कर्मचारियों के विवादों की सुनवाई अब High Court में नहीं, अलग Tribunal करेगा
कर्मचारियों को न्याय के लिए अब एक सीढ़ी और चढ़नी होगी। कर्मचारियों के मसलों से जुड़े तमाम केसों की सुनवाई अब हाई कोर्ट में नहीं होगी। अलग से अधिकरण बनेगा।
चंडीगढ़ [दयानंद शर्मा]। हरियाणा के कर्मचारियों को न्याय के लिए अब एक सीढ़ी और चढ़नी होगी। कर्मचारियों के मसलों से जुड़े तमाम केसों की सुनवाई अब हाई कोर्ट में नहीं होगी। इसके लिए हरियाणा प्रदेश प्रशासनिक अधिकरण की स्थापना को मंजूरी दी गई है। प्रदेश सरकार के आग्रह पर केंद्र सरकार ने इस अधिकरण की अधिसूचना जारी की है।
हरियाणा प्रदेश प्रशासनिक अधिकरण ठीक वैसे ही काम करेगा जैसे केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) काम करता है। हालांकि इसका सबसे कमजोर पक्ष यह है कि सरकार अधिकरण के फैसलों पर अमल करने में इतनी गंभीरता नहीं देगी, जितनी हाई कोर्ट के फैसलों में बरती जाती है। इसकी वजह भी है।
प्रदेश प्रशासनिक अधिकरण की अपीलीय अथॉरिटी हाई कोर्ट होगा, जहां पर इसके फैसले को चुनौती दी जा सकेगी। अभी तक हरियाणा के कर्मचारियों के पास सर्विस से जुड़े केस के लिए सीधे हाई कोर्ट जाने का रास्ता था, लेकिन अब हाई कोर्ट में केवल हरियाणा प्रदेश प्रशासनिक अधिकरण के फैसले के खिलाफ अपील पर ही सुनवाई होगी। ऐसे में मामले के निपटारे में देरी भी बढ़ेगी।
हाई कोर्ट के जज ने साफतौर पर केस की सुनवाई से इन्कार कर दिया। यही जज हरियाणा सर्विस मैटर केस की सुनवाई करते हैं। उन्होंने कहा कि हरियाणा सरकार ने इस बाबत एक्ट बना दिया है और अधिसूचना भी जारी हो गई है। ऐसे में हाई कोर्ट से सारे केस हरियाणा प्रदेश प्रशासनिक अधिकरण के पास ट्रांसफर हो जाएंगे। इस बाबत वे चीफ जस्टिस से निर्देश लेंगे।
हरियाणा प्रदेश प्रशासनिक अधिकरण की अधिसूचना जारी, लेकिन गठन नहीं
अधिकरण के गठन के लिए अधिसूचना तो जारी हो गई है, लेकिन अभी तक बेंच की संख्या, उसका स्थान और केस की नंबरिंग के बारे में कोई निर्णय नहीं लिया गया है। बताया जाता है कि हरियाणा सरकार ने हाई कोर्ट के एक सेवानिवृत जज का नाम अधिकरण के प्रमुख के लिए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को भेजा था, लेकिन उनके नाम पर सहमति नहीं मिली। संभव है कि अधिकरण की बेंच का गठन करनाल में हो, लेकिन वकीलों के दवाब के कारण पंचकूला में भी संभव है।
कर्मचारियों से जुड़े लाखों केस, एक बेंच कैसे करेगी सुनवाई
अधिकरण के गठन होते ही विवाद की स्थिति बन गई है। कुछ वकीलों का मानना है कि हाई कोर्ट में चार बेंच सर्विस मैटर के केस की सुनवाई कर रही हैं और तब भी लाखों केस लंबित हैं तो अधिकरण की एक बेंच कैसे केसों का निपटारा कर पाएगी। हाई कोर्ट से ही लगभग एक लाख से ज्यादा केस अधिकरण को ट्रांसफर होंगे। वहीं लगभग 12 हजार केस जिला अदालतों से अधिकरण के पास आ सकते हैं।
सरकार के फैसले के खिलाफ अधिवक्ताओं ने कामकाज रखा बंद
अधिकरण की स्थापना के खिलाफ हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के वकीलों ने वर्क सस्पेंड का निर्णय लिया है। वीरवार को हाई कोर्ट के वकीलों ने एडवोकेट जनरल से मुलाकात कर अधिकरण को न बनाने का आग्रह किया। इस पर एडवोकेट जनरल ने कहा कि यह वकीलों के हित में हैं। हालांकि वकीलों की आपत्ति के बारे में वह सरकार को अवगत करा देंगे।
एजी से मिलने के बाद सभी वकील चीफ जस्टिस से मिलने गए और अपनी मांग रखी। चीफ जस्टिस ने कहा कि यह राज्य का मामला है और वह इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकते। वह चाहें तो सरकार के इस एक्ट को चुनौती दे सकते हैं। इसके बाद वकीलों ने शुक्रवार सुबह बार एसोसिएशन की बैठक बुलाई है। शुक्रवार को भी कामकाज बंद रहेगा।
अधिकरण का मकसद सरकार का अपना काम आसान करना
हाई कोर्ट में सर्विस मैटर के वकील जगबीर मलिक का कहना है कि अधिकरण का गठन करने के पीछे सरकार का मकसद अपना काम आसान करना है, क्योंकि सरकार ने अधिकरण में अपनी मर्जी से सेवानिवृत हाई कोर्ट जज को नियुक्त करना है। सरकार उसी जज को नियुक्ति करेगी जो उसे सहयोग करेगा। पहले हम सर्विस केस में या किसी भर्ती में धांधली पर हाई कोर्ट से स्टे या अंतरिम राहत ले लेते थे। अधिकरण में यह संभव नहीं होगा।
समय और पैसे भी ज्यादा लगेंगे
अधिवक्ता विक्रम श्योराण का कहना है कि इस अधिकरण के गठन से कर्मचारियों को काफी नुकसान होगा। न्याय मिलने में देरी होगी ही, साथ में समय और पैसे भी ज्यादा लगेंगे। पहले हाई कोर्ट से तुरंत राहत मिल जाती थी। कुल मिलाकर समय और पैसे की बर्बादी का दूसरा नाम प्रदेश प्रशासनिक अधिकरण है।
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