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हरियाणा के खजाने में पैसा भरपूर, लेकिन कुंडली मारकर बैठे अफसर, लटक रहीं सरकारी योजनाएं

Haryana treasury हरियाणा में सरकारी खजाने में धन की कोई कमी नहीं है सामने आया है कि अफसर इस धन पर कुंडली मारकर बैठे हैं। यह तथ्‍य सामने आया है कि धन की कमी बताकर सरकारी योजनाओंं को लटका दिया जाता है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Thu, 11 Aug 2022 09:50 AM (IST)Updated: Thu, 11 Aug 2022 09:50 AM (IST)
हरियाणा के खजाने में पैसा भरपूर, लेकिन कुंडली मारकर बैठे अफसर, लटक रहीं सरकारी योजनाएं
हरियाणा में अफसर सरकारी योजनाओं को लटका रहे हैं। (सांकेतिक फोटो)

चंडीगढ़, [अनुराग अग्रवाल]। Haryan Treasury: हरियाणा सरकार के खजाने में पैसे की कोई कमी नहीं है, लेकिन अधिकारी इस पर कुंडली मारकर बैठे हैं और नतीजा यह होता है कि प्रशासनिक विभाग इसे पूरी तरह से खर्च नहीं कर पा रहे हैं। कुछ विभागों ने आवंटित बजट राशि से कम खर्च करने की प्रक्रिया को अपने वित्त प्रबंधन से जोड़कर सरकार के समक्ष पेश किया है। कुछ विभाग ऐसे भी हैं, जो हर समय धन की कमी का बहाना बनाकर सरकारी योजनाओं को अधर में लटकाकर रखते हैं, लेकिन सरकारी खजाने में पड़े पैसे का इस्तेमाल नहीं करते।

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पिछले साढ़े तीन सालों में आवंटित बजट से कम खर्च में चला रहे काम, अटक रही परियोजनाएं

इसका विपरीत नतीजा सरकार की कार्यप्रणाली पर विपक्ष द्वारा सवाल उठाने के रूप में सामने आ रहा है। कृषि, पशुपालन, विकास एवं पंचायत, स्वास्थ्य, शिक्षा, सिंचाई, कौशल विकास, ग्रामीण नविकास और महिला एवं बाल विकास विभाग में खर्च काफी कम हुए हैं।

हरियाणा सरकार भी प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा बजट का भरपूर इस्तेमाल नहीं किए जाने से खुश नहीं है। इनेलो विधायक अभय सिंह चौटाला ने विधानसभा में साल 2019-20, 2020-21, 2021-22 और साल 2022-23 में सरकारी विभागों को आवंटित बजट और उनके द्वारा खर्च किए गए बजट का पूरा ब्योरा मांगा। प्रदेश सरकार ने बिना किसी हिचक के पूरे आंकड़े टेबल पर रख दिए।

कम खर्च को अपना वित्तीय कौशल बताकर खाल बचाने में लगे हुए कई विभागों के अधिकारी

इन आंकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि सरकार की ओर से विभागों को बजट देने में किसी तरह की कमी नहीं रखी जाती, लेकिन प्रशासनिक विभाग और अधिकारी ही उसे ठीक ढंग से खर्च नहीं कर पाते हैं। हरियाणा सरकार के 95 विभागों को साल 2019-20 में 1 लाख 32 हजार 166 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया, लेकिन इसमें से 1 लाख 19 हजार 596 करोड़ रुपये ही खर्च हो पाए। यानी इस साल 12 हजार 570 करोड़ रुपये बिना खर्च हुए रह गए।

साल 2020-21 में सरकारी विभागों को सरकार ने 1 लाख 42 हजार 344 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया, लेकिन इस साल 1 लाख 27 हजार 40 करोड़ रुपये खर्च हो पाए, जबकि 15 हजार 304 करोड़ रुपये बिना खर्च किए रह गए। साल 2021-22 में सरकारी विभागों को 1 लाख 55 हजार 645 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया, जिसमें से 1 लाख 35 हजार 610 करोड़ रुपये का बजट खर्च हो पाया और 20 हजार 35 करोड़ रुपये खर्च नहीं हो पाए।

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मौजूदा साल 2022-23 में प्रदेश सरकार की ओर से एक लाख 77 हजार 256 करोड़ रुपये के आवंटित बजट में से 55 हजार 259 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। बजट खर्च की यह रफ्तार काफी धीमी बताई जा रही है। इन पिछले तीन सालों में हालांकि अधिकतर विभाग बजट खर्च में कंजूसी बरतते रहे, लेकिन साल 2021-22 में आवंटित बजट और खर्च का आकलन किया जाए तो सीधे जनता से जुड़े विभागों की हालत अच्छी नहीं कही जा सकती।

स्वयं वित्त विभाग ने 18 हजार 710 करोड़ रुपये के आवंटित बजट के विपरीत पिछले साल 12 हजार 645 करोड़ रुपये ही खर्च किए हैं, यानी वित्तीय मंजूरियां देने में वित्त विभाग ने बिल्कुल भी दरियादिली नहीं दिखाई है।

एक दर्जन से अधिक विभाग नहीं कर पाए धन का भरपूर उपयोग

हरियाणा के एक दर्जन से अधिक ऐसे विभाग जो सीधे लोगों से जुड़े हुए हैं, उन्होंने पिछले साल धन का भरपूर इस्तेमाल नहीं किया है। कृषि विभाग ने 2997 करोड़ के विपरीत 2376 करोड़ रुपये खर्च किए हैं, जबकि पशुपालन विभाग ने 1224 करोड़ के विपरीत 906 करोड़ रुपये ही खर्च किए हैं।

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विकास एवं पंचायत विभाग को 4964 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे, जिसमें से 1814 करोड़ रुपये ही खर्च हो पाए हैं। स्वास्थ्य विभाग ने 4313 करोड़ के विपरीत 3991 करोड़ और उच्चतर शिक्षा विभाग ने 2792 करोड़ के विपरीत 2412 करोड़ रुपये ही खर्च किए हैं। प्राथमिक शिक्षा विभाग ने 9013 करोड़ के विपरीत 7426 करोड़ और सिंचाई विभाग ने 5081 करोड़ के विपरीत 2823 करोड़ रुपये ही खर्च किए हैं।

पीडब्ल्यूडी, शहरी निकाय व बिजली विभागों में अधिक खर्च

प्रदेश में कुछ विभाग ऐसे भी हैं, जिन्होंने आवंटित धनराशि से अधिक खर्च किया है, लेकिन इनकी संख्या दो-चार ही है। लोक निर्माण विभाग ने पिछले सालों में आवंटित राशि से कम धन खर्च किया, लेकिन पिछले साल उसे 2984 करोड़ का बजट मिला था, लेकिन खर्च 3662 करोड़ रुपये, जिसे अनुपूरक मांगों में समायोजित किया गया। शहरी निकाय विभाग ने 3970 करोड़ के विपरीत 4553 करोड़ रुपये और बिजली विभाग ने 7089 करोड़ के विपरीत 8886 करोड़ रुपये खर्च किए हैं।

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