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जच्चा-बच्चा को नहीं मिलती सरकारी एंबुलेंस, निजी चालक करते वसूली

गर्भवती महिलाओं को अस्पताल के लिए जच्चा-बच्चा को घर के लिए सरकारी एंबुलेंस नहीं मिलती। निजी एंबुलेंस के चालक अस्पताल में खड़े रहकर चंद किलोमीटर के 1000-1500 रुपये तक वसूल रहे हैं। एक एंबुलेंस चालक मात्र 50 मिनट के अंतराल में दूसरी बार सवारी लेने अस्पताल पहुंच गया।

By JagranEdited By: Published: Sat, 24 Jul 2021 08:51 AM (IST)Updated: Sat, 24 Jul 2021 08:51 AM (IST)
जच्चा-बच्चा को नहीं मिलती सरकारी एंबुलेंस, निजी चालक करते वसूली
जच्चा-बच्चा को नहीं मिलती सरकारी एंबुलेंस, निजी चालक करते वसूली

जागरण संवाददाता, पानीपत : गर्भवती महिलाओं को अस्पताल के लिए, जच्चा-बच्चा को घर के लिए सरकारी एंबुलेंस नहीं मिलती। निजी एंबुलेंस के चालक अस्पताल में खड़े रहकर चंद किलोमीटर के 1000-1500 रुपये तक वसूल रहे हैं। एक एंबुलेंस चालक मात्र 50 मिनट के अंतराल में दूसरी बार सवारी लेने अस्पताल पहुंच गया। दिन शुक्रवार.समय पूर्वाह्न करीब 11:20 बजे। ओपीडी-रेडियोलाजी ब्लाक के बीच गैलरी में खड़ी निजी एंबुलेंस का चालक जच्चा-बच्चा को वाहन में बैठाते दिखा। पास ही ई-रिक्शा, थ्री-व्हीलर चालक ऐसी ही सवारियों के इंतजार में खड़े दिखे। वहां खड़ी कच्चा कैंप निवासी जैबा पत्नी नौशाद ने बताया कि वीरवार तीसरे पहर तीन बजे डिलीवरी हुई थी, शुक्रवार पूर्वाह्न 11 बजे डिस्चार्ज कर दिया। नौशाद ने बताया कि सरकारी एंबुलेंस के लिए कंट्रोल रूम में गया था, वहां बताया कि दो घंटे बाद एंबुलेंस मिलेगी। अब ई-रिक्शा या थ्री-व्हीलर से घर पहुंचेंगे। गांव झट्टीपुर निवासी रचना पत्नी विकास ने बताया कि वीरवार की दोपहर 11:25 बजे डिलीवरी हुई थी, शुक्रवार पूर्वाह्न 11 बजे डिस्चार्ज कर दिया। सरकारी एंबुलेंस मांगी थी। बताया कि एक रूट में पर दो-तीन जच्चा-बच्चा हो तो मिल जाएगी, सिगल को नहीं दी जाती। ईको गाड़ी के चालक ने घर से अस्पताल के 1500 रुपये लिए थे, अब उसी को बुलाया है।

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गनीमत यह कि प्रसूति वार्ड में एक पैसा किसी भी मद में नहीं लिया गया। बता दें कि कोरोना महामारी जब चरम पर थी, दूसरे राज्यों के निवासी मरीजों की पानीपत में मौत हो रही थी। तब भी निजी एंबुलेंस संचालकों ने जिला प्रशासन के आदेशों को धता बताकर खूब लूट मचाई थी। जच्चा-बच्चा को 48 घंटे नहीं रखा जाता भर्ती

सामान्य प्रसव में 48 घंटे और सिजेरियन डिलीवरी में जच्चा-बच्चा कम से कम एक सप्ताह भर्ती रखने का नियम है। जननी सुरक्षा योजना से प्रसूता को नाश्ता-भोजन भी मिलता चाहिए। सिविल अस्पताल में 48 घंटे से भी कम समय में जच्चा-बच्चा को डिस्चार्ज कर दिया जाता है। जैबा पत्नी नौशाद और रचना पत्नी विकास को डिस्चार्ज स्लिप थमाना इसका सबूत है। नोटिस का नहीं असर

प्रिसिपल मेडिकल आफिसर (पीएमओ) डा. संजीव ग्रोवर ने एंबुलेंस कंट्रोल रूम के फ्लीट मैनजर, निजी एंबुलेंस संचालकों और आउटसोर्सिंग ठेकेदार के नाम करीब एक माह पहले नोटिस जारी किया था। इसमें कहा था कि अस्पताल परिसर में निजी एंबुलेंस न दिखे। नोटिस का भी असर नहीं दिख रहा है। पुलिस पोस्ट किस काम की

अस्पताल परिसर में अस्थाई पुलिस पोस्ट खुली हुई है। इसके बावजूद अस्पताल परिसर से वाहन चोरी हो रहे हैं। निजी एंबुलेंस के जमावड़े को बाहर खदेड़ने में भी अस्पताल प्रशासन, पोस्ट में तैनात पुलिसकर्मियों की मदद नहीं ले रहा है। इतनी हैं सरकारी एंबुलेंस

विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइडलाइन के मुताबिक 60 हजार की जनसंख्या पर एक एंबुलेंस होनी चाहिए। जिला की जनसंख्या करीब 13 लाख 54 हजार 198 है। स्वास्थ्य विभाग के पास 24 एंबुलेंस (लगभग पर्याप्त) हैं। इनमें 10 पीटीएस, 13 बीएलएस (बेसिक लाइफ सपोर्ट) और एक किलकारी है। एंबुलेंस के लिए फोन नंबर

102 व 108 फ्री डायल सेवा

7988960108 कंट्रोल रूम नंबर

9813737018 फ्लीट मैनेजर एनजीओ आए सामने

फ्लीट मैनेजर ऋषिपाल ने कहा कि कोई एनजीओ सामने आए ताकि प्रत्येक गांव के हर मुहल्ले में एंबुलेंस के लिए फ्री डायल सेवा डिस्प्ले हो सके। जीटी रोड और संपर्क मार्गों (दुर्घटना वाला स्थान) के पास भी हेल्पलाइन नंबर लिखे जाएं।


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