ओलंपियन बॉक्सर मनोज कुमार बोले- जिंदगी हर कदम एक नई जंग है, जीत जाएंगे हम
बॉक्सर मनोज कुमान ने दैनिक जागरण पानीपत के फेसबुक पेज पर लाइव हुए और बड़ी ही जिंदादिली से लोगों के सवालों के जवाब दिए। उन्होंने सभी तरह के अनुभव साझा किए।
कैथल [पंकज आत्रेय] जीवन हो या खेल। जिंदगी हर कदम एक नई जंग है। जीत जाएंगे हम, हौसला, सकारात्मक सोच और परिवार अगर संग है। अंतरराष्ट्रीय बॉक्सर ओलंपियन मनोज कुमार ने अपने ही अंदाज में पुराने फिल्मी गीत की यह पंक्तियां गुनगुनाते हुए देशवासियों को निरंतर संघर्षशील और अनुशासन में रहने का संदेश दिया। वह दैनिक जागरण पानीपत के फेसबुक पेज पर लाइव हुए और बड़ी ही जिंदादिली से लोगों के सवालों के जवाब दिए। मनोज कुमार ने अपने करियर के दौरान बॉक्सिंग रिंग और इसके बाहर के संघर्ष को बड़ी ही साफगोई से साझा किया। वह सरकार से अदालत में हक की लड़ाई लड़ते हुए अर्जुन अवार्ड हासिल करना हो या अपने साथ कई बार हुए षड्यंत्रों की बात।
मनोज ने एक-एक करके मीठे और कड़वे अनुभवों की अपने फैन्स के साथ चर्चा की। साथ ही दैनिक जागरण के इस प्रयास की सराहना करना भी नहीं भूले। उन्होंने कहा, यह गजब का अनुभव है कि दैनिक जागरण ने उन्हें देश के खिलाडिय़ों और चाहने वालों के सामने अपने मन की बात करने का अवसर दिया। बता दें कि मनोज से देश के कई बॉक्सर और उनके शुरुआती दिनों के साथ रहे खिलाड़ी भी लाइव जुड़े। वे कुरुक्षेत्र में मनोज कुमार बॉक्सिंग अकादमी बना रहे हैं। इसमें 25 लड़कों और 10 लड़कियों के रहने की व्यवस्था होगी।
माता-पिता तय करें बच्चों की दिशा
एक सवाल के जवाब में कॉमनवेल्थ गेम्स 2010 के गोल्डन ब्वाय मनोज कुमार ने कहा कि एक बालमन यह तय नहीं कर सकता है कि उसे क्या बनना है? इसके लिए माता-पिता को ही बच्चे की क्षमता और अभिरुचि को पहचान करके उसके लिए फील्ड तय करना होगा। अगर वह यह भूमिका अच्छे से निभा पाते हैं तो बच्चे को सफल होने से कोई नहीं रोक सकता। उन्होंने इस संदर्भ में व्यक्तिगत उदाहरण बताया कि किस तरह उनके भाई व कोच राजेश कुमार ने एथलीट होते हुए उनमें बॉक्सर तलाशा और ओलंपिक का लक्ष्य उनके सामने रख दिया।
डाइट वही जो खुश होकर खाएं
एक खिलाड़ी के सवाल के जवाब में मनोज ने कहा कि वास्तव में जो हम खुश होकर खाएं और जो स्वास्थ्य के लिए सही हो, वही डाइट है। खेल में इसके लिए सख्त मापदंड और अनुशासन है। खिलाड़ी को चेकअप के बाद ही डायटिशियन द्वारा दिया गया डाइट चार्ज फॉलो करना होता है। इन दिनों लॉकडाउन के चलते शारीरिक व्यायाम कम हो गया है तो खिलाडिय़ों को पानी और सलाद ज्यादा लेना चाहिए। लंच में दाल, लस्सी ले सकते हैं। फल और दूध का सेवन करना चाहिए। 24 घंटे अनाज के पीछे नहीं पडऩा चाहिए। जिंदगी के लिए फिटनेस बहुत जरूरी है और उसके लिए शारीरिक व्यायाम व डाइट का बड़ा महत्व है।
