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हरियाणा में इमरजेंसी के खिलाफ आंदोलन की मजबूत रीढ़ था RSS, हजारों कार्यकर्ता थे जेलोंं में बंद

तत्‍कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा 1975 में लगाए गए आपातकाल के खिलाफ हरियाणा में जबरदस्‍त आंदोलन हुआ था। आरएसएस इस आंदाेलन की रीढ़ था।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Wed, 24 Jun 2020 08:35 PM (IST)Updated: Wed, 24 Jun 2020 08:35 PM (IST)
हरियाणा में इमरजेंसी के खिलाफ आंदोलन की मजबूत रीढ़ था RSS, हजारों कार्यकर्ता थे जेलोंं में बंद
हरियाणा में इमरजेंसी के खिलाफ आंदोलन की मजबूत रीढ़ था RSS, हजारों कार्यकर्ता थे जेलोंं में बंद

चंडीगढ़, [सुधीर तंवर]। आपातकाल के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जब अपनी कुर्सी बचाने के लिए पूरे देश को इमरजेंसी की बेडियों में जकड़ दिया था, तब हरियाणा में भी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के  कार्यकर्ता न हताश हुए, न निराश हुए और न शांत होकर घरों में बैठे। उन्होंने सत्याग्रह कर समाज को जगाया। इसका परिणाम यह हुआ कि संघ के छोटे से छोटे कार्यकर्ता को भी गिरफ्तार कर हरियाणा के अंबाला, हिसार और रोहतक की जेलों में डाल दिया गया था।

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आपातकाल के दौरान हरियाणा तत्कालीन केंद्र सरकार की तानाशाही से सर्वाधिक प्रभावित हुआ

आपातकाल के दौरान हरियाणा एक ऐसा राज्य था जो सरकार की तानाशाही से सर्वाधिक प्रभावित था। इमरजेंसी के खिलाफ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ आंदोलन की मजबूत रीढ़ बनकर खड़ा हुआ। जिन लोगों को उस समय जेलों में डाला गया था, उनमें ज्यादातर संघ के लोग ही थे। सत्याग्रह में संघ की अहम सहभागिता थी।

संघ कार्यालयों को बदनाम करने के लिए उस समय प्रचारित किया गया कि संघ कार्यालयों में तलाशी के दौरान घातक हथियार मिले हैं, जबकि हरियाणा सरकार द्वारा प्रकाशित पुस्तक 'शुभ्र ज्योत्सना' में इस बात का दावा किया गया है कि उस समय संघ कार्यालयों से जो भी सामान मिला था, वह लकड़ी की छुरियां और टीन की तलवारें थी, जिनका प्रयोग संघ की शाखाओं में व्यायाम के लिए किया जाता था।

आरएसएस कार्यकर्ता न हताश हुए और न ही निराश हुए, जमकर लड़ी लड़ाई

इमरजेंसी के दौरान संघ पर जब प्रतिबंध लगा दिया गया था, तब उसके कुछ समय बाद संघ पर दबाव बनाने की कोशिश की गई। आंदोलन बंद करने की एवज में संघ से प्रतिबंध हटाने की पेशकश भी आई, लेकिन संघ के नेताओं ने लोकतंत्र बहाली की पहली शर्त रखी। रोहतक जेल की बैरक नंबर चार में 150 स्वयंसेवक थे। सभी एक पंक्ति में बैठकर भोजन करते थे और घरों से मिलकर आई खाद्य सामग्री को मिल-बांटकर खाते थे। तब मधु दंडवते और अशोक मेहता को कहना पड़ा कि यही समाजवाद का व्यावहारिक रूप है।

शुभ्र ज्योत्सा के मुताबिक, रोहतक जेल में बंद सिकंदर बख्त ने संघ के तत्कालीन बौद्धिक प्रमुख प्रेम सागर से कहा था कि आप संघ वालों का किस मुंह से धन्यवाद करूं। संघ के लोगों ने मीसा (मेंटिनेंस आफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट) में बंद लोगों के परिवारों की उनके घर जाकर हर तरह से सहायता की। अंबाला के सक्रिय कार्यकर्ता सोमनाथ खुराना अपने साथी मोहन लाल अग्रवाल के साथ सीआइडी वालों से छिपकर दिल्ली जाया करते थे। तब वह आपातकाल के विरोध में वहां प्रकाशित होने वाली प्रतियों को बिस्तर बंद में छिपाकर लाया करते थे।

हरिकृष्ण शर्मा, नरदेव शर्मा, आनंद और अमृतलाल जैसे कई कार्यकर्ता इन प्रतियों को प्रचारित करते थे। जगाधरी और यमुनानगर के क्षेत्र में दर्शन लाल जैन, मास्टर बोध राज और डॉ. कमला वर्मा को मीसा के तहत गिरफ्तार किया गया। ऐसे नेताओं की लंबी फेहरिस्त है, जिन्होंने जेल में रहकर इमरजेंसी का प्रबल विरोध किया।

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