नेता सोचने को हुए मजबूर, काफी कुछ खोकर भी भाजपा ने हासिल किया बहुत कुछ
वर्ष 2019 में हरियाणा की राजनीति काफी गर्म रही। इस साल राजनीतिक उतार-चढ़ाव ने नेताओं को काफी कुछ सोचने को मजबूर किया। भाजपा ने काफी कुछ खोया लेकिन बहुत कुछ पाया भी।
चंडीगढ़, [अनुराग अग्रवाल]। हरियाणा की सियासत में काफी अहम रहा मौजूदा साल अब कुछ घंटों का ही मेहमान है। इस साल के राजनीतिक सफरनामे ने सियासतदानों को काफी कुछ सोचने के लिए मजबूर किया है। पांच साल पहले पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई भाजपा के लिए यह साल जहां आत्ममंथन करने वाला रहा, वहीं पार्टी के तेजी के साथ चढ़ते-उतरते ग्राफ ने भाजपा को अपनी रणनीति बदलने के लिए मजबूर कर दिया। इसके बावजूद भाजपा के लिए सुखद यह रहा कि पार्टी दूसरी बार सत्ता में लौट आई और मनोहर लाल फिर से मुख्यमंत्री बने।
लोकसभा चुनाव में जीती सभी दस सीटें तो उम्मीदें चढ़ी आसमान
साल के शुरू में भाजपा के लिए सब कुछ अच्छा चलता रहा। सन 2018 के आखिर में पांच नगर निगमों में जीत से उत्साहित भाजपा ने जींद उपचुनाव कराया और उम्मीद से कहीं अधिक अंतर से जीत हासिल की। इस चुनाव में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला और जजपा संयोजक दुष्यंत चौटाला के छोटे भाई दिग्विजय चौटाला को हराने में भाजपा के रणनीतिकार कामयाब रहे। लोकसभा चुनाव में भाजपा को हालांकि सात से आठ सीटें ही जीतने की उम्मीद थी, लेकिन ऐसा पासा पलटा कि हरियाणा के इतिहास में पहली बार भाजपा ने सभी 10 सीटों पर जीत हासिल कर अपनी कामयाबी का डंका बजा दिया।
विधानसभा में बहुमत से रही दूर, जजपा-निर्दलीयों के सहयोग से मिली सत्ता
लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 90 विधानसभा सीटों में से 79 सीटों पर बढ़त हासिल की। लोकसभा के नतीजों से उत्साहित भाजपा ने 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में 75 से अधिक सीटें जीतने का लक्ष्य निर्धारित किया, लेकिन पार्टी तमाम कोशिशों के बावजूद 2014 में हासिल 47 सीटें भी नहीं जीत पाई। 2019 में भाजपा को मात्र 41 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा, जो पूर्ण बहुमत के 46 सीटों के आंकड़े से पांच कम है। हालांकि उसके लिए संतोषजनक बात यह रही कि 2019 में सीटें घटने के बावजूद भाजपा के वोट बैंक में तीन फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री मनोहर लाल के प्रयासों से भाजपा राज्य में इनेलो से अलग हुई जननायक जनता पार्टी के 10 विधायकों के साथ सरकार बनाने में कामयाब हो गए, लेकिन भाजपा ने इस बार के चुनाव में अपनी पिछली सरकार के आठ मंत्रियों को खो दिया।
ये आठों मंत्री चुनाव हार गए। प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला तक को चुनाव में बड़ी हार का सामना करना पड़ा। हालांकि भाजपा को सरकार बनाने के लिए सात निर्दलीय विधायकों ने बिना शर्त अपना समर्थन दे दिया, लेकिन जजपा की आपसी फूट के बीच इन विधायकों को साधे रखना किसी चुनौती से कम नहीं है।
एयर होस्टेस गीतिका आत्महत्या मामले में फंस चुके हरियाणा लोकहित पार्टी के एकमात्र विधायक गोपाल कांडा ने भी सरकार को समर्थन देने की पेशकश की, लेकिन भाजपा नेता सुश्री उमा भारती के विरोध के कारण भाजपा ने कांडा से समर्थन नहीं लिया तथा कांडा मंत्री बनते-बनते रह गए। हालांकि सरकार ने निर्दलीय विधायकों को खुश करने के लिए रानियां के विधायक चौ. रणजीत सिंह चौटाला को कैबिनेट मंत्री बनाया। चार निर्दलीय विधायकों को चेयरमैन बनाया जा चुका है, जबकि दो निर्दलीय विधायकों को अभी कोई पद नहीं मिल पाया है। कुल मिलाकर यह साल भाजपा के लिए सबक देने के साथ ही आत्ममंथन कर नए लक्ष्य निर्धारित करने वाला रहा है।