ओलंपिक में मेडल नहीं जीतने का मलाल
एक सवाल के जवाब में मनोज के मन में दो बार ओलंपिक में पहुंचने के बाद भी देश के लिए पदक नहीं जीत पाने की टीस दिखाई दी। उन्होंने कहा, मैं दो बार ओलंपिक खेल चुका, लेकिन मेडल से दूर हूं। 23 साल से अमेेचेर बॉङ्क्षक्सग के रिंग में हूं। ऐसा भारतीय खिलाड़ी हूं। मेरे भाई ने मेरे लिए ओलंपिक जीतने का सपना देखा था। अब मैं उन बच्चों में अपना यही लक्ष्य और सपना देख रहा हूं, जिन्हें बॉक्सिंग सीखा रहा हूं। ओलंपिक की तैयारी के सवाल पर मनोज ने कहा कि उनके भार वर्ग से एक बॉक्सर क्वालिफाई कर चुके हैं। उन्हें तीसरी बार ट्राइल में नहीं लिया। जो बॉक्सर क्वालिफाई कर गए हैं, उन्हें शुभकामनाएं देते हैं।
कड़वे अनुभवों ने बहुत कुछ सिखाया
मनोज ने अपने करियर के कड़वे अनुभव साझा करते हुए खिलाडिय़ों को अनुशासन में रहकर निरंतर संघर्ष करने की प्रेेरणा दी। उन्होंने बताया कि किसी तरह शुरुआती राष्ट्रीय मुकाबलों में उनके साथ निर्णायक मंडल ने भेदभाव किए। यहां तक कि अर्जुन अवार्ड हासिल करने के लिए कोर्ट में लंबी लड़ाई लडऩी पड़ी। इसके बाद कोई स्पोंसर नहीं मिला। जिससे भी बात की उनको लगा कि यह तो सरकार के खिलाफ लड़ रहा है। मनोज बोले, मेरे कोच को द्रोणाचार्य अवार्ड नहीं दिया गया। मुझे इंस्पेक्टर का पद दिया गया, जबकि मुझसे कम उपलब्धियों वाले खिलाडिय़ों को डीएसपी बना दिया।
मिली तो बस तारीख
मनोज ने कहा कि ङ्क्षरग के अंदर वे लड़ रहे थे तो बाहर उनके कोच भाई राजेश कुमार राजौंद। वे बोले, खेलों में अपना हक लेने के लिए राजनीतिक गॉडफादर का होना बहुत जरूरी है। यह अब समझ में आ गया है। हमें अभी भी अर्जुन अवार्ड और 2016 सहित तीन राष्ट्रीय मुकाबलों की इनामी राशि तक नहीं मिली है। हरियाणा स्टेट अवार्ड से अभी तक वंचित हूं। बहुत चक्कर काटे, लेकिन इंसाफ नहीं मिला। मिली तो बस तारीख पर तारीख।
देश सर्वाेपरि रहे
युवाओं को मनोज कुमार ने संदेश दिया कि देश को महत्व दो। यही सर्वाेपरि रहना चाहिए। सोशल मीडिया और मोबाइल फोन के चक्कर में पड़कर हमें अनमोल वक्त नहीं गंवाना है। बचपन और जवानी में अगर मजे लोगे तो जीवन भर संघर्ष करना होगा। शुरुआत में अनुशासन में रहकर संघर्ष कर लोगे तो जीवन में मजे लोगे। सोशल मीडिया में जाति-धर्म की बातों में नहीं पडऩा है। अच्छे इंसान का कोई धर्म नहीं होता। मनोज ने यहां एक शेर पढ़ा। कौम को कबीलों में मत बांटिये, लंबे सफर को मीलों में मत बांटिये, एक बहता दरिया है देश मेरा, मेरे भारत को नदियों और झीलों में मत बांटिये।