पहुंचते हैं। शास्त्रों में भी इसका विशेष वर्णन हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि सूर्यकुंड मंदिर में स्नान, जप, तप व साधना करने से अन्य तीर्थों से शतगुण अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है।

यह है चातुर्मास का महत्व

चातुर्मास में ऋषि मुनियों की एक स्थान पर रहकर पूजा-अर्चना, जाप, ध्यान व साधना करने की परंपरा प्राचीन काल से है। दो व चार माह का चार्तुमास होता है। इन महीनों में व्याधियों व कीटों का प्रकोप अधिक रहता है। पानी के स्थान पर, चूल्हे के स्थल व झाड़ू के स्थान पर जाने अनजाने में जीवों के साथ हिंसा हो जाती है। इसलिए साधु संत इन माह में एक स्थान से दूसरे स्थान पर नहीं जाते। नदी-नाले को लांघना भी पाप माना जाता है। इस समय में साधु संत एक समय आहार लेकर भगवान की उपासना करते हैं।

श्रीमद्भागवत कथा का होगा आयोजन 

इस बार चार्तुमास में विशिष्ठ महायज्ञ, श्रीमद्भागवत कथा, पार्थीवेश्वर पूजन होगा। गत वर्ष कोरोना की वजह से अधिक साधू संत यहां पर नहीं पहुंच सके थे। करीब 100 साधु संत ही पहुंचे थे। इस बार अधिक के पहुंचने की संभावना है। जिसे देखते हुए मंदिर परिसर में कार्य कराया जा रहा है। साधु संतों के बैठने व आराम करने के लिए अलग से जगह बनाई जा रही है, क्योंकि चार्तमास के समय में साधु संत बिस्तर या चारपाई पर नहीं लेटते। ऐसे में उनके लिए मंदिर परिसर में चबूतरे का निर्माण कराया जा रहा है।

जुटते हैं भारी संख्या में श्रद्धालु 

चार्तुमास से पहले संकीर्तन में भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। अखंड रामायण पाठ में भाग लेते हैं। इसके अलावा चार्तुमास में भी श्रद्धालु पहुंचते हैं और साधु संतों से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। अमादलपुर स्थित प्राचीन सूर्यकुंड मंदिर में 24 घंटे रामचरित मानस का पाठ चलता रहता है। हर रोज यज्ञ होता है। मंदिर की अपनी गोशाला है। जिसमें 70 गाय हैं। इन गायों की सेवा होती है।


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