बड़ी उम्मीदों के साथ भाजपा में शामिल हुए थे दूसरे दलों के विधायक
हरियाणा में इस साल दूसरे दलों के विधायकों ने जितनी तेजी और उत्सुकता के साथ भाजपा का दामन थामा था, उतना उन्हें कोई लाभ नहीं हुआ है। लोकसभा चुनाव में 10 सीटों पर जीत के बाद विधानसभा चुनाव से पहले दूसरे दलों के करीब डेढ़ दर्जन विधायक भाजपा में शामिल हुए। इनमें से करीब एक दर्जन को टिकट मिले भी। दूसरे दलों के आधा दर्जन विधायक चुनाव जीत भी गए, लेकिन ज्यादातर विधायकों को भाजपा में आने के बाद अपनी उम्मीदें पूरी होती दिखाई नहीं दी। अब यह लोग भाजपा, कांग्रेस और जजपा में अपने राजनीतिक भविष्य का आकलन करने में जुटे हैं।
दस मंत्रियों व प्रदेश अध्यक्ष को रास नहीं आया मौजूदा साल
हरियाणा में पिछली मनोहर सरकार के आठ कद्दावर मंत्रियों के लिए यह साल काफी निराश कर देने वाला रहा। दो मंत्रियों विपुल गोयल और राव नरबीर को भाजपा ने इस बार टिकट नहीं दिए। पिछली सरकार में मंत्री रह चुके प्रो. रामबिलास शर्मा, ओमप्रकाश धनखड़, कैप्टन अभिमन्यु, कविता जैन, कृष्णलाल पंवार, मनीष ग्रोवर, कृष्ण कुमार बेदी और कर्ण देव कांबोज वर्ष 2019 का विधानसभा चुनाव हार गए।
बेदी को सरकार ने हालांकि सीएम के राजनीतिक सचिव के रूप में एडजेस्ट कर दिया है। भाजपा के मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला की सबसे करारी हार हुई है। वह भारी मतों के अंतर से टोहाना से चुनाव हारे तथा जजपा विधायक देवेंद्र बबली बने।
मनोहर लाल के लिए शुभ, रणजीत चौटाला के लिए अहम
मुख्यमंत्री मनोहर लाल के लिए यह साल उतार-चढ़ाव के बावजूद काफी अच्छा रहा। चुनाव हार चुके कुछ मंत्रियों के विरोध के बावजूद मनोहर लाल को दूसरी बार हरियाणा की सरकार चलाने का मौका मिला। मुख्यमंत्री की नई कैबिनेट में रानियां से निर्दलीय विधायक रणजीत सिंह चौटाला काफी फायदे में रहे। उन्हें बिजली मंत्री बनाया गया। रणजीत चौटाला 1987 में पहली बार लोकदल के टिकट पर विधायक बने थे। वह देवीलाल की कैबिनेट में कृषि मंत्री रहे। इसके बाद वह चुनाव हारते रहे। कई बार कांग्रेस से लड़े। इस बार कांग्रेस ने उनका टिकट काट दिया तो निर्दलीय लड़े और जीतने के बाद वरिष्ठता के आधार पर मनोहर कैबिनेट में बिजली व जेल मंत्री बन गए।
कई विधायकों की टूटी मंत्री बनने की आस, विज बने पावरफुल
हरियाणा की मनोहर सरकार में मंत्री पद पाने के इच्छुक कई विधायकों की इस बार आस टूट गई। अंबाला छावनी से छठी बार विधायक बने गृह मंत्री अनिल विज मनोहर सरकार में सबसे पावरफुल मंत्री हैं। पूर्व विधानसभा स्पीकर कंवरपाल गुर्जर की मंत्री बनने की इच्छा इस बार पूरी हुई। उन्हें शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी सौपी गई।
डा. बनवारी लाल केंद्रीय राज्य मंत्री राव इंद्रजीत के समर्थक हैं, लेकिन उन्हें मंत्री तो बना दिया गया, मगर वह अपने काम और पद के साथ न्याय नहीं कर पा रहे हैं। विधानसभा में डा. बनवारी लाल को कई बार विधायकों की हंसी का पात्र बनना पड़ा है। ब्राह्मण कोटे से सुलङो हुए पंडित मूलचंद शर्मा को सरकार ने परिवहन व खनन मंत्रलय देकर काफी मजबूत किया है। जेपी दलाल, ओमप्रकाश यादव, संदीप सिंह और कमलेश ढांडा को इस बार मंत्रिमंडल में स्थान मिला है।