करनाल के इस गांव में तनाव, घरों को गिराने पहुंची प्रशासनिक टीम, सौ से ज्यादा परिवार होंगे बेघर
करनाल के गांव खोरा खेड़ी में मकानों को तोड़ने के फरमान के बाद से तनाव बना हुआ है। प्रशासन की टीम भी पहुंच गई है। घरौंड़ा क्षेत्र के गांव खोरा खेड़ी में पहले ग्रामीणों को नोटिस दी गई थी। अब उसकी अवधि खत्म हो चुकी है।
करनाल, जागरण संवाददाता। करनाल के घरौंडा क्षेत्र के गांव खोरा खेड़ी में खंड विकास एवं पंचायत अधिकारी की ओर से पिछले दिनों नोटिस चस्पा किया गया। नोटिस में उल्लिखित अवधि समाप्त होने के साथ ही वीरवार को सौ से ज्यादा घर टूटने और इनमें बसे परिवारों के बेघर होने का खतरा मंडरा गया है। सुबह से गांव में इसे लेकर चिंता और तनाव की स्थिति बनी है।
किसान नेता भी गांव पहुंच गए हैं और चेतावनी दी कि एक भी मकान नहीं टूटने देंगे। वहीं, हालात के मद्देनजर ग्रामीणों की पांच सदस्यीय कमेटी की क्षेत्रीय विधायक हरविंद्र कल्याण की मौजूदगी में करनाल में जिला सचिवालय में उपायुक्त अनीश यादव के साथ वार्ता चल रही है। इस बीच गांव में पुलिस प्रशासन की ओर से सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं।
खोरा खेड़ी गांव में पिछले दिनों चस्पा किए गए नोटिस के जरिए जिन मकानों को हटाने के निर्देश दिए गए हैं, वे दरअसल 60-70 साल पहले बने थे। प्रभावित ग्रामीणों का कहना है कि अब इस जमीन को पंचायती भूमि बताते हुए उनके घरों को तोड़ने का अल्टीमेटम जारी किया गया है। लेकिन वे किसी भी सूरत में अपने घर खाली नहीं करेंगे। वहीं, नोटिस के माध्यम से इन तमाम परिवारों को अपने घर खाली करने के साथ ही उनका मलबा हटाने के भी निर्देश दिए गए हैं।
इसके लिए 22 सितंबर तक का अल्टीमेटम दिया गया था, जिसकी अवधि समाप्त होने के साथ ही गांव में तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गई। कार्रवाई के दायरे में आए सभी परिवारों में हड़कंप की स्थिति है। ग्रामीणों का कहना है कि जिस जमीन को अब पंचायती बताया जा रहा है, वहां उनके बाप-दादा ने दशकाें पहले मकान बनाए थे। अब अचानक उनके घर गिराने के आदेश जारी कर दिए।
ताजा स्थिति के संदर्भ में निवर्तमान सरपंच रणजीत सिंह कश्यप ने बताया कि खंड विकास एवं पंचायत विभाग की तरफ से गांव के सैकड़ों परिवारों को अपने घर खाली करने के नोटिस दिए गए थे। ये परिवार अर्से से यहां बसे हैं। दाे वर्ष पहले भी जमीन को लेकर शिकायत की गई थी। ग्रामीणों की मांग पर ग्राम पंचायत ने विभाग को प्रस्ताव भेजा था कि यह जमीन उनको बेच दी जाए ताकि गांव की आधी आबादी ना उजड़े। अभी जो नोटिस जारी हुए हैं, उसके बारे में दस सदस्यीय कमेटी उपायुक्त अनीश यादव से क्षेत्रीय विधायक हरविंद्र कल्याण की मौजूदगी में बात कर रही है। उम्मीद है कि कोई ठोस नतीजा निकल जाएगा। वहीं, गांव में पहुंचे किसान नेता जगदीप औलख, अशोक मित्तल, मनु कश्यप और जेपी शेखपुरा आदि ने चेतावनी दी कि किसी भी सूरत में वे गांव में एक भी मकान नहीं गिराने देंगे।
कार्रवाई हुई तो आधी आबादी हो जायेगी बेघर
नोटिस के अनुसार गांव में जिन घरों को हटाने के आदेश हैं, उनमें गांव की करीब आधी आबादी बसती है। ग्रामीणों ने बताया कि सौ से अधिक घर इस जमीन पर बने हैं, जिनमें सैकड़ों लोग बसे हैं। खंड विकास एवं पंचायत विभाग के अनुसार ग्रामीणों ने जोहड़ की भूमि पर मकान बना रखे हैं। कोर्ट के आदेश के बाद सभी घर हटाए जाने के निर्देश दिए गए हैं। आदेशों से प्रभावित होने वाले गरीब परिवारों का कहना है कि यदि प्रशासन उनके घरों को तोड़ने की कार्रवाई करता है तो गांव की आधी आबादी बेघर हो जाएगी। ग्रामीणों ने सरकार से गुहार लगाई है कि उनके घरों को तोड़ने की बजाए सरकार उनसे इस जमीन की कीमत ले सकती है ।
वर्षो से बिजली-पानी के कनेक्शन
ग्रामीणों का आरोप है कि उनके आशियाने उजाड़ने के पीछे वस्तुत: गांव की राजनीति जिम्मेदार है। पंचायत चुनाव नजदीक है, इसलिए राजनीतिक रोटियां सेकी जा रही हैं। गांव में दो पक्षों के आपसी टकराव के कारण इस तरह की स्थिति बनी, जिसके बाद मकानों को तोड़ने के आदेश जारी हुए। ग्रामीणों ने बताया कि जिस भूमि को अब जोहड़ बताया जा रहा है, उस पर पूर्व की पंचायतों ने गलियां और नालियां तक बनाई हैं जबकि बिजली निगम व जनस्वास्थ्य विभाग ने बिजली और पानी के कनेक्शन भी दिए हैं। जो परिवार इन मकानों में बसे हैं, वे लंबे समय से बिजली व पानी के बिलों का भुगतान भी कर रहे हैं। सवाल स्वाभाविक है कि यदि यह जमीन जोहड़ की थी तो पंचायत ने इसमें गलियों और नालियों का निर्माण क्यों किया और सरकारी विभागों ने उन्हें सुविधाएं क्यों दी ?