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हाई कोर्ट के आदेश नहीं मानने पर हुई थी हरियाणा और पंजाब में हिंसा

हाई कोर्ट में अवमानना याचिका दायर कर दोनों राज्यों की सरकारों पर डेरा प्रकरण में लापरवाही बरतने का आरोप लगाया गया है। याचिका पर अगले सप्ताह सुनवाई संभव है।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Fri, 10 Nov 2017 08:51 PM (IST)Updated: Sat, 11 Nov 2017 08:15 AM (IST)
हाई कोर्ट के आदेश नहीं मानने पर हुई थी हरियाणा और पंजाब में हिंसा
हाई कोर्ट के आदेश नहीं मानने पर हुई थी हरियाणा और पंजाब में हिंसा

जेएनएन, चंडीगढ़। दुष्कर्म मामले में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख को दोषी करार देने के बाद हरियाणा और पंजाब में हुई तोडफ़ोड़, हिंसा और आगजनी को रोका जा सकता था। यदि दोनों राज्यों की सरकारें मई 2015 में हाई कोर्ट के आदेशों के बाद अपने यहां के डेरों की तलाशी व जांच करती। हाई कोर्ट के आदेश नहीं मानने के कारण ही हरियाणा और पंजाब में हिंसा हुई। यह बात पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में दोनों राज्यों के खिलाफ शुक्रवार को दायर अवमानना याचिका में कही गई है। एडवोकेट रवनीत सिंह जोशी की इस याचिका पर हाई कोर्ट अगले सप्ताह सुनवाई कर सकता है।

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याचिका में कहा गया है कि हाई कोर्ट के आदेश सख्ती से लागू नहीं किए जाने की वजह से ही 25 अगस्त और उसके बाद दोनों राज्यों में हिंसा, तोडफ़ोड़ और आगजनी हुई। याचिका में संबंधित अधिकारियों के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई के निर्देश दिए जाने की मांग की गई है। याचिका में यह भी बताया गया कि हाई कोर्ट में जब करौंथा आश्रम के संचालक रामपाल के मामले की सुनवाई हो रही थी, तब भी मिलिट्री इंटेलीजेंस ने एक रिपोर्ट पेश कर डेरा सच्चा सौदा में कुछ पूर्व सैनिकों द्वारा अनुयायियों को ट्रेनिंग दिए जाने की जानकारी दी गई थी।

दोनों सरकारों ने दे दी थी डेरों को क्लीन चिट

हाईकोर्ट ने इस जानकारी पर संज्ञान लेकर पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ को उनके राज्यों के सभी डेरों की जांच के आदेश दिए थे। मगर हरियाणा, पंजाब और चंडीगढ़ ने अपने यहां चल रहे डेरों को क्लीन-चिट दे दी थी।

पूर्व नियोजित थी पंचकूला में हुई हिंसा व आगजनी

याची ने अपनी याचिका में यह भी कहा कि डेरामुखी को दोषी करार दिए जाने के बाद हुई आगजनी व हिंसा पूर्व नियोजित थी और डेरे में ही इसकी योजना बनाई गई थी। डेरा मुखी के साथ जो वाहन पंचकूला आए थे उनमें से भी हथियार जब्त किए गए। साथ ही ज्वलनशील पदार्थ से भरी एक गाड़ी भी पकड़ी गई थी। अगर सरकार ने दो वर्ष पहले हाई कोर्ट के आदेश को अमल में लाया होता तो हिंसा रोकी जा सकती थी।

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