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हरियाणा के चुनावी मैदान में अकाली दल के आने से बंटेगा सिख वोट, दूसरे दल परेशान

शिरामणि अकाली दल के हरियाणा में सक्रिय होने और अपने दम पर चुनाव लड़ने की घोषणा से राज्‍य के कई दलों की परेशानी बढ़ सकती है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Tue, 21 Aug 2018 12:29 PM (IST)Updated: Tue, 21 Aug 2018 09:01 PM (IST)
हरियाणा के चुनावी मैदान में अकाली दल के आने से बंटेगा सिख वोट, दूसरे दल परेशान
हरियाणा के चुनावी मैदान में अकाली दल के आने से बंटेगा सिख वोट, दूसरे दल परेशान

चंडीगढ़, [बरींद्र सिंह रावत]। लोकसभा और विधानसभा चुनाव में अभी देरी है, लेकिन हरियाणा में नए राजनीतिक समीकरण बनने शुरू हो गए हैं। हरियाणा में शिरोमणि अकाली दल बादल ने अपने दम पर लोकसभा और विधानसभा चुनाव अपने दम पर लड़ने की घोषणा करके सबको चिंता में डाल दिया है। इससे पहले अकाली दल का हरियाणा में इनेलो से गठबंधन था। हरियाणा में अब अकाली दल के रूप में चौथा नया खिलाड़ी चुनावी मैदान में कूद गया है।

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अकाली दल की घोषणा ने बढ़ाई राजनीतिक हलचल, सभी दलों की चिंता बढ़ी

अकाली दल की इस घोषणा ने न केवल भाजपा बल्कि कांग्रेस की चिंता भी बढ़ा दी है। सुखबीर ने हालांकि पिपली में आयोजित रैली में अपने संबोधन में कांग्रेस को निशाने पर रखा, लेकिन उनकी इस रैली ने भाजपा सहित सभी राजनीतिक दलों में हलचल मचा दी है। अकाली दल हमेशा से हरियाणा मेें इनेलो के साथ जुड़ा रहा है। अकाली दल के दिग्गज पंजाब के पूर्व सीएम प्रकाश सिंह बादल के हरियाणा के पूर्व मुख्‍यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के साथ दोस्ताना संबंध रहे हैं। हरियाणा में बसपा का इनेलो के साथ गठबंधन हो चुका है।

हरियाणा में अपने दम पर चुनाव लड़ने की शिअद की घोषणा पर भाजपा के नेता भीतर ही भीतर खुशी मना रहे हैं, लेकिन उन्हें चिंता इस बात की भी सता रही है कि कहीं चुनाव के समय अकाली दल फिर से इनेलो का दामन न थाम ले। बसपा ने पहले ही इनेलो के साथ गठबंधन कर लिया है। इनेलो-अकाली दल और बसपा हरियाणा में एक हो जाते हैं, तो यह न केवल भाजपा के लिए, बल्कि कांग्रेस के लिए भी बड़ा खतरा होगा।

भाजपा के कुछ नेता इसे अकाली दल की प्रेशर तकनीक बता रहे हैं। पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में अकाली दल ने इनेलो का साथ दिया था। कांग्रेस ने पिछले विधानसभा चुनाव में राज्य के लिए अलग से एसजीपीसी का मुद्दा छेड़कर सिख वोटरों को रिझाने की कोशिश की थी। कांग्रेस और अकाली दल एक-दूसरे के कट्टर विरोधी है।

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ऐसे में कांग्रेस की चाल यही रहेगी कि किसी प्रकार इनेलो और अकाली दल को एक होने से रोका जाए। हालांकि अभी सुखबीर बादल ने हरियाणा में अपने दम पर ही सभी लोकसभा और विधानसभा की सीटों पर प्रत्याशी खड़े करने की बात कही है। अकाली दल यदि अपने दम पर चुनाव लड़ता है तो सिख वोट बंटने का सबसे अधिक फायदा कांग्रेस को मिस सकता है।

कई सीटों पर निर्णायक भूमिका में सिख

हरियाणा में 15 लाख से अधिक रजिस्टर्ड सिख वोटर हैं। इनमें से सिरसा, अंबाला, कुरुक्षेत्र और करनाल संसदीय क्षेत्र में सिख वोटरों की संख्या अधिक है। इन संसदीय क्षेत्रों में सिख वोटर चुनाव परिणाम पलटने की क्षमता रखते हैं। इसी प्रकार हरियाणा में 24 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां सिखों की जनसंख्या 15 हजार से लेकर 60 हजार तक है। अकाली दल बादल हरियाणा में सिख वोटरों को एकजुट करके अपनी ताकत का परिचय देना चाहता हैं।

अन्य जिलों में भी होंगी रैलियां

अकाली दल हरियाणा के अन्य सिख बहुल इलाकों में भी रैलियां आयोजित करने जा रहा है। पिपली में हुई रैली से अकाली दल बादल के नेता उत्साहित हैं। अकाली दल हरियाणा में भी सीधे सीधे इनेलो और भाजपा के वोट बैंक में ही सेंध लगाएगा।

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हमें कोई फर्क नहीं पड़ता

हरियाणा भाजपा अध्‍यक्ष सुभाष बराला का कहना है कि अकाली दल यदि अपने दम पर चुनाव मैदान में कूदता है, तो इसका असर इनेलो पर पड़ेगा। भाजपा ने पहले भी अपने दम पर चुनाव लड़ा था। बराला के अनुसार इनेलो के वोट बैंक पर ही अकाली दल की सेंध लगेगी। भाजपा को इसका फायदा ही होगा।

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