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फिलहाल रिजर्व रहेगी झज्जर विधानसभा सीट, हलफनामा एक माह में पेश करने का आदेश

हाई कोर्ट ने मुख्य निर्वाचन अधिकारी का पक्ष सुनने के बाद उनको आदेश दिया कि वो एक महीने में झज्जर विधानसभा सीट आरक्षित करने के तरीके से जुड़ा हलफनामा कोर्ट में दें।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Sat, 14 Sep 2019 08:30 AM (IST)Updated: Sun, 15 Sep 2019 08:31 AM (IST)
फिलहाल रिजर्व रहेगी झज्जर विधानसभा सीट, हलफनामा एक माह में पेश करने का आदेश
फिलहाल रिजर्व रहेगी झज्जर विधानसभा सीट, हलफनामा एक माह में पेश करने का आदेश

जेएनएन, चंडीगढ़। झज्जर विधानसभा सीट को रिजर्व रखने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान हरियाणा के मुख्य निर्वाचन अधिकारी हाई कोर्ट में पेश हुए। उन्होंने हाई कोर्ट को किसी भी सीट को आरक्षित करने को लेकर अपनाए गए तरीके की जानकारी दी।

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कोर्ट को बताया गया कि 2001 की जनगणना को ध्यान में रखते हुए हरियाणा में कुछ सीटें रिजर्व की गई हैंं। मुख्य चुनाव अधिकारी ने कोर्ट को बताया कि किसी भी सीट को विधानसभा स्तर पर ही नहीं बल्कि जिले के आधार पर रिजर्व किया जाता है। जहां आरक्षित जाति के लोग ज़्यादा होंगे वहींं सीट रिजर्व की जाती है। इस कड़ी में राज्य की 17 सीटों को आरक्षित किया गया है। हाई कोर्ट ने मुख्य निर्वाचन अधिकारी का पक्ष सुनने के बाद उनको आदेश दिया कि वो एक महीने में सीट आरक्षित करने के तरीके से जुड़ा हलफनामा कोर्ट में दें।

बता दें, झज्जर निवासी विजेंदर ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर बताया कि झज्जर 1974 से विधानसभा की आरक्षित सीट रही है, जबकि इस क्षेत्र में एससी वर्ग की संख्या बहुत कम है। याची के वकील ने कोर्ट को बताया कि झज्जर विधानसभा क्षेत्र में जाट और यादव मतदाताओं की संख्या अधिक है इसलिए इसे सामान्य विधानसभा सीट बनाया जाना चाहिए। याची ने राजौंद विधानसभा क्षेत्र का हवाला देते हुए बताया कि यह सीट भी आरक्षित थी, लेकिन जनसंख्या अनुपात को देखने के बाद इसे सामान्य में तब्दील कर दिया गया।

याचिका पर वीरवार को सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने मुख्य निर्वाचन अधिकारी को नोटिस जारी कर कोर्ट में पेश होने का आदेश दिया था। इस मामले में हरियाणा सरकार शुरू से ही हाई कोर्ट द्वारा इस मामले की सुनवाई का विरोध कर रही है। सरकार के अनुसार किसी विधानसभा सीट को रिजर्व करने का मामला चुनाव आयोग के दायरे में आता है, इस लिए हाई कोर्ट इस मामले पर सुनवाई नहीं कर सकता। सरकार की तरफ से अनुच्छेद 332 क्लाज 3 का हवाला देकर इस मामले को कोर्ट के अधिकार क्षेत्र से बाहर का बताया गया। इस पर बेंच ने कहा कि अनुच्छेद 226 के तहत हाई कोर्ट को इस तरह के मामले सुनने का अधिकार है।

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