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NGT की सख्ती भी नहीं आई काम, अभी फेफड़ों में धुआं भरते रहेंगे हरियाणा के कोयले वाले पावर प्लांट

NGT की सख्ती के बावजूद हरियाणा की बिजली उत्पादन इकाइयों को प्रदूषणमुक्त करना आसान नहीं है। सरकार ने एक माह के भीतर इन इकाइयों को प्रदूषण मुक्त करने में हाथ खड़े कर दिए हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Thu, 06 Feb 2020 06:43 PM (IST)Updated: Fri, 07 Feb 2020 07:42 AM (IST)
NGT की सख्ती भी नहीं आई काम, अभी फेफड़ों में धुआं भरते रहेंगे हरियाणा के कोयले वाले पावर प्लांट
NGT की सख्ती भी नहीं आई काम, अभी फेफड़ों में धुआं भरते रहेंगे हरियाणा के कोयले वाले पावर प्लांट

जेएनएन, चंडीगढ़। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) की सख्ती के बावजूद हरियाणा की आठ कोयला आधारित बिजली उत्पादन इकाइयों को प्रदूषण मुक्त करना आसान काम नहीं है। NGT ने देश की जिन कोयला आधारित बिजली उत्पादन इकाइयों को एक माह के भीतर सल्फर डाई आक्साइड मुक्त करने के निर्देश दिए हैं, उनमें राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे हरियाणा की आठ इकाइयां शामिल हैं। इन सभी इकाइयों को पिछले साल 31 दिसंबर तक प्रदूषण मुक्त किया जाना था, लेकिन प्रदेश के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को NGT व सरकार के इस उपक्रम की जानकारी ही नहीं है। सरकार ने भी एक माह के भीतर इन इकाइयों को प्रदूषण मुक्त करने में हाथ खड़े कर दिए हैं।

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कोयला आधारित इन बिजलीघरों में सल्फर डाई आक्साइड का उत्सर्जन रोकने के लिए नई तकनीक फ्ल्यू गैस डी-सल्फऱाइजेशन (एफजीडी) का इस्तेमाल करने की योजना है, जिसका नियत समय सीमा में पालन नहीं किया गया। इन बिजलीघरों में से आठ बिजलीघर हरियाणा, तीन पंजाब और दो उत्तर प्रदेश के हैं। इन प्रदेशों के पावर प्लांट पर निगरानी रखने की जिम्मेदारी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की थी। आश्चर्य की बात है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई। एक आरटीआइ के जवाब में पानीपत के जिला प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने तो यहां तक कह दिया था कि उन्हें ऐसे किसी उपक्रम के बारे में कोई जानकारी नहीं है।

NGT की चिंता यह है कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली प्रदूषण से बेहाल है। दिल्ली अपने आसपास के राज्यों हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में संचालित कोयला आधारित बिजली उत्पादन इकाइयों के प्रदूषण से सबसे ज्यादा प्रभावित है। निर्धारित समय सीमा में सल्फर नियंत्रक टेक्नोलॉजी लगाने में नाकाम रही बिजली कंपनियों ने अब कहा है कि उन्हें यह लक्ष्य हासिल करने के लिए एक से तीन साल तक लग सकते हैं।

हरियाणा सरकार ने अपने यहां कोयला आधारित बिजली उत्पादन इकाइयों को प्रदूषण फैलाने से मुक्त करने में समय मांगा है। केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय भी पर्यावरण मंत्रालय को पहले ही समय सीमा बढ़ाने के लिए लिख चुका है। पानीपत थर्मल पावर प्लांट में एसओटू नियंत्रक लगाने के लिए टेंडर निकाल दिया है। जो तकनीक हरियाणा सरकार लगा रही है, उसमें ड्राइ टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल होगा। इसलिए इसे फिट करने के लिए करीब नौ महीने का वक्त लगेगा यानी इस प्लांट में वांछित मानक इसी साल पूरे किए जा सकते हैं, जबकि हिसार और यमुनानगर के संयंत्रों के लिए अलग तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसे फिट करने में 18 से 20 महीने लग सकते हैं।

अति विषैली गैस है सल्फर डाइ आक्साइड

सल्फर डाइ आक्साइड तीव्र गंध युक्त, एक तीक्ष्ण विषैली गैस है जो बिजली उत्पादन के लिए कोयले को जलाने पर उत्पन्न होती है। यह अम्लीय वर्षा और स्माग की जनक है। स्वास्थ्य संबंधी कई गंभीर समस्याएं हो जाती हैं।

पानीपत में बंद हो चुकीं चार इकाइयां, दो बंद करने की तैयारी

हरियाणा में हाल फिलहाल आठ बिजली उत्पादन इकाइयां ऐसी हैं, जो कोयले पर आधारित हैं। इनमें 300-300 मेगावाट की दो इकाइयां यमुनानगर में, 600-600 मेगावाट की दो इकाइयां हिसार के खेदड़ में तथा 210-210 मेगावाट की दो इकाइयां पानीपत में हैं। पानीपत में ही 250-250 मेगावाट की दो अन्य इकाइयां हैं। पानीपत में दो बिजली उत्पादन इकाइयों को सरकार पहले ही बंद कर चुकी है। 210-210 मेगावाट क्षमता की कोयला आधारित बिजली उत्पादन इकाइयों को भी सरकार बंद करने पर गंभीरता से विचार कर रही है।

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