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हरियाणा के चुनावी रण में ही पड़ गई थी शिरोमणि अकाली दल और भाजपा के रिश्तों में खटास

भारतीय जनता पार्टी और शिरोमणि अकाली दल के रिश्‍ते में खटास पिछले साल हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान ही आ गई थी। दोनों पार्टियों में हरियाणा में भी पहले एक साथ आने की सहमति बनी थी लेकिन शिअद ने बाद में राज्‍य में अकेले चुनाव लड़ा।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Sun, 27 Sep 2020 08:01 AM (IST)Updated: Sun, 27 Sep 2020 08:06 AM (IST)
हरियाणा के चुनावी रण में ही पड़ गई थी शिरोमणि अकाली दल और भाजपा के रिश्तों में खटास
हरियाणा के मुख्‍यमंत्री मनोहरलाल और शिअद प्रधान सुखबीर सिंह बादल। (फाइल फोटो)

चंडीगढ़, [अनुराग अग्रवाल]। देश और पंजाब की राजनीति में विपरीत परिस्थितियों के बावजूद एक दूसरे का हाथ पकड़कर बरसों से साथ चल रहे शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी के बीच राजनीतिक रिश्तों में कड़वाहट हरियाणा के विधानसभा चुनाव के दौरान ही पड़ गई थी। अकाली दल ने हरियाणा के लोकसभा चुनाव में भाजपा का इस शर्त के साथ समर्थन किया था कि विधानसभा चुनाव दोनों दल मिलकर लड़ेंगे, लेकिन भाजपा व अकाली दल के बीच न तो सीटों के बंटवारे पर सहमति बनी और न ही भाजपा अपने सहयोगी अकाली दल के लिए कोई सीट छोड़ने को राजी हुई।

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लोकसभा चुनाव में अकाली दल ने दिया था साथ, विधानसभा चुनाव में भाजपा ने की थी अनदेखी

इसके बावजूद अकाली दल ने अप्रत्यक्ष रूप से हरियाणा के चुनावी रण में दस्तक दी। तभी से माना जाने लगा था कि दोनों दलों के बीच अब किसी भी दिल बिखराव की खबर सामने आ सकती है। विधानसभा चुनाव के करीब दस माह बाद कृषि विधेयकों के विरोध को अकाली दल ने भाजपा से अपने रिश्ते तोड़ने को बड़़ा आधार बनाया है। केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने जब इन विधेयकों के विरोध में मोदी कैबिनेट से इस्तीफा दिया था, तब लगने लगा था कि देश और पंजाब की राजनीति में किसी भी समय जबरदस्त धमाका हो सकता है। शनिवार रात को ऐसा हो भी गया, जिसका असर अब हरियाणा की राजनीति पर भी पड़ेगा।

अकाली दल की मनौव्वल न कर भाजपा ने दिया राजनीति के मैदान में अकेले ही खुलकर खेलने का संकेत

हरियाणा में अकाली दल और इनेलो के बीच पुराने राजनीतिक संबंध रहे हैं। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला को पगड़ी बदल भाई कहा जाता है। बादल और चौटाला के बीच न केवल राजनीतिक बल्कि पारिवारिक रिश्ते भी हैं। हरियाणा में इनेलो और अकाली दल मिलकर चुनाव लड़ते रहे हैं।

प्रदेश में भाजपा के सहयोगी दल जजपा पर भी बढ़ेगा दबाव, लेकिन दोनों एक दूसरे का हाथ थामे रखने को तैयार

प्रदेश में जब चौटाला परिवार के बीच बिखराव हुआ तो प्रकाश सिंह बादल और सुखबीर बादल ने उनमें एकता कराने की आखिर तक कोशिश की, लेकिन इसमें कामयाब नहीं हो सके। इसके बाद भी शिरोमणि अकाली दल ने चौटाला परिवार के साथ अपने व्यक्तिगत रिश्ते तो अभी तक कायम रखे हैं, लेकिन राजनीतिक रिश्तों को लेकर न तो इनेलो के साथ और न ही इनेलो से अलग हुई और भाजपा से जुड़ी जननायक जनता पार्टी के प्रति अपने राजनीतिक प्रेम का कभी प्रदर्शन किया।

हरियाणा में अब भाजपा व जजपा के बीच सत्ता का गठजोड़ है। जजपा का अधिकतर काडर इनेलो का है, जिसे गांवों की पार्टी माना जाता है। कृषि विधेयकों के विरोध तथा पीपली में हुए किसानों पर बल प्रयोग के बाद जजपा मुखिया अजय सिंह चौटाला और उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला पर कोई ठोस निर्णय लेने का खासा दबाव है, लेकिन हालात बताते हैं कि दुष्यंत ऐसा कोई भी निर्णय नहीं लेने जा रहे हैं, जो भाजपा अथवा उनकी खुद की पार्टी की सेहत के लिए नुकसानदायक साबित हो सके।

सूत्रों का कहना है कि भाजपा के साथ अपने राजनीतिक रिश्ते तोड़ने की शुरुआत भले ही अकाली दल ने की है, लेकिन अकाली दल को मनाने की कोई कोशिश न कर भाजपा ने यह संकेत भी साफ दे दिए हैं कि अब भविष्य में उसे अकाली दल की जरूरत नहीं है और वह पंजाब तथा हरियाणा समेत अन्य राज्यों में बैसाखियों की राजनीति करने को तैयार नहीं हो सकती।

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