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52 एकड़ में गोअभयारण्य, नहीं ले सकते गोवंश

जागरण संवाददाता पानीपत शहर से 25 किलोमीटर दूर गांव नैन में छह वर्ष पूर्व 52 एकड़ जमीन

By JagranEdited By: Published: Sun, 30 Aug 2020 06:36 AM (IST)Updated: Sun, 30 Aug 2020 06:36 AM (IST)
52 एकड़ में गोअभयारण्य, नहीं ले सकते गोवंश
52 एकड़ में गोअभयारण्य, नहीं ले सकते गोवंश

जागरण संवाददाता, पानीपत:

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शहर से 25 किलोमीटर दूर गांव नैन में छह वर्ष पूर्व 52 एकड़ जमीन में गोअभयारण्य बनाया था। 22 एकड़ जगह को कवर किया। 30 एकड़ जमीन खाली है। इसमें चार-पांच एकड़ में चारा उगाया जाता है।

सुविधाएं नहीं होने के कारण इसे दानदाता से ही उम्मीद है। हाल ही में इसकी सोसाइटी बनाकर रजिस्टर्ड कराई है। यहां सरकार से ग्रांट का इंतजार है। 50 लाख रुपये मंजूर होने के बाद भी नहीं मिल रहे। जिले में सड़कों पर जो बेसहारा गोवंश घूम रहा है, उन्हें यहां स्थानानंतरित किया जा सकता है। चारा सुविधा नहीं होने के कारण अब यहां के प्रबंधन ने बेसहारा गोवंश को लेना बंद कर दिया है।

वर्ष 2019 में यहां काफी संख्या में गोवंश आवारा कुत्तों के काटने से मर गए। इसके बाद तत्कालीन डीसी सुमेधा कटारिया ने सक्रिय भूमिका निभाई। लोगों को दान देने के लिए प्रेरित किया। तबसे अब तक दानदाता ही चारा उपलब्ध करा रहे हैं। वर्तमान में 2000 गोवंश यहां मौजूद हैं।

गोअभयारण्य में कार्यरत सेवादारों ने बताया कि गोवंश को डाक्टरी सुविधा उपलब्ध कराने के लिए ग्रोवर प्रिट के अभिनव ग्रोवर ने यहां पांच लाख रुपये लगाकर अस्पताल की सुविधा उपलब्ध कराई है। रिफाइनरी ने 50 लाख रुपये खर्च करके शेड बनाया है। फ्लाइंग क्लब के नितिन अरोड़ा यहां अपने टीम के साथ सेवा दे रहे हैं। लॉकडाउन के पहले ही वे यहां आकर सेवा कर रहे थे। अब रोजाना यहां एक ट्राली हरे चारे की भिजवाई जा रही हैं। लॉकडाउन के दौरान भी सवा दो लाख रुपये की मदद क्लब ने भेजी। गोशालाओं में जगह पड़ रही कम

जिले में 32 गोशाला हैं, जिनमें से 25 पंजीकृत हैं। सात गोशालाओं का पंजीयन नहीं हुआ है। गोशालाओं में मैनपावर की कमी देखने को मिली है। गोसेवा की भावना से लोग गोशालाओं में सेवा दे रहे हैं। दान से ये गोशाला चल रही हैं। दानदाताओं पर निर्भर है गोशाला

जीटी रोड पर गोशाला सोसाइटी दो गोशाला चला रही है। एक सब्जी मंडी में चल रही है। एक गोशाला सिठाना में चलाई जा रही है। इन गोशाला में शुरू में 1500 गोवंश था। खुले में घूम रहे गोवंश का यहां रखा गया। संख्या 3600 पहुंच गई। गोशाला में बड़े-बड़े शेड़ बनाए गए। यहां चारे की समुचित व्यवस्था है। बीमार गाय के इलाज के अलग से व्यवस्था है। गोशाला में मंदिर भी बनाया गया है। मंदिर की आय भी गोशाला में खर्च होती है। गोशाला में श्रमिक लगे हुए हैं। समाज के लोग भी यहां सुबह शाम सेवा देने आते हैं। सब्जी मंडी में स्थित गोशाला में अंदर तो सफाई व्यवस्था ठीक है। बाहर गंदा पानी जमा रहता है। 32 गोशालाओं में 16 हजार गोवंश

जिले की 32 गोशालाओं में 16 हजार गोवंश है। गोशालाओं में भीड़ अधिक होने जगह कम होने के कारण गोवंश की मृत्यु दर अधिक है। बेसहारा गोवंश का समाधान

गो अभयारण्य में सरकार सुविधाएं ग्रांट उपलब्ध कराए। तूड़े के सीजन में गोशाला को तूड़़ा उपलब्ध कराया जाए तो यह समस्या दूर हो सकती है। पांच गोशाला चलाने वाली गोशाला सोसाइटी के प्रधान रामनिवास गुप्ता का कहना है कि अधिकारी इस समस्या को हल नहीं कर सकते। सामाजिक लोग ही इसका जिम्मा संभाल सकते हैं। वर्तमान में भी सामाजिक लोग ही धार्मिक भावना के चलते गोसेवा में लगे हुए हैं। गोशाला दान पर चलती है। सरकार उचित मात्रा में ग्रांट उपलब्ध कराए। सामाजिक संगठनों को जिम्मेवारी मिले तो समस्या नहीं रहेगी।


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