अब तक 40 हनुमान स्वरूप का श्रृंगार कर चुके बलविद्र
हनुमत स्वरूपों को संवारने में जो सुख और शांति मिलती है उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। यह कहना है युवा शक्ति ध्वजारोहण सेवा सदन वैलफेयर सोसायटी के संस्थापक भगत बलविन्द्र सिंह (जट्ट महाराज) जी का।
जागरण संवाददाता, पानीपत :
हनुमत स्वरूपों को संवारने में जो सुख और शांति मिलती है उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। यह कहना है युवा शक्ति ध्वजारोहण सेवा सदन वैलफेयर सोसायटी के संस्थापक भगत बलविन्द्र सिंह (जट्ट महाराज) जी का। उन्होंने बताया कि वे पिछले 32 सालों से हनुमत स्वरूप धारण कर रहे हैं। हनुमान जी के चरणों में प्रेम और श्रद्धा की वजह से बहुत साल पहले उन्होंने एक छोटा स्वरूप (मूर्ति) बनाया था। जिसके बाद वे हर साल अपने स्वरूप की साज सज्जा खुद करने लगे। धीरे धीरे आस पास की सभाओं के कई व्रतधारी भी अपने स्वरूप को संवारने के लिए अनुरोध करने लगे तो वे खाली समय में उनके स्वरूपों का भी श्रृंगार कर देते हैं। इस साल अब तक वह लगभग 40 मूर्तियों का श्रृंगार कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि यह काम वह प्रोफेशन के लिए नहीं बल्कि अपने शौक और सेवा के लिए करते हैं। व्रतधारी अपनी अपनी मूर्तियों का श्रृंगार बाहर से करवाते हैं, लेकिन उनका मानना है कि जहां तक संभव हो यह श्रृंगार खुद ही करना चाहिए। क्योंकि यह भी एक प्रकार से प्रभु स्मरण ही है। इसमें लगा समय आप प्रभु सेवा में ही लगा रहे हैं।
उन्होंने बताया कि जब स्वरूप धारण किया जाता है तब भक्त और भगवान एक रूप हो जाते हैं अर्थात वह स्वरूप अपना ही अंग प्रतीत होता है इसलिए हम जितना स्वरूप के नजदीक रहकर प्रार्थना करते हैं या स्वरूप की सेवा करते हैं तो इससे स्वरूप धारण के समय कोई समस्या नहीं होती तथा जिस भावना से चलइया व्रत रखा जाता है वह भी पूर्ण होती है।