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राजस्थान में नजर आई हरियाणा कांग्रेस की मेहनत, गहलोत सीएम बने तो हुड्डा को मिलेगी मजबूती

हरियाणा के कांग्रेस दिग्गजों ने जिस तरह से राजस्थान के चुनाव में मेहनत की और पार्टी को जीत दिलाई है, उससे पहली पंक्ति के तमाम नेता उत्साहित हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Wed, 12 Dec 2018 12:41 PM (IST)Updated: Thu, 13 Dec 2018 05:07 PM (IST)
राजस्थान में नजर आई हरियाणा कांग्रेस की मेहनत, गहलोत सीएम बने तो हुड्डा को मिलेगी मजबूती
राजस्थान में नजर आई हरियाणा कांग्रेस की मेहनत, गहलोत सीएम बने तो हुड्डा को मिलेगी मजबूती

चंडीगढ़ [अनुराग अग्रवाल]। पड़ोसी राज्य राजस्थान में कांग्रेस की जीत का असर हरियाणा पर भी पड़ने के आसार हैं। राजस्थान और हरियाणा के कई जिलों की सीमाएं आपस में मिलती हैं। दोनों राज्यों के लोगों और नेताओं के बीच रिश्तेदारियां भी कम नहीं हैं। हरियाणा के कांग्रेस दिग्गजों ने जिस तरह से राजस्थान के चुनाव में मेहनत की और पार्टी को जीत दिलाई है, उससे पहली पंक्ति के तमाम नेता उत्साहित हैं। राजस्थान की जीत ने हरियाणा के कांग्रेसियों में जोश भर दिया है।

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राजस्थान में कांग्रेस महासचिव अशोक गहलोत मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार हैं। अशोक गहलोत पिछले एक साल से राहुल गांधी की टीम के मजबूत स्तंभ हैं। पूर्व मुख्यमंत्री के नाते अशोक गहलोत और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की नजदीकियां भी किसी से छिपी नहीं हैं। कांग्रेस हाईकमान के समक्ष जब भी हरियाणा के नेतृत्व का मुद्दा आया, तभी अशोक गहलोत पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की मजबूत पैरवी करते नजर आए।

कांग्रेस मीडिया विभाग के चेयरमैन एवं विधायक रणदीप सिंह सुरजेवाला हालांकि आज हरियाणा के सबसे ताकतवर कांग्रेस नेता माने जाते हैं, लेकिन राजस्थान में यदि अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री पद मिला तो हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा को प्रमुख चेहरे के रूप में पेश किया जा सकता है। पंजाब में यही पैटर्न अपनाया गया था। वहां कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद का कंडीडेट घोषित किया गया और प्रदेश प्रधान बनाया गया। हरियाणा में करीब आधा दर्जन कांग्रेस नेता ऐसे हैं, जो मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल हैं। इस दौड़ को बरकरार रखने के लिए उनकी निगाह प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर भी टिकी हुई है।

राज्यसभा सदस्य कु. सैलजा गांधी परिवार के काफी नजदीक हैं। उन्हें सोनिया गांधी के बेहद करीब माना जाता है। राजस्थान में चुनाव स्क्रीनिंग कमेटी की जिम्मेदारी सैलजा को ही सौंपी गई थी। कुलदीप बिश्नोई का भी राजस्थान में काफी असर रहा है। वहां उनके पिता चौ. भजनलाल के साथ-साथ कुलदीप बिश्नोई का काफी प्रभाव है। कुलदीप राजस्थान में बिश्नोई मतों को कांग्रेस के हक में करने में सहायक साबित हुए हैं। कांग्रेस विधायक दल की नेता किरण चौधरी अपने व्यक्तितत्व के साथ-साथ कांग्रेस हाईकमान के साथ नजदीकियों का लाभ उठा सकती हैं।

रही रणदीप सिंह सुरजेवाला की बात, वह कांग्रेस हाईकमान के सबसे ज्यादा करीब हैं। राहुल गांधी की अहम बैठकों में उन्हें नीति निर्धारक के तौर पर देखा जाता है। रणदीप सिंह किसी की भी बाजी पलटने का दम रखते हैं। हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष अशोक तंवर की पकड़ भी कम नहीं हैं। कांग्रेस हाईकमान अभी तक उन्हीं पर भरोसा जताता आ रहा है, इसलिए उन्हें नजरअंदाज कर पाना आसान नहीं होगा।

पड़ोसी राज्य राजस्थान से हरियाणा का सियासी कनेक्शन

  • हिसार के अग्रोहा गांव की बेटी एथलीट कृष्णा पूनिया सादुलपुर विधानसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीती हैं। कृष्णा पूनिया चुरू जिले के गागड़वास गांव के कोच वीरेंद्र पूनिया की पत्नी हैं।  
  • सादुलपुर सीट पर ही हरियाणा मूल के राम सिंह कसवां भी चुनाव मैदान में थे। भाजपा के टिकट पर कसवां तीसरे नंबर पर रहे हैं। कसवां भिवानी जिले के मतानी गांव के रहने वाले हैं तथा चुरू लोकसभा क्षेत्र से चार बार सांसद रह चुके हैं। उनके बेटे राहुल कसवां चुरू से भाजपा सांसद हैं। राम सिंह कसवां की पत्नी कमला कसवां भी सादुलपुर से विधायक रह चुकी हैं।
  • गंगानगर सीट पर हरियाणा की बेटी कामिनी जिंदल ने चुनाव लड़ा था। उन्होंने जमींदारा पार्टी से चुनाव लड़ा और पराजित हो गई। कामिनी जिंदल प्रमुख उद्योगपति राजस्थान की जमींदारा पार्टी के अध्यक्ष बीडी अग्रवाल की बेटी हैं, जो मूल रूप से सिवानी मंडी से हैं। पिछले चुनाव में कामिनी ने राय सिंह नगर से चुनाव जीता था।
  • हरियाणा विधानसभा में विपक्ष के नेता अभय सिंह चौटाला के साले अभिषेक मटोरिया नोहर सीट से चुनाव मैदान में थे। भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ने वाले मटोरिया हार गए हैं।
  • रमेश खंडेलवाल नीमका थाना में चुनाव मैदान में उतरे तथा हार गए। महेंद्रगढ़ जिले के अटेली के रहने वाले रमेश खंडेलवाल 2008 से यहां से विधायक रह चुके हैं। पिछले चुनाव में हार के चलते कांग्रेस ने इस बार उनका टिकट काट दिया था, जिस कारण रमेश ने नई पार्टी से किस्मत आजमाई।

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