2008 में हुआ था अपहरण, न्याय के लिए दस साल लड़े, अब खुद जज बने कुरुक्षेत्र के स्नेहिल
स्नेहिल को वर्ष 2008 में छह मार्च को एक गिरोह ने उठा लिया था और परिवार से फिरौती मांगी थी। इस घटना से वे सहम गए थे और किसी से मिलने तक से डरने लगे थे। 2019 में जज के तौर पर उनका चयन हुआ।
पानीपत/कुरुक्षेत्र [विनीश गौड़]। जीवन की एक घटना ने स्नेहिल शर्मा के जीवन को बदल कर रख दिया। स्नेहिल के साथ वर्ष 2008 में एक घटना घटी जिससे उनके जीवन की गाड़ी पटरी से उतर गई। लेकिन इसी घटना ने उनके जीवन को एक दिशा भी दी। दरअसल उन्हें एक गिरोह ने अगवा कर लिया था। पूरे आठ दिनों के बाद पुलिस ने उनकी रिकवरी की और चलती गोलियों के बीच से उन्हें छुड़ाया गया। इस घटना ने उनके मन में डर बैठा दिया था और वे डिप्रेशन में चले गए थे।
न्याय की लड़ाई ने दिखाया जीवन का लक्ष्य
दस साल तक निचली अदालत से सुप्रीम कोर्ट तक उन्होंने आरोपितों के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ी और आखिर में उन्हें दंड भी दिलवाया। मगर इतनी लंबी लड़ाई ने उन्हें जीवन जीने का एक लक्ष्य भी दिखाया। इसके बाद उन्होंने न केवल कम समय में लोगों को न्याय दिलाने के लिए खुद कानूनी पढ़ाई पढ़ी बल्कि दिल्ली हाईकोर्ट में जज की परीक्षा पास करके जज भी चयनित हुए।
एक ही ध्येय- पीड़ितों को जल्द मिले न्याय
स्नेहिल बताते हैं कि उनका एक ही ध्येय है। जल्द से जल्द पीडि़तों को न्याय दे सकें। इसके साथ ही वे उन लोगों के लिए एक प्रेरणा भी हैं जो विपत्ति आने पर अपने आपको किस्मत के हाथों में सौंप देते हैं। मगर जज स्नेहिल ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने न केवल खुद लड़ाई लड़ी बल्कि यह भी दिखाया कि जीवन की गाड़ी को किस रास्ते पर लेकर जाना है यह निर्णय आपके हाथ में होता है। चाहे हार मान लो और चाहे यूटर्न मारकर मुश्किल भरे रास्तों से होकर अपनी मंजिल तक पहुंच जाओ।
इंटरव्यू में यह प्रश्न भी पूछा
दिल्ली हाईकोर्ट जज की परीक्षा पास करने के बाद जब उनका इंटरव्यू था तो उनसे यह भी पूछा गया कि आप जज क्यों बनना चाहते हैं। जब उन्होंने अपने साथ हुई घटना बताई तो उनसे पूछा गया कि आपको इससे क्या सीख मिली। उन्होंने यही कहा था कि मैं चाहता हूं कि जैसे मेरे साथ हुआ अगर वह किसी और के साथ हो तो वह मायूस न हों।
वर्ष 2008 में हुई थी घटना
स्नेहिल को वर्ष 2008 में छह मार्च को एक गिरोह ने उठा लिया था और परिवार से फिरौती मांगी थी। इस घटना से वे सहम गए थे और किसी से मिलने तक से डरने लगे थे। मगर उनके पिता भद्रकाली मंदिर के पीठाध्यक्ष पंडित सतपाल शर्मा, चाचा राजेश और दूसरे परिजनों ने उन्हें सच के लिए लडऩे के लिए प्रेरित किया। इसी दौरान उन्होंने वर्ष 2012 में कानूनी शिक्षा के लिए दाखिला लिया और जज बनने की तैयारी करने लगे। वर्ष 2018 में परीक्षा पास की और वर्ष 2019 में जज के तौर पर उनका चयन हुआ। उनके भाई देवांशु ने भी गुजरात उच्च न्यायालय की परीक्षा पास की और वे भी जज चयनित हुए।
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