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50 हजार सरकारी कर्मचारियों की नौकरी पर टला नहीं खतरा, कानून में संशोधन ही सहारा

हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट के स्टे से भले ही करीब 50 हजार कच्चे कर्मचारियों को फौरी तौर पर राहत मिल गई हो, लेकिन नौकरी पर खतरा टला नहीं है।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Wed, 28 Nov 2018 09:27 AM (IST)Updated: Wed, 28 Nov 2018 11:57 AM (IST)
50 हजार सरकारी कर्मचारियों की नौकरी पर टला नहीं खतरा, कानून में संशोधन ही सहारा
50 हजार सरकारी कर्मचारियों की नौकरी पर टला नहीं खतरा, कानून में संशोधन ही सहारा

चंडीगढ़ [सुधीर तंवर]। वर्ष 2014 की कर्मचारी नियमितीकरण पॉलिसियों को रद करने के हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट के स्टे से भले ही करीब 50 हजार कच्चे कर्मचारियों को फौरी तौर पर राहत मिल गई हो, लेकिन नौकरी पर खतरा टला नहीं है।

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चोर दरवाजे से कच्चे कर्मचारियों की भर्ती कर बाद में उन्हें पक्का करने की केंद्र व राज्य सरकारों की पॉलिसी पर सुप्रीम कोर्ट दोटूक फैसला सुना चुका है। इससे चिंतित कर्मचारी संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा उमा देवी बनाम कर्नाटक सरकार के मामले में सुनाए गए फैसले को कानून बनाकर बदलवाने के लिए प्रदेश और केंद्र सरकार पर दबाव बढ़ा दिया है।

सर्व कर्मचारी संघ हरियाणा के प्रधान धर्मबीर फौगाट, महासचिव सुभाष लांबा व ऑडिटर सतीश सेठी के मुताबिक हाईकोर्ट के फैसले से प्रभावित कर्मचारियों की नौकरी स्थायी रूप से तभी बच सकती है जब सुप्रीम कोर्ट के 10 अप्रैल 2006 को सुनाए फैसले को केंद्र सरकार कानून में संशोधन कर निष्प्रभावी कर दे।

इसी फैसले के आधार पर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने विगत 31 मई को हुड्डा सरकार में पक्के हुए 4654 कर्मचारियों के साथ ही करीब 50 हजार कच्चे कर्मचारियों को छह महीने में निकालकर पक्की भर्तियां करने का निर्देश दिया था।

सुभाष लांबा ने सुझाव दिया कि प्रदेश सरकार विधायी शक्तियों का इस्तेमाल कर विधानसभा में रेगुलराइजेशन एक्ट बनाए और प्रस्ताव पारित कर उमा देवी बनाम कर्नाटक सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निरस्त कराने के लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजे। यही एक तरीका है जिससे अदालती फैसले से प्रभावित कर्मचारियों की नौकरी सुरक्षित करने के साथ ही विभिन्न महकमों में लगे हजारों कच्चे कर्मचारियों को पक्का करने की राह खुल सकेगी।

विधेयक से पहले संशोधित करना होगा ड्राफ्ट

सर्व कर्मचारी संघ के मुताबिक इस संबंध में पूर्व में तैयार विधेयक के ड्राफ्ट में भी संशोधन करना होगा। नहीं तो मामला अदालत में फंस सकता है। ड्राफ्ट में केवल सरकारी विभाग शब्द का जिक्र है। अर्धसरकारी, सहकारी, बोर्ड-निगम, शहरी निकाय, विश्वविद्यालय, सहकारी समितियां, पंचायत समितियां, सोसायटी और प्रोजेक्ट में लगे कर्मचारियों का क्या होगा, इसका कोई उल्लेख नहीं। इसी तरह सी और डी ग्रुप के कर्मचारियों को शामिल कर ए और बी ग्रुप के कर्मचारियों को छोड़ दिया गया।

पार्ट टाइम, डीसी रेट, दैनिक वेतन भोगी, आउटसोर्सिंग, तदर्थ और टर्म अप्वाइंटी आधार पर लगे कच्चे कर्मचारियों के बारे में भी कुछ नहीं कहा गया। इसके अलावा स्वीकृत पदों पर ही कर्मचारियों के नियमतीकरण की व्यवस्था की जगह जरूरत के आधार पर लगे कर्मचारियों को भी इसमें शामिल किया जाए। कर्मचारियों को पक्का करने के लिए न्यूनतम उम्र 42 साल रखी है, जबकि ज्वाइनिंग के दिन की उनकी उम्र को माना जाना चाहिए। कितने दिन में कर्मचारी पक्के होंगे, ड्राफ्ट में इसका भी उल्लेख नहीं था। साल में 240 दिन काम करने वालों को पक्का किया जाना चाहिए और भर्ती के समय की योग्यता को आधार बनाया जाए। यदि कोई बिल को कोर्ट में चुनौती देता है तो पहले सरकार से मंजूरी लेना अनिवार्य किया जाना चाहिए।

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