न्यू बैंकर्स सोसायटी की जांच शुरू, पुलिस ने एआर से मांगा रिकॉर्ड
न्यू बैंकर्स कोऑपेरटिव थ्रिफ्ट एंड क्रेडिट सोसायटी की पुरानी प्रबंधक कमेटी के खिलाफ सेक्टर-5 पुलिस ने जांच शुरू कर दी है।
जागरण संवाददाता, पंचकूला : न्यू बैंकर्स कोऑपेरटिव थ्रिफ्ट एंड क्रेडिट सोसायटी की पुरानी प्रबंधक कमेटी के खिलाफ सेक्टर-5 पुलिस ने जांच शुरू कर दी है। वहीं, सहायक रजिस्ट्रार सहकारी समितियां पंचकूला से दस्तावेज मुहैया करवाने को कहा है। इस मामले में सहायक रजिस्ट्रार से दस्तावेज मिलने के बाद मामले में हुए गबन या धोखाधड़ी का खुलासा हुआ, क्योंकि सहायक रजिस्ट्रार द्वारा जो एफआइआर दर्ज करवाई गई है, उसमें यह स्पष्ट नहीं है कि गबन कैसे और कितने रुपयों का हुआ है। सहायक रजिस्ट्रार द्वारा पुलिस को एफआइआर दर्ज करने के लिए पत्र लिखते हुए मामले की विस्तृत जानकारी दी गई है। इसमें अलग-अलग जांच रिपोर्टों का हवाला देते हुए कहा 27 सितंबर 2008 को अंतिम बार सोसायटी का चुनाव हुआ था, जिसमें जेएस मेहता प्रधान, संजीव वालिया उपप्रधान, कमलदीप सिंह कैशियर एवं रिकॉर्ड कीपर, नरेंद्र महाजन, सदल कुमार, रामकिशन एवं पदमा सदस्य चुने गए थे। निरीक्षण नोट 30 जुलाई 2009 का जिक्र करते हुए रिकॉर्ड कमलदीप सिंह के संरक्षण में है और सोसायटी ने अपने सदस्यों को तीन करोड़ 69 लाख 17 हजार 617 रुपये का लोन दिया है। एफआइआर के मुताबिक निरीक्षक ने बैलेंस शीट लाभ एवं हानि, रसीद भुगतान, सदस्यों का लोन एवं जमा राशि का निरीक्षण किया था। 31 मार्च 2009 की ऑडिट रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि ऑडिटर ने ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक सोसायटी के धन में किसी प्रकार का गबन नहीं दिखाया गया है।
तीन अगस्त 2015 को सहायक रजिस्ट्रार द्वारा सीएम विडो पर भेजी गई जांच का जिक्र किया गया है, जिसके मुताबिक पूर्व अध्यक्ष संजीव शर्मा की कोई भूमिका नहीं दिखाई गई। साथ ही कमलदीप एवं दो अन्य के खिलाफ पहले ही केस दर्ज करवा चुके हैं। आठ अगस्त 2016 को उप रजिस्ट्रार कुरुक्षेत्र द्वारा रजिस्ट्रार सहकारी समितियां हरियाणा को भेजी गई रिपोर्ट का जिक्र है, जिसमें कहा गया है कि सोसायटी का सारा रिकॉर्ड अपने कब्जे में ले लिया था। इस रिपोर्ट पर रजिस्ट्रार सहकारी समिति के कार्यालय ने टिप्पणी की है कि 27 सितंबर 2008 के बाद संजीव शर्मा की सोसायटी में कोई भूमिका नहीं है। सहायक रजिस्ट्रार ने पूर्व प्रबंधक कमेटी सदस्यों को पत्र डालकर सोसायटी के सदस्यों का पता देने बारे लिखा है, ताकि नई प्रबंधक कमेटी का चुनाव किया जा सके। इस मामले में सहायक रजिस्ट्रार जब पत्र में खुद मान रहे हैं कि ऑडिट नोट के मुताबिक सोसायटी के धन में कोई गबन नहीं दिखा, तो उन्होंने केस दर्ज करवाने की सिफारिश किस आधार पर की है।
सहायक रजिस्ट्रार की जिम्मेदारी बनती थी कि वह निर्धारित समय 2013 में सोसायटी की प्रबंधक कमेटी का चुनाव करवाता या प्रशासक नियुक्त करता, ताकि सोसायटी के लोन की रिकवरी एवं लोगों की जमा एफडी की देखरेख हो सकती, परंतु सहायक रजिस्ट्रार की लापरवाही के चलते सोसायटी अब इस मोड़ पर आ गई है कि लोगों का पैसा फंस चुका है और लोन लेने वाले मौज लूट रहे हैं। वर्ष 2012 में केस दर्ज होने के बाद सहायक रजिस्ट्रार ने समिति का रिकॉर्ड अपने कब्जे में लेने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की, ताकि सोसायटी का कामकाज आगे बढ़ा सकते।