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थाइरॉयड के 70 से ज्यादा मरीज, सिविल अस्पताल में नहीं है जांच सुविधा

सिविल अस्पताल में टेस्ट की सुविधा नहीं है। मरीजों को रोहतक पीजीआइ में कर दिया जाता है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 24 May 2018 07:43 PM (IST)Updated: Thu, 24 May 2018 07:43 PM (IST)
थाइरॉयड के 70 से ज्यादा मरीज, सिविल अस्पताल में नहीं है जांच सुविधा
थाइरॉयड के 70 से ज्यादा मरीज, सिविल अस्पताल में नहीं है जांच सुविधा

फोटो नं. 6 व 7

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विश्व थाइरॉयड दिवस 25 मई को..

मरीजों को रोहतक पीजीआइ में कराने पड़ते हैं टेस्ट

जेनेटिक रोग होने के कारण बच्चे भी मरीज

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जागरण संवाददाता, पानीपत :

पच्चीस मई को विश्व थाइरॉयड दिवस मनाया जाता है। जिले में थाइरॉयड से पीड़ित मरीजों की संख्या 70 हजार से ज्यादा बताई गई है। अधिकतर मरीज हाइपोथाइरॉयड स्टेज पर हैं और हाइपरथाइरॉयड की ओर बढ़ रहे हैं। जेनेटिक रोग होने से जिले के करीब तीन प्रतिशत बच्चे भी इस बीमारी से पीड़ित हैं। सिविल अस्पताल में रोग के टेस्ट की सुविधा भी नहीं है। मरीजों को रोहतक पीजीआइ रेफर कर दिया जाता है।

शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. दिनेश दहिया ने बताया कि मोटापा बढ़ना, थकान रहना, गर्दन में सूजन, बालों का झड़ना, अवसाद और घबराहट जैसे कई ऐसे संकेत हैं, जिनसे व्यक्ति को थाइरॉयड होने का अनुमान लगाया जाता है। इसके और कितने कारण हैं इस पर अभी रिसर्च चल रही है। बीमारी के शुरुआती लक्षणों को भांपना मरीज के लिए मुश्किल है। जिले के मरीजों की बात करें तो ज्यादातर मरीज हाइपोथायरॉइड स्टेज में हैं। हाइपरथायरॉइड स्टेज के मरीज 5-7 फीसद होंगे। उन्होंने कहा कि थाइरॉयड हमारे शरीर में मौजूद ऐसी ग्रंथि है जो मेटाबॉलिज्म में मदद करती है। इसमें मौजूद हार्मोन टी3, टी4 और टीएसएच का स्तर कम या ज्यादा होने से समस्या होती है।शरीर के लिए थाइरॉयड हार्मोन की कमी और बढ़ना दोनों ही नुकसानदायक है। बच्चों में मानसिक विकलांगता को जन्मजात मान लिया जाता है, लेकिन यह पूरा सच नहीं है, थाइरॉयड हार्मोन की कमी के चलते बच्चे मानसिक विकलांगता के शिकार हो रहे हैं।

माता या पिता इस बीमारी से पीड़ित हैं तो बच्चे को यह रोग होना तय है। ऐसे में प्रत्येक नवजात की जन्म के बाद बाद टीएसएच (थाइरॉयड स्टिमुले¨टग हार्मोन) जांच जरूरी है। डॉ. दहिया ने बताया कि बच्चों की नाल के खून का सैंपल लेकर जांच करते हैं। खून में थाइरॉयड हार्मोन 20 यूनिट प्रति मिली से ज्यादा होना चाहिए। गर्भवती महिलाओं का नहीं होता टेस्ट

सिविल अस्पताल में जांच की सुविधा नहीं होने के कारण गर्भवती महिलाओं का भी थाइरॉयड टेस्ट नहीं होता, जबकि माना जाता है कि

हाई रिस्क कैटेगरी में आने वाली गर्भवती थायरॉइड से भी पीड़ित होती हैं। ऐसी महिलाओं का टेस्ट कराना अति आवश्यक है, ताकि गर्भ में पल रहे शिशु को बीमारी से बचाया जा सके। थाइरॉयड पीड़ित महिलाओं का गर्भ गिरने का भी खतरा रहता है। प्राइवेट अस्पतालों में टेस्ट महंगे

थाइरॉयड के टी3, टी4 और टी5एच टेस्ट प्राइवेट अस्पतालों में 250-300 रुपए और फंक्शन टेस्ट 400-500 रुपये का है। ऐसे में अधिकतर गर्भवती महिलाएं और अन्य रोगी जांच नहीं करा पाते। इससे रोग गंभीर होता जाता है। वर्जन :

थाइरॉयड जांच का पूरा सेटअप और उसकी किट बहुत महंगी पड़ती है। आउटसोर्स पर टेस्ट के लिए सरकार के दिशा-निर्देश नहीं हैं, इनके रेट भी तय नहीं हैं। मरीजों को रेफर करना मजबूरी है। हाई रिस्क कैटेगरी की गर्भवती महिलाओं को टेस्ट कराने की सलाह दी जाती है।

-डॉ. संतलाल वर्मा, सिविल सर्जन,पानीपत।


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