जीडीपी का 4 फीसद खर्च करने पर स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार : डॉ. प्रवीन मल्होत्रा
कैसे सुधरे सरकारी स्वास्थ्य ढांचा विषय पर सोमवार को सेक्टर 29 पार्ट-2 स्थित दैनिक जागरण कार्यालय में आयोजित अकादमिक बैठक में यह बात छाती रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रवीन मल्होत्रा (एमडी गोल्ड मेडलिस्ट) ने कही।
जागरण संवाददाता, पानीपत: सरकार सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का मात्र दो फीसद सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च कर रही है। आबादी और बीमारियों के परिदृश्य से देखें तो कम से कम चार फीसद खर्च किया जाना चाहिए। जब तक सरकारी अस्पतालों के इंफ्रास्ट्रक्चर और सुविधाओं में सुधार नहीं होगा, डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ का अभाव बना रहेगा। कैसे सुधरे सरकारी स्वास्थ्य ढांचा विषय पर सोमवार को सेक्टर 29 पार्ट-2 स्थित दैनिक जागरण कार्यालय में आयोजित अकादमिक बैठक में यह बात छाती रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रवीन मल्होत्रा (एमडी गोल्ड मेडलिस्ट) ने कही। बेहतर स्वास्थ्य ढांचे की राह में ये हैं बाधाएं
-डॉ. मल्होत्रा ने कहा कि वर्ष 1986 में सरकारी सेवा ज्वाइन की थी। दो दिन के लिए फतेहाबाद कर रतिया पीएचसी में भेजा गया। इसके बाद सिविल अस्पताल पानीपत आ गए। 14 साल तक नौकरी करने के बाद फिर ट्रांसफर हो गया। परिवार बिखरता देख कर नौकरी छोड़ दी। यह अकेले मेरी समस्या नहीं है। सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों के लिए आवास नहीं है। देहात में तो ठीक स्कूल तक नहीं जहां डॉक्टरों के बच्चे पढ़ सकें। डॉक्टर जिस विद्या को जानता है उसे छोड़कर पोस्टमार्टम हाउस और वीआइपी ड्यूटी लगाई जाएगी तो उसका निराश होना लाजिमी है।
-सरकारी सेवा से पलायन पर उन्होंने कहा कि सरकार वर्तमान में डॉक्टर को एक-डेढ़ लाख रुपये दे रही है। प्राइवेट अस्पतालों में ढाई-तीन लाख मिल रहे हैं, इसलिए डॉक्टरों को सरकार की दी सैलरी कम लगती है।
-डॉक्टरों को सुरक्षा की कमी भी परेशान करती है। हरियाणा मेडिकल केयर एक्ट को अधिक सशक्त बनाने की जरूरत है। ओपीडी में अत्यधिक मरीज देखने का दबाव भी सरकारी डॉक्टर पर है।
-सरकारी स्वास्थ्य ढांचे को बर्बाद करने में प्राइवेट अस्पतालों, दवा कंपनियों की साजिश पर उन्होंने कहा कि कारपोरेट अस्पतालों पर लागू है। एक कंपनी-एक साल्ट, जेनेरिक 10 रुपये में और ब्रांडेड 100 रुपये में दस गोली। ड्रग अथॉरिटी महंगी दवा के लिए लाइसेंस क्यों देती है, रोक लगनी चाहिए। बीमा कंपनियों व कॉरपोरेट अस्पतालों के गठजोड़ ने सरकारी और छोटे प्राइवेट अस्पतालों को नुकसान पहुंचाया है। सरकारी चिकित्सकों के दो-ढाई साल की छुट्टी लेने पर उन्होंने कहा कि सर्विस कंडक्ट रूल में बदलाव की जरूरत है। ये सवाल पूछे गए
-सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ का अभाव क्यों?
-अन्य विभाग में भी तबादले होते हैं, फिर डॉक्टर क्यों घबराते हैं?
-क्या सरकारी डॉक्टरों को अपनी मनोदशा बदलने की जरूरत है?
-बीमा, दवा कंपनियों और कॉरपारेट अस्पतालों ने स्वास्थ्य ढांचे को कितना नुकसान पहुंचाया?
-सरकारी डॉक्टर देहात में पोस्टिग से क्यों घबराते हैं?
-पानीपत में स्वास्थ्य बिजनेस कितना बढ़ रहा है?
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