पलायन में दिख रहा आजादी के दौर दर्द
पलायन में आजादी के दौर का दर्द दिख रहा है। बड़ी संख्या में मजदूरों के पलायन का सिलसिला बढ़ता जा रहा है।
राजेश मलकानियां, पंचकूला
पलायन में आजादी के दौर का दर्द दिख रहा है। बड़ी संख्या में मजदूरों के पलायन का सिलसिला बढ़ता जा रहा है। उत्तर प्रदेश और बिहार से पंचकूला, पिजौर और कालका सहित आसपास के क्षेत्रों में रोजगार के लिए बसे लोगों का पलायन जारी है। यह लोग लंबे समय से यहां पर झुग्गियां बनाकर रह रहे थे और रोजाना कमाते और खाते थे। कोरोना वायरस के चलते एकाएक लॉकडाउन के बाद इनका रोजगार बंद हो गया। पंचकूला में अप्रवासी लोगों की संख्या लगभग 50 हजार है, जोकि उत्तर प्रदेश, बिहार की है। नेताओं का बहुत बड़ा बैंक भी अचानक पलायन करके अपने गांवों को वापस लौटने लगा, लेकिन किसी भी नेता ने सामने आकर यह अपील नहीं कि वह यहीं रुकें, उन्हें कोई समस्या नहीं आने दी जाएगी। इन लोगों के पास अब रोजगार नहीं है, तो पैसे भी खत्म हो गए हैं। हालांकि कुछ स्थानों पर खाना पहुंचाने के लिए प्रशासन, सामाजिक संगठन और लोग निजी स्तर पर जुटे हुए हैं, लेकिन इनमें असुरक्षा की भावना पैदा होने लगी है, जिसके चलते यह वापस लौटना चाहते हैं। राहत शिविरों में नहीं रुकना चाहते प्रवासी
कालका-शिमला, जीरकपुर से दिल्ली मार्ग पर बड़ी संख्या में लोग पैदल लौटते नजर आ रहे हैं। हाथों में बड़े-बड़े बैग और छोटे बच्चों को थामे माता-पिता दिख रहा है। हालत यह है कि पैदल चलने वालों के पास दो वक्त का खाना भी नहीं है। इन लोगों का कहना है कि वह अपने गांव पहुंचकर दम लेंगे। लॉकडाउन में निर्माण क्षेत्र और अन्य फैक्ट्रियों के बंद होने के कारण अपने पैतृक गांव की ओर जा रहे मजदूरों के लिए सरकार की ओर राहत शिविर भी बनाए गए हैं, लेकिन यह वहां नहीं रुकना चाहते। सरकार की ओर से अपील की गई है कि जो जहां है, वहीं रहे। सरकार की तरफ से सभी प्रशासनिक अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि मजदूरों को स्कूल, धर्मशाला के भवनों में राहत शिविर बनाकर ठहराया जाए। इस दौरान मजदूरों के ठहरने से लेकर खानपान और दवाईयों का पूरा इंतजाम रहेगा। लेकिन इन मजदूरों ने ठान लिया है कि वह वापस जाएंगे। गोरखपुर, दरभंगा, पूर्णिया, कानपुर के लिए पैदल जा रहे लोग
नाकों पर तैनात पुलिस कर्मियों के अनुसार, दिनभर रोड से मजदूरों का झुंड गुजरता हुआ दिखाई देता है। मजदूरों से बातचीत भी करते हैं, लेकिन वे कहते हैं कि उनके पास इतने भी रुपये नहीं है कि वह 14 अप्रैल तक शहर में रहकर गुजारा कर सकें। इसलिए वे गोरखपुर, दरभंगा, पूर्णिया, कानपुर के लिए पैदल चल पड़े हैं। इनके चेहरे पर चिता की लकीरें साफ दिखाई दे रही हैं। भूख-प्यास से बिलखते बच्चे भी पैदल चलने को मजबूर हैं। कई बच्चों के पैरों में तो चप्पल तक नहीं हैं। रातभर मजबूर लोग सड़क पर पैदल जा रहे हैं। पैदल चल रहे लोगों में से किसी को आगरा, झांसी, इटावा, मैनपुरी और किसी को भरतपुर व धौलपुर के अलावा मध्य प्रदेश के कई इलाकों तक पहुंचना है। पूछने पर निकलते हैं आंसू
जो मजदूर घर नहीं जा सकते, वे अभी भी रोजाना सुबह, दोपहर और शाम को लेबर चौक पर काम की तलाश में जाते हैं। ताकि उनको काम मिल जाए और उनकी जेब में कुछ पैसे आ जाएं। उनका कहना है कि वहां से पुलिस भाग देती है। बात करते-करते उनकी आंखों से आंसू छलक गए। वे कहते हैं, उनके पास काम नहीं है, क्या करें।