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राव इंद्रजीत की अहीरवाल से निकल जाटलैंड में एंट्री, बनाई खास रणनीति

केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने अहीरवाल की राजनीति से बाहर का रुख किया है और जाटलैंंड में एंट्री मारी है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Wed, 11 Jul 2018 11:03 AM (IST)Updated: Thu, 12 Jul 2018 08:50 PM (IST)
राव इंद्रजीत की अहीरवाल से निकल जाटलैंड में एंट्री, बनाई खास रणनीति
राव इंद्रजीत की अहीरवाल से निकल जाटलैंड में एंट्री, बनाई खास रणनीति

चंडीगढ़, [अनुराग अग्रवाल]। नरेंद्र मोदी सरकार में हरियाणा का प्रतिनिधित्व कर रहे केंद्रीय राज्य मंत्री राव इंद्रजीत ने एकाएक अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। 2014 के चुनाव में दक्षिण हरियाणा से भाजपा को उम्मीद से अधिक सीटें दिलाने वाले राव ने महेंद्रगढ़ के दोगड़ा अहीर में अपनी राजनीतिक ताकत को टटोलकर अहीरवाल से बाहर का रुख किया है। राव 15 जुलाई को झज्जर जिले के गांव मुंडाहेड़ा में बड़ी रैली करने जा रहे हैं।

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भाजपा में अपने विरोधियों से असहज महसूस कर रहे केंद्रीय मंत्री ने बनाई नई रणनीति

जाटलैंड में राव की इस रैली को जहां पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के लिए चुनौती माना जा रहा है, वहीं भाजपा के शीर्ष नेताओं को यह संदेश देने की कोशिश भी है कि राव का राजनीतिक कद सिर्फ अहीरवाल तक ही सिमटा हुआ नहीं है। जाटलैंड के बाद राव उत्तर हरियाणा में भी एक रैली करने की रणनीति बना रहे हैं।

पिछले चुनाव से पहले राव इंद्रजीत कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे। तब भाजपा को राव की एंट्री का पूरा लाभ मिला था। भाजपा उम्मीदवार को जिताने के लिए राव ने कोसली से अपने भाई व कांग्रेस प्रत्याशी राव यादुवेंद्र तक को पराजित करा दिया था। अहीरवाल में राव हालांकि करीब 12 विधायकों को जितवाने में कामयाब रहे, लेकिन उनके नाम के ठप्पे से बचने के लिए आधे विधायक ही राव के साथ मंच पर नजर आते हैं।

भाजपा में एंट्री के बाद राव काफी दिनों तक सहज रहे, लेकिन अब राव विरोधी खेमा पूरी तरह से सक्रिय और पावरफुल स्थिति में नजर आ रहा है। पिछले दिनों राव की हुड्डा से मुलाकात और इनेलो-बसपा गठबंधन के प्रति नरममिजाजी के कारण यह चर्चाएं भी चली कि केंद्रीय राज्य मंत्री नए ठिकाने की तलाश में हैं। राव दोगड़ा अहीर की रैली में अपनी बेटी आरती राव को अपना सियासी उत्तराधिकारी ही घोषित कर चुके हैं।

अगले चुनाव तक ले सकते बड़ा फैसला

भाजपा में अंदरूनी विरोध, हुड्डा से मुलाकात और इनेलो-बसपा गठबंधन के प्रति नरमी इस बात का स्पष्ट संकेत है कि राव अगले चुनाव तक कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं।


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