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Haryana Politics: देश में सत्तारूढ़ भाजपा के विरुद्ध तीसरे मोर्चे का हवा-हवाई सफर

INLD Samman Diwas Rally पूर्व उप प्रधानमंत्री ताऊ देवीलाल के 109वें जन्म-जयंती समारोह में हरियाणा के फतेहाबाद में जुटे गैर-भाजपाई दलों के नेताओं ने आगामी आम चुनाव में भाजपा के विरुद्ध मुख्य गठबंधन बनाने की बात कही। फाइल

By JagranEdited By: Sanjay PokhriyalPublished: Wed, 28 Sep 2022 03:09 PM (IST)Updated: Wed, 28 Sep 2022 03:09 PM (IST)
Haryana Politics: देश में सत्तारूढ़ भाजपा के विरुद्ध तीसरे मोर्चे का हवा-हवाई सफर
हरियाणा के फतेहाबाद में जुटे विपक्षी दलों के कुछ नेता

पंचकुला, अनुराग अग्रवाल। देश में जब भी आम चुनाव नजदीक होते हैं, तभी सत्तारूढ़ भाजपा के विरुद्ध तीसरे मोर्चे के गठन की आवाज उठने लगती है। देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री देवीलाल के 109वें जन्म-जयंती समारोह में हरियाणा के फतेहाबाद में जुटे विपक्षी दलों के कुछ नेताओं ने हर बार की तरह इस बार भी जब तीसरे मोर्चे के गठन की बात उठाई तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें वहीं रोक दिया। तीसरे मोर्चे को खारिज करते हुए नीतीश ने भाजपा के विरुद्ध मुख्य गठबंधन बनाने का प्रस्ताव दिया, जिसमें कांग्रेस को भी शामिल करने की योजना है, पर बड़ा सवाल यह पैदा हो रहा कि 52 सांसदों वाली कांग्रेस कुछ ही सांसदों वाले विपक्षी दलों के नेताओं का नेतृत्व स्वीकार करने को क्यों राजी होगी?

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बिहार में भाजपा का साथ छोड़कर लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के साथ नाता जोड़ने वाले नीतीश कुमार को अभी तक कांग्रेस से ऐसा कोई भरोसा नहीं मिल पाया, जिसके आधार पर मुख्य गठबंधन अथवा तीसरे मोर्चे की परिकल्पना को साकार होता देखा जा सके। भले ही नीतीश कुमार और लालू यादव की सोनिया गांधी से मुलाकात हो चुकी है, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा सरीखे नेता मुख्य गठबंधन में शामिल होने के बिल्कुल भी हक में नहीं हैं।

हुड्डा तो यहां तक कह रहे हैं कि कांग्रेस के बिना न तो तीसरा मोर्चा बन सकता है और न ही मुख्य गठबंधन की परिकल्पना की जा सकती है। स्वाभाविक है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में भारत जोड़ो यात्रा आरंभ करने वाली कांग्रेस किसी सूरत में देश के उन विपक्षी नेताओं का नेतृत्व स्वीकार करने को तैयार नहीं है, जो कभी कांग्रेस का ही हिस्सा हुआ करते थे और आज अपनी अलग-अलग ढपली बजाकर अलग-अलग राग गा रहे हैं।

देवीलाल के बड़े बेटे इनेलो प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला की ओर से आयोजित फतेहाबाद रैली में करीब चार घंटे तक भले ही विपक्षी एकजुटता का गाना गाया गया, पर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा और सांसद अभिषेक बनर्जी विपक्षी एकजुटता के गवाह नहीं बन पाए। इन नेताओं ने सम्मान दिवस रैली से दूरी बनाए रखी। कांग्रेस समेत बंगाल, ओडिशा, दिल्ली और तेलंगाना का इस रैली में बिल्कुल भी प्रतिनिधित्व नहीं था।

पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का स्वास्थ्य उन्हें रैली में पहुंचने की इजाजत नहीं देता था, लेकिन चौटाला के बुलावे पर रैली में पहुंचे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, एनसीपी नेता शरद पवार, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के महासचिव सीताराम येचुरी, पंजाब के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल और शिवसेना नेता अरविंद सावंत ताऊ देवीलाल को श्रद्धांजलि देने के लिए आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में अक्सर पहुंचते रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि देवीलाल जब राष्ट्रीय राजनीति में उभार पर थे, तब उन्होंने समूचे विपक्ष को एकजुट करने में सफलता हासिल की थी, लेकिन तब और अब के राजनीतिक माहौल में बहुत फर्क आ चुका है। तब मूल्य और सिद्धांत महत्व रखते थे, लेकिन आज सबसे बड़ा संकट तीसरे मोर्चे के नेताओं के नेतृत्व का ही पैदा हो रहा है। कोई एक दूसरे का नेतृत्व स्वीकार करने को तैयार नहीं है। कांग्रेस ने स्वयं इशारा कर दिया कि वह विपक्षी एकजुटता के नाम पर किसी दूसरे नेता का नेतृत्व स्वीकार करने को राजी नहीं है।

आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल की राह बिल्कुल अलग है। देवीलाल के छोटे बेटे एवं हरियाणा की भाजपा सरकार में बिजली एवं जेल मंत्री रणजीत चौटाला स्वयं कह चुके हैं कि देवीलाल के अनुयायी नेता जब भी उन्हें श्रद्धांजलि देने हरियाणा आते हैं, तभी वे तीसरे मोर्चे की बात करते हैं, लेकिन तीसरे मोर्चे में कोई दमखम इसलिए नहीं हैं, क्योंकि विपक्षी एकजुटता के कई नायक ऐसे हैं, जो अपने-अपने राज्यों में खुद का चुनाव तक जीतने का माद्दा नहीं रखते। रणजीत चौटाला ने तो यहां तक कह दिया कि हिसार जिले की आदमपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव होना है, जहां कुलदीप बिश्नोई के इस्तीफा देने की वजह से सीट खाली हुई है।

समूचे विपक्ष को मिलकर आदमपुर में अपना एक साझा उम्मीदवार उतारकर अपने मुख्य गठबंधन अथवा तीसरे मोर्चे की परीक्षा कर लेनी चाहिए कि वे जिस दिशा में आगे बढ़ने का सोच रहे हैं, उसका हश्र कैसा रहने वाला है और इस तथाकथित विपक्षी एकजुटता के बारे में प्रदेश की जनता क्या सोचती है। बहरहाल बिहार के राजनीतिक घटनाक्रम के बाद मुख्य गठबंधन बनाने के नीतीश कुमार के प्रयास तो जारी हैं, लेकिन चूके हुए नेताओं के बूते इसमें इतनी आसानी से सफलता मिलती दिख रही है, यह अभी कहना जल्दबादी ही होगी।

[राज्य ब्यूरो प्रमुख, हरियाणा]


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