Haryana, Baroda ByElection 2020 Result: भाजपा के ताले में फिट नहीं बैठी जजपा की चाबी
Baroda ByElection 2020 Result हरियाणा के भाजपा-जजपा गठबंधन के लिए बरोदा उपचुनाव के नतीजे ने संकेत दिए हैं। बराेदा में भाजपा के ताले में जननायक जनता पार्टी की चाबी फिर नहीं आई। कांग्रेस की बरोदा में जीत से गठबंधन को आगे की रणनीति बनानी पड़ेगी।
चंडीगढ़, [सुधीर तंवर]। Haryana, Baroda ByElection 2020 Result: जींद उपचुनाव की तर्ज पर पहली बार बरोदा में कमल खिलाने की भाजपा की चाह पूरी नहीं हो सकी। वह भी तब, जब सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल जननायक जनता पार्टी (जजपा) ने साझा उम्मीदवार के लिए पूरी ताकत लगाई हुई थी। दो साल पहले जींद विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस के कद्दावर नेता रणदीप सुरजेवाला को हराकर पहली बार जीत दर्ज करने वाली भाजपा इस बार कांग्रेस का नया चेहरा होने के बावजूद बरोदा का किला भेदने में सफल नहीं हो पाई।
जींद उपचुनाव की तरह बरोदा में कमल खिलाने का सपना नहीं हो सका पूरा
1966 में हरियाणा गठन के बाद प्रदेश में विधानसभा के 35 उपचुनाव हुए हैं जिनमें अधिकतर सत्ता पक्ष ने जीते। दिलचस्प पहलू यह है कि सरकारों के शुरुआती दौर में जहां सत्ता पक्ष ने जीत हासिल की, वहीं अंतिम दौर में हुए चुनावों में विपक्षी उम्मीदवार हावी रहे।
हरियाणा विधानसभा के लिए 35 बार हुए उपचुनावों में ज्यादातर सत्ता पक्ष ने जीते
लंबे अरसे बाद ऐसा हुआ है कि सरकार के शुरुआती दौर में ही सत्ता पक्ष को उपचुनाव में हार का मुंह देखना पड़ गया। प्रदेश में सबसे अधिक उपचुनाव लडऩे और जीतने का रिकार्ड चौटाला परिवार के नाम है। ताऊ देवीलाल के परिवार के आठ सदस्यों ने एक दर्जन उपचुनाव लड़े और आठ उपचुनावों में जीत दर्ज की।
हरियाणा के उपचुनावों में सर्वाधिक चौटाला परिवार ने आठ बार दर्ज की है जीत
पहली बार सिरसा में हुए उपचुनाव में ताऊ देवीलाल के बड़े भाई साहिबराम ने जीत दर्ज की। इसके बाद 1974 में देवीलाल ने रोड़ी और फिर 1985 में हुए महम उपचुनाव में विजय परचम फहराया। वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला ने 1970 में हुए ऐलनाबाद उपचुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार पी. राज और 1993 में नरवाना में कांग्रेस के रणदीप सुरजेवाला को शिकस्त दी। उन्हीं की तर्ज पर अभय चौटाला ने वर्ष 2000 में रोड़ी और फिर 2010 में ऐलनाबाद उपचुनाव जीता।
भुलाए नहीं भूलता महम उपचुनाव
हरियाणा में अभी तक हुए विधानसभा उपचुनावों में सर्वाधिक चर्चित चुनाव महम का रहा है। फरवरी 1990 में हुए महम उपचुनाव में इतनी हिंसा हुई कि नतीजा तक घोषित नहीं हो पाया। दोबारा चुनाव कराए गए तो फिर हिंसा हो गई और चुनाव रद करने पड़े। 1991 में तीसरी बार चुनाव हुए और तब जाकर कोई नतीजा निकल पाया। प्रदेश के लोकतांत्रिक सफर में महम कांड को काले इतिहास के रूप में जाना जाता है।
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