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यहां मंत्री विज सस्‍पेंड करते हैं, अफसरशाही बचाती है, यूं स्‍टे ले आते हैं Panipat News

28 जून को बैठक के बाद ही विज ने समिति का कानूनी वजूद नहीं होने पर चिंता जताई थी। जिला में स्वास्थ्य मंत्री के अधिकारियों को सस्पेंड करने के आदेश तीसरी बार हवा हो गए हैं।

By Edited By: Published: Tue, 09 Jul 2019 10:37 AM (IST)Updated: Wed, 10 Jul 2019 02:02 PM (IST)
यहां मंत्री विज सस्‍पेंड करते हैं, अफसरशाही बचाती है, यूं स्‍टे ले आते हैं Panipat News
यहां मंत्री विज सस्‍पेंड करते हैं, अफसरशाही बचाती है, यूं स्‍टे ले आते हैं Panipat News

पानीपत, जेएनएन। जिला कष्ट निवारण समिति की बैठक में प्रदेश सरकार के व्हीसल ब्लोअर स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज की ओर से दिए गए आदेशों को तगड़ा झटका लगा है। सूचना है कि उनकी ओर हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (एचएसवीपी) के एसडीओ व अन्य को निलंबित करने के दिए गए आदेश की कार्यवाही रिपोर्ट डीसी दफ्तर में ही लटकी रही। इसी बीच संबंधित अधिकारी हाईकोर्ट से कार्रवाई पर स्टे ले आए। मामले में अब 18 जुलाई को अगली सुनवाई होगी। 

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28 जून को बैठक के बाद ही विज ने समिति का कानूनी वजूद नहीं होने पर चिंता जताई थी। जिला में स्वास्थ्य मंत्री के अधिकारियों को सस्पेंड करने के आदेश तीसरी बार हवा हो गए हैं। एचएसवीपी के एसडीओ डीके मलिक व जेई कर्मबीर ने हाईकोर्ट में स्टे की याचिका दायर की थी। उनके वकील ने निलंबन करने के पुराने मामलों को रखते हुए समिति की संवैधानिक शक्ति का सवाल उठाया। इसी आधार पर दो जुलाई को कोर्ट ने कार्रवाई पर रोक लगा दी। 

चार को किया था सस्पेंड
स्वास्थ्य मंत्री 28 जून को जिला कष्ट निवारण समिति की बैठक में समस्या सुनने आए थे। उन्होंने बलजीत नगर की राज रानी की शिकायत पर दोनों अधिकारियों को सस्पेंड करने का निर्देश दिया था। इसके अलावा पाथरी गांव की राधा रानी की शिकायत पर उरलाना कलां चौकी के तत्कालीन प्रभारी को सस्पेंड कर दिया था। इस मामले में सिफारिश करने वाले बाबरपुर ट्रैफिक थाना के प्रभारी इंस्पेटर महेंद्र का पानीपत से 150 किलोमीटर दूर तबादला कराने के आदेश दिए थे। उग्राखेड़ी गांव के संदीप मलिक की शिकायत पर कार्रवाई न करने पर थाना चांदनी बाग में तैनात एएसआई सतपाल को निलंबित किया था। इनमें किसी भी मामले में फिलहाल कार्रवाई नहीं हुई है। 

सीएम के सामने भी उठ चुका मामला 
कष्ट निवारण समिति की बैठकों में मंत्रियों के आदेश के खिलाफ कोर्ट से स्टे ऑर्डर का मामला पिछले दिनों मुख्यमंत्री के सामने भी प्रमुखता के साथ उठा था। तब कैथल में एसडीओ स्टे ले आए थे। इसके बाद सरकार ने मंत्रियों के निर्देश पर तुरंत कार्रवाई के आदेश दिए पर कार्रवाई में देरी के कारण बाद में अन्य अधिकारी भी उसी आधार पर स्टे लेने लगे। 

यह था मामला 
बलजीत नगर वासी राज रानी की शिकायत थी कि उनके पिता जिले सिंह ने सौ गज का मकान वर्ष 1989 में खरीदा था। बाद में हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण ने आसपास की जमीन अधिगृहीत कर ली और मकान का एक मीटर हिस्सा अपना बताते हुए 23 जुलाई 2018 को तोड़ दिया। उनके पिता की भी 27 अप्रैल 2011 को मौत हो चुकी है। 

दो बार पहले भी झटके खा चुके मंत्री, पीसीबी के आरओ ले आए थे स्टे 
स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी भूपेंद्र चहल को प्रदूषण फैलाने वाली एक फैक्ट्री पर कार्रवाई न करने के आरोप में 31 अगस्त 2018 की बैठक में निलंबित किया था। वह पांच सितंबर को हाईकोर्ट से स्टे ले आए। भैंसवाल निवासी बलबीर ने शिकायत में बताया था विजय जैन और हेमंत जैन की फैक्ट्री गांव में है। यहां से निकलने वाले गंदे पानी से उनकी फसल खराब हो गई है। आरओ ने फैक्ट्री मालिक और शिकायतकर्ता बलबीर के बीच समझौता होने का जवाब दिया था। मंत्री ने बलबीर से पूछा तो उसने बताया कि उनका अंगूठा लगवा लिया गया था। वह समझौते को पढ़ नहीं सके था। 

मामला नंबर-दो सरपंच पर भी मुकदमा दर्ज नहीं 
स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने 31 अगस्त 2018 की बैठक में पंचायत फंड में गबन साबित होने पर सरपंच सुनीता देवी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए थे। डीसी को सरपंच पर मुकदमा दर्ज कराना था, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो सकी। सरपंच 19 सितंबर को हाईकोर्ट से स्टे ऑर्डर ले आईं। शिकायतकर्ता संदीप राठी का आरोप था कि सरपंच ने पंचायत फंड में घपला किया है। पंचायत घर में बिना अनुमति 97 हजार रुपये खर्च कर दिये। 

कार्यवाही भेजने में कोताही तो नहीं 
एसडीओ व अन्य के खिलाफ कार्रवाई नहीं होने के पीछे कार्यवाही भेजने में कोताही को मुख्य कारण बताया जा रहा है। प्रशासनिक सूत्रों के अनुसार एसडीओ व अन्य को स्टे मिलने के बाद 8 जुलाई, सोमवार को बाद दोपहर संबंधित विभागों को बैठक की कार्यवाही भेजी गई। इसे प्रशासनिक चुस्ती और सुस्ती का नाम दिया जाता है जिसमें मंत्री की बात भी रह गई और कोर्ट से स्टे के कारण अधिकारियों पर कार्रवाई भी नहीं हो सकी। यह अलग से ही जाच का विषय बन गया है। आशंका है कि डीसी के आदेश के बाद दफ्तर में ही फाइल दबी रही।


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