फोर्टिस में बच्ची की मौत का मामलाः स्वास्थ्य मंत्री विज ने पुलिस कार्रवाई पर उठाए सवाल
फोर्टिस अस्पताल में बच्ची की मौत के मामले में स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने पुलिस कार्रवाई पर सवाल उठा हैं। कहा कि सिर्फ एक व्यक्ति पर केस दर्ज किया गया है प्रबंधन पर क्यों नहीं।
जेएनएन, चंडीगढ़। फोर्टिस अस्पताल में बच्ची की मौत के मामले में पुलिस प्रशासन के नरम पड़ने पर स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज भड़क गए हैं। गुस्साए विज ने सीएम तक को पत्र लिख डाला। दरअसल, फोर्टिस अस्पताल पर डेंगू के इलाज का 16 लाख बिल बनाने अौर लापरवाही के चलते स्वास्थ्य विभाग ने अस्पताल पर एफआइआर दर्ज करने के आदेश दिए गए थे, लेकिन पुलिस द्वारा दर्ज एफआइआर मेें केवल एक व्यक्ति के खिलाफ मुकद्दमा दर्ज किया गया था। इस पर विज ने नराजगी जताई अौर कहा कि इस मुद्दे पर फोर्टिस प्रबंधन के नाम मुकद्दमा दर्ज क्यों नहीं किया गया।
गुस्साए अनिल विज ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल को पत्र लिखकर पुलिस की इस ढुलमुल कार्रवाई पर रोष जताया। विज ने गुरुग्राम के पुलिस कमिश्नर से भी बात की अौर कहा कि स्वास्थ्य विभाग ने 30 पेजों की पूरी जांच रिपोर्ट दी। उन्होंने तीखे तेवर दिखाए हुए कहा कि अस्पताल के खिलाफ जो धाराएं बनती हैं पुलिस उन्हें तुरंत लगाएं अौर सभी को नामजद करें।
वहीं, फोर्टिस अस्पताल के प्रबंधन को एक साथ कई मोर्चो को घेरा जा रहा है, ताकि राज्य के बाकी निजी बड़े अस्पताल भी सबक ले सकें। स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने रविवार को गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल के खिलाफ एफआइआर होने की जानकारी दी। अस्पताल के खिलाफ क्रिमिनल और सिविल दोनों तरह की कार्रवाई होगी।
लीज रद करने की कार्रवाई में जुटा हुडा
स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने हुडा को भी निर्देश दिए हैं कि वह आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के इलाज से संबंधित शतोर्ं और एग्रीमेंट की जांच करे। यदि जांच में फोर्टिस पर आरोप सही पाए जाते हैं तो जमीन की लीज रद की जाए। फोर्टिस अस्पताल के अलावा अन्य अस्पतालों पर भी शिकंजा कसा जाए।
जवाब सही नहीं मिला तो ब्लड बैंक का लाइसेंस भी होगा रद
जांच समिति की रिपोर्ट के आधार पर फोर्टिस अस्पताल के ब्लड बैंक को भी नोटिस दिया गया है, जिसका जवाब देने के लिए उसे 15 दिन का समय दिया गया है। जवाब सही नहीं मिलने पर ब्लड बैंक का लाइसेंस निलंबित या रद किया जा सकता है।
आद्या के पिता जयंत सिंह ने लगाए थे ये आरोप
-बेटी का सही तरीके से इलाज नहीं किया गया। अस्पताल प्रबंधन केवल खर्च मीटर चलाने के लिए उसे आइसीयू में डाले रहा।
-दवा का बिल तीन लाख से ज्यादा का नहीं था पर दोगुनी रकम ली गई।
-जांच कराने के लिए भरे जाने वाले कई फार्मो में मेरे फर्जी हस्ताक्षर कर लिए गए।
-मामला सामने आने पर मुङो मुंह बंद रखने के लिए रिश्वत की पेशकश की गई। दस लाख का चेक और 25 लाख कैश लेकर मुंह नहीं खोलने को कहा गया।
-केवल एक चिकित्सक नहीं अस्पताल प्रबंधन भी बेटी की मौत का जिम्मेदार है।