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जींद की ​​​​​हार-जीत में दिग्गजों के नफा-नुकसान के गणित, नेताओं के खास सियासी मकसद हुए पूरे

हरियाणा के जींद उपचुनाव के परिणाम से दिग्‍गजों के नफा नुकसान के अपने गणित हैं। कई दिग्‍गज नेताओं के इस उपचुनाव से खास सियासी मकसद पूरे हुए हैं।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Sat, 02 Feb 2019 10:10 AM (IST)Updated: Sun, 03 Feb 2019 09:39 AM (IST)
जींद की ​​​​​हार-जीत में दिग्गजों के नफा-नुकसान के गणित, नेताओं के खास सियासी मकसद हुए पूरे
जींद की ​​​​​हार-जीत में दिग्गजों के नफा-नुकसान के गणित, नेताओं के खास सियासी मकसद हुए पूरे

चंडीगढ़, [अनुराग अग्रवाल]। जींद उपचुनाव के नतीजों से सभी के अपने-अपने मकसद हल होते दिख रहे हैं। लोगों ने सत्तारूढ़ भाजपा के प्रति भरोसा दिखाया और मुख्यमंत्री पद के दो-दो दावेदारों के मंसूबों पर पानी फेर दिया। कांग्रेस के रणदीप सिंह सुरजेवाला और जननायक जनता पार्टी के दुष्यंत चौटाला मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में शामिल रहे हैं। सुरजेवाला ने जहां बांगर की चौधर जींद में लाने का दम भरा था, वहीं दुष्यंत हरियाणा की नई राजनी‍ति का बड़ा चेहरा बन की उभरे हैं।

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कांग्रेस के रणदीप सुरजेवाला की हार में छिपे बाकी दिग्गजों के मंसूबे

कांग्रेस ने राहुल गांधी की टीम के अहम हिस्से रणदीप सिंह सुरजेवाला पर दांव खेला था। सुरजेवाला हालांकि तीसरे नंबर पर आ गए, जिसकी उम्मीद नहीं थी, लेकिन उनकी हार में भी कई कांग्रेस नेताओं की खुशी छिपी है। सुरजेवाला ने खुद को यहां मुख्यमंत्री पद का दावेदार प्रोजेक्ट किया, लेकिन उनकी इस दावेदारी पर मुख्यमंत्री पद के बाकी दावेदारों को अंदरूनी एतराज था। सार्वजनिक तौर पर भले ही वह सुरजेवाला की हार का गम मना रहे, लेकिन भीतरी तौर पर उन्हें इस हार से अपनी मुख्यमंत्री पद की दावेदारी मजबूती प्रदान होते दिखाई दे रही है।

जाटलैंड जींद भाजपा के लिए पूरी तरह से बंजर थी। पिछले पांच दशक में आज तक जींद में कमल नहीं खिल सका, लेकिन यह पहला मौका है, जब मुख्यमंत्री मनोहर लाल जींद की बंजर धरती में खाद डालकर उसमें कमल खिलाने में कामयाब रहे हैं। इस उपलब्धि के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने मुख्यमंत्री की पीठ थपथपाई है। पांच नगर निगमों में मिली सफलता के बाद जींद का रण जीतने से साफ है कि राज्य में सत्ता विरोधी लहर नहीं है।

अभय चौटाला के लिए अपनी पार्टी की हार से अधिक अहमियत भतीजे दिग्विजय की पराजय

दरअसल, जींद का चुनाव कई मायनों में अहमियत रखता है। इनेलो उम्मीदवार उम्मेद सिंह रेढू की जमानत बुरी तरह से जब्त हुई है, लेकिन इनेलो नेता यह सुकून रख सकते हैं कि उनके बड़े राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी जननायक जनता पार्टी के उम्मीदवार दिग्विजय सिंह चौटाला भी चुनाव हार गए।

यदि दिग्विजय चुनाव जीत जाते तो अभय चौटाला के लिए यह किसी बड़े घाव से कम न था। उनकी पार्टी को यही संतोष है कि दुष्यंत चौटाला की पार्टी चुनाव नहीं जीत पाई। इस बात को अभय समर्थक स्वीकार करते हैं कि संगठन को नए सिरे से खड़ा किया जा सकता है। हालांकि इसमें अब समय नहीं बचा, लेकिन यदि दुष्यंत की पार्टी चुनाव जीत जाती तो उनके लिए अधिक मुश्किलें होती।

दुष्‍यंत- दिग्विजय और जननायक जनता पार्टी ने मजबूती से अपनी उपस्थिति दर्ज कराई

जननायक जनता पार्टी इस चुनाव में पूरी मजबूती के साथ उभरकर सामने आई है। जेजेपी हालांकि चुनाव हार गई, लेकिन कांग्रेस से भी अधिक वोट हासिल कर दुष्यंत और दिग्विजय की जोड़ी ने साबित कर दिया कि असली विपक्ष वे ही हैं। दुष्यंत समर्थकों के लिए भले ही अपनी हार का गम हो, लेकिन उन्हें यह खुशी है कि चाचा अभय चौटाला की पार्टी का बोरिया बिस्तर बांधने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी।

भाजपा के लिए अपनी जीत के साथ ही सांसद राजकुमार सैनी की हार रख रही मायने

भाजपा उम्मीदवार डाॅ. कृष्ण मिढ़ा को सरकार और संगठन का भरपूर सहयोग मिलने के साथ ही पिता डाॅ. हरिचंद मिढ़ा के रसूख का लाभ भी मिला है। कुरुक्षेत्र के भाजपा सांसद राजकुमार सैनी उनकी जीत में बड़ा रोड़ा बन सकते थे, लेकिन लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी के विनोद आश्री को करीब 13 हजार मत मिलने का मतलब साफ है कि अब सांसद राजकुमार सैनी को अपने राजनीतिक भविष्य की चिंता करनी पड़ेगी। सैनी के हौसले को डाउन करने से भाजपा खासी उत्साहित है।


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