अभयारण्य में फिर दो गोवंश की मौत, आठ की हालत नाजुक
जिला गोशाला संघ के प्रधान राजरूप पानू ने बताया कि अभयारण्य में सुधार कार्य युद्ध स्तर पर चल रहे हैं। पहले गोवंश की मौत भूख-प्यास से हो रही थी अब ऐसा नहीं है। गोवंश की मौत का कारण हीट स्ट्रोक बीमारी कमजोरी और जंगली कुत्तों का हमला है।
संवाद सहयोगी, थर्मल: गांव नैन स्थित गो-अभयारण्य में कमजोरी और बीमारी के कारण शनिवार को फिर दो गोवंश ने तड़पते हुए दम तोड़ दिया। आठ गोवंश की हालत अभी भी नाजुक बनी हुई है। जिला प्रशासन, पशुपालन विभाग, अभयारण्य कमेटी के तमाम प्रयास के बावजूद, गोवंश की मौत का सिलसिला थम नहीं रहा है।
जिला गोशाला संघ के प्रधान राजरूप पानू ने बताया कि अभयारण्य में सुधार कार्य युद्ध स्तर पर चल रहे हैं। पहले गोवंश की मौत भूख-प्यास से हो रही थी, अब ऐसा नहीं है। गोवंश की मौत का कारण हीट स्ट्रोक, बीमारी, कमजोरी और जंगली कुत्तों का हमला है। कमेटी सदस्यों ने पौधारोपण शुरू कर दिया है। नगर निगम आयुक्त वीना हुड्डा ने कांटेदार तार भिजवाया है। इस तार से तालाब की तारबंदी कराई गई है ताकि गोवंश उसमें न घुसे। चारदीवारी पर भी पांच-पांच इंच के अंतर पर डी-राउंड तार लगाया जाएगा।
पानू ने बताया कि अभयारण्य में बन रही पानी की खोर का निर्माण कार्य पूरा हो गया है। सूखने में दो दिन का समय लगेगा। इसके बाद इसमें गोवंश के लिए पेयजल भर दिया जाएगा। शेड के लिए पांच लाख ईंट का ऑर्डर
गो-अभयारण्य में बने शेड पर्याप्त नहीं हैं। नतीजा, गोवंश को छाया नसीब नहीं हो रही है। हीट स्ट्रोक के कारण गोवंश दम भी तोड़ रहे हैं। अब नए शेड निर्माण के लिए पांच लाख ईंट का ऑर्डर भट्ठों को दिया गया है। ईंटें आते ही निर्माण कार्य शुरू करा दिया जाएगा। अब तक पहुंचा पांच हजार क्विटल भूसा
गो-अभयारण्य में दस दिन पहले तक सिर्फ दो दिन के चारे का इंतजाम था। गोवंश की भूख-प्यास से मौत की खबरें सुर्खियां बनी तो जिला प्रशासन की नींद टूटी। समाजसेवी भी दान के लिए आगे आने लगे हैं। अभयारण्य में अब तक लगभग पांच हजार क्विटल भूसा का स्टॉक है। एक गोदाम को भर दिया गया है, ग्रामीणों की मदद से भूसे के पांच बड़े कूप बनाए गए हैं। अभी भी भूसा का ढेर खुले आसमान के नीचे पड़ा हुआ है। लग्जरी कारों से पहुंच रहे गोसेवा करने
गो-अभयारण्य में सुबह सात बजे से ही दानदाताओं और गाय में आस्था रखने वालों के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो जाता है। शहर से लग्जरी कारों में सवार होकर आने वाले लोग गोवंश के लिए केले, सेब सहित अन्य फल, गुड़-मिठाइयां और आटा खिलाते हुए पुण्य कमा रहे हैं। पानीपत वासी एक व्यक्ति सात दिन से रोजाना एक कैंटर भरकर खीरे भेज रहा है।
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