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कुछ हट के होंगे जींद के नतीजे, कहीं वोट बंटे तो कहीं छिटके

अगले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में मतदाताओं के रुख की तरफ इशारा करने वाले जींद उपचुनाव के नतीजे कुछ हट के होंगे।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Tue, 29 Jan 2019 09:58 AM (IST)Updated: Wed, 30 Jan 2019 09:18 AM (IST)
कुछ हट के होंगे जींद के नतीजे, कहीं वोट बंटे तो कहीं छिटके
कुछ हट के होंगे जींद के नतीजे, कहीं वोट बंटे तो कहीं छिटके

चंडीगढ़ [अनुराग अग्रवाल]। अगले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में मतदाताओं के रुख की तरफ इशारा करने वाले जींद उपचुनाव के नतीजे कुछ हट के होंगे। इस चुनाव नतीजे पर पूरे प्रदेश की निगाह टिकी है। करीब 75 फीसद मतदाताओं ने मताधिकार का इस्तेमाल करते हुए अपना फरमान सुना दिया है। यह किसके हक में है, इसका पता वीरवार को चलेगा।

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जींद उपचुनाव में हर राजनीतिक दल अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहा है। 2014 के विधानसभा चुनाव में यहां करीब 70 फीसद मतदान हुआ था। इस बार इसमें पांच फीसद की बढ़ोतरी हुई है। पिछली बार की अपेक्षा गांव का मतदाता खासकर महिलाएं ज्यादा संख्या में बाहर निकली हैैं।

मतदान के दौरान स्थितियां पल-पल बदलती रहीं। शहरी मतदाता भी इस बार उम्मीद से कहीं अधिक संख्या में वोट डालने घरों से बाहर निकले। ग्रामीण मतदाताओं में भी अलग ही तरह का जोश दिखाई दिया। जींद में किस पार्टी का उम्मीदवार जीतेगा, यह दावा करना प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार के साथ न्यायसंगत नहीं होगा।

जींद का रण पूरी तरह से फंस चुका है। भाजपा के डॉ. कृष्ण मिड्ढा, जननायक जनता पार्टी के दिग्विजय सिंह चौटाला और कांग्रेस के कद्दावर नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला में कांटे की टक्कर सभी बूथों पर दिखाई दी। कहीं सुरजेवाला का माहौल था तो कहीं मिड्ढा और कहीं दिग्विजय के हक में मतदाता खड़े दिखाई दिए। इनमें किसी एक उम्मीदवार के हक में रुझान बताना दूसरों के साथ ज्यादती होगी।

भाजपा सांसद राजकुमार सैनी की लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी के विनोद आशरी को सैनी मत पड़े, जबकि कुछ ब्राह्मण उन्हें मिले तो कुछ खिसक गए। जाट मतों में बंटवारा जींद के चुनाव में देखने को मिला, जबकि वैश्य मतदाता भी बंटे दिखाई दिए। इनेलो-बसपा गठबंधन के उम्मीदवार उम्मेद सिंह रेढू भी पूरी मुस्तैदी के साथ चुनाव मैदान में डटे नजर आए।

जींद कभी इनेलो व कांग्रेस का गढ़ रहा है। इनेलो अब दो फाड़ हो चुकी, जबकि कांग्रेस ने पूरी जिम्मेदारी से यह चुनाव लड़ा। जेजेपी ने दूसरे दलों को पसीने ला दिए, जबकि भाजपा सरकार और संगठन ने आखिरी दौर में बड़े ही रणनीतिक ढंग से सिस्टम को पकडऩे में सफलता हासिल की। लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी आगे भी दूसरे दलों का खेल बिगाडऩे में अहम भूमिका निभा सकती है।

एक उपचुनाव पर टिका सभी दलों का राजनीतिक भविष्य

जींद का चुनाव ऐसा पहला उपचुनाव है जिसमें सभी दलों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। सत्तारूढ़ भाजपा हो या कांग्रेस, जेजेपी या इनेलो-बसपा गठबंधन अथवा लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी, सभी की भविष्य की राजनीति इन चुनाव परिणामों पर टिकी है। यह पहला मौका है जब किसी एक विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव ने सभी का ध्यान खींचा है। ऐसा कभी नहीं हुआ कि पूरी सरकार के साथ ही विपक्षी दलों ने किसी एक हलके में इस तरह डेरा डाला हो।

नए सियासी गठबंधन की तरफ इशारा कर रहे नतीजे

जींद उपचुनाव के नतीजे राज्य में नई सियासी समीकरण और गठबंधन पैदा कर सकते हैैं। प्रदेश की राजनीतिक फिलहाल जाट और गैर जाट के इर्दगिर्द घूम रही है। भाजपा सांसद राजकुमार सैनी की लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी पर भविष्य में सभी की निगाह होगी। जेजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच राजनीतिक गठजोड़ संभव है, जबकि इनेलो की अटूट साथी बसपा पर कांग्रेस और लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी की निगाह टिकी हुई है। 

